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दबे स्वरों में राहुल गांधी की क्षमता पर उठे सवाल, नेता सोच रहे हैं ‘बिल्ली के गले घंटी बांधे कौन?’

नई दिल्ली। चुनाव में जीत और हार लगी रहती है. लेकिन जीत का श्रेय लेने के लिए सभी दावा करते हैं और चुनाव में हार की ठीकरा फोड़ने के लिए सिर की तलाश की जाती रही है. भारतीय राजनीति में सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस पार्टी पिछले कुछ सालों से देश की राजनीति में रसातल की ओर जा रही है. ऐसे में सोनिया गांधी ने पार्टी को कुछ संभाला लेकिन जब से उन्होंने पार्टी की गतिविधियों से कुछ दूरी बनाई तब से पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी की कमान संभाली है.

महाराष्ट्र और ओडिशा में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में बीजेपी के बेहतर प्रदर्शन और कांग्रेस के फिसड्डी प्रदर्शन पर पार्टी के नेताओं में कानाफूसी शुरू हो गई है. जहां पार्टी इसे आंतरिक लड़ाई बता रही है और पार्टी की वित्तीय खस्ताहाल को जिम्मेदार बता रही है वहीं, पार्टी के वरिष्ठ नेता इन हार की वजह को पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की क्षमताओं में कमी को मान रहे हैं.

यह अलग बात है कि सभी के सभी कानाफूसी ही कर रहे हैं और सभी को पांच राज्यों में हो रहे चुनावों के परिणाम का इंतजार है. एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने कहा, सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा.

कई पार्टी नेताओं का मानना है कि 2014 में पार्टी की करारी हार के बाद राहुल गांधी ने पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली थी और पूरे देश में पार्टी में बदलाव का प्रयास किया और पूरे देश में प्रचार भी किया. लेकिन अभी तक के परिणाम पार्टी के लिए उत्साहवर्धक तो नहीं दिखाई दे रहे हैं. पार्टी एक के बाद एक राज्य में हारती जा रही है और देखा जाए तो धीरे धीरे पार्टी साफ होती जा रही है.

पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की चिंता यहीं नहीं समाप्त होती है. सभी को यह भी दिक्कत है कि पार्टी के पास अभी तक नरेंद्र मोदी सरकार से टक्कर लेने के लिए कोई गेमप्लान नहीं है न ही कोई रणनीति है. पार्टी नेताओं ने नाम न लेने की शर्त पर तो यहां तक कहा कि राहुल गांधी के हमले अभी तक कारगर सिद्ध नहीं हुए हैं और महाराष्ट्र और ओडिशा में बीजेपी को मिली जीत का असर यूपी के बाकी बचे चरणों में मतदान पर भी देखने को मिलेगा.

इन नेताओं का कहना है कि पार्टी में काफी दिनों से चले बदलाव से भी ज्यादा कुछ होने की उम्मीद नहीं दिखती है क्योंकि राहुल गांधी के नेतृत्व में जवाबदेही और परफॉरमेंस कभी भी पैमाना नहीं रहा है. यह मांग एक बार फिर जोर पकड़ेगी कि क्या राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष पद का कार्यभार संभालेंगे और उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा और ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाएंगी या नहीं.

कुछ भी हो, 11 मार्च को चुनाव परिणामों की घोषणा के साथ ही अगर कुछ बदलाव नहीं हुआ तो सवाल कांग्रेस नेतृत्व पर तो उठेगा ही. यह सवाल कांग्रेस पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की क्षमताओं पर भी उठाए जाएंगे.