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……तो 2019 का चुनाव जितने के लिए देश के दुश्मनो से मदद मांगने गए थे राहुल गांधी ? राहुल गांधी के चीन के राजदूत से मिलाने का मामला

नई दिल्ली। राहुल गांधी के चीन के राजदूत से चोरी-छिपे मिलने का रहस्य गहराता जा रहा है। कुछ लोग यह संदेह जता रहे हैं कि कहीं ये मुलाकात 2019 के लोकसभा चुनाव के सिलसिले में तो नहीं थी। क्योंकि केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद चीन सबसे ज्यादा परेशान है। मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं के दम पर भारत दुनिया भर में चीन का विकल्प बनकर उभर रहा है। अब तक कई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों ने चीन के बजाय भारत में अपना प्रोडक्शन यूनिट बनाने का फैसला किया है। जाहिर है ऐसे में मोदी सरकार की आक्रामक आर्थिक नीति चीन को बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रही है। दिल्ली के सियासी गलियारे में यह चर्चा गर्म है कि हो सकता है कि राहुल की मुलाकात इसी सिलसिले में रही हो। क्योंकि उन्होंने मुलाकात से पहले विदेश मंत्रालय को औपचारिक जानकारी भी नहीं दी थी। जबकि ऐसा करना जरूरी होता है, क्योंकि राहुल गांधी विपक्ष के नेता भी नहीं हैं। उनकी हैसियत मात्र एक साधारण सांसद की है।

कांग्रेस पार्टी के एक नेता ने मीडिया से निजी बातचीत में इस बात की पुष्टि की है कि राहुल गांधी का चीन दूतावास जाना किसी औपचारिक या आधिकारिक कार्यक्रम का हिस्सा नहीं था। यही कारण है कि दूतावास की तरफ से जो जानकारी जारी की गई थी, उसमें मुलाकात का कारण नहीं बताया गया। जब दूतावास की वेबसाइट ने मुलाकात की जानकारी पोस्ट कर दी तब जाकर इसकी पोल खुली। हड़बड़ी और घबराहट में पार्टी ने पहले तो इसका खंडन कर दिया। लेकिन जब समझ में आ गया कि पोल खुल चुकी है तो उन्होंने 9 घंटे बाद मान लिया कि मुलाकात हुई। लेकिन मानने के बाद भी सीनाजोरी जारी रखी। राहुल ने कहा कि मैं पीएम मोदी की तरह चीनी राष्ट्रपति के साथ झूला नहीं झूल रहा था। पहले झूठ बोलना फिर दबाव पड़ने पर चोरी कबूलना और बौखला कर जवाब देना। जाहिर है कुछ तो गड़बड़ है। इससे पहले राहुल गांधी के दफ्तर ने चीन दूतावास में फोन करके उस वेबसाइट लिंक को डिलीट करवा दिया था। राहुल गांधी अभी संसद में विपक्ष के नेता भी नहीं हैं जो उन्हें किसी अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर चीन से सीखने जाना पड़े।

कुछ दिन पहले कांग्रेस ने केंद्र सरकार के कामकाज पर एक आंतरिक समीक्षा करवाई थी। इसका जो सबसे बड़ा नतीजा था वो ये कि चुनाव दर चुनाव बीजेपी की जीत का सबसे बड़ा कारण पीएम नरेंद्र मोदी की इमेज है। जनता उन्हें मजबूत और फैसले लेने वाले भरोसेमंद नेता के तौर पर देखा जाता है। इस रिपोर्ट पर हुई समीक्षा में यह तय हुआ था कि अब से अगले लोकसभा चुनाव तक सारा फोकस मोदी के ‘मजबूत नेता’ वाली इमेज को डैमेज करने करने की कोशिश होगी। राहुल गांधी ने इसकी शुरुआत तब की जब पीएम मोदी इज़राइल के दौरे पर थे। देश में राहुल गांधी ने बयान दिया कि ‘मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से मुलाकात में वीज़ा का मसला नहीं उठाया, इसका मतलब है कि वो कमजोर प्रधानमंत्री हैं।’ जब प्रधानमंत्री विदेश में होते हैं तो विपक्ष के नेता ऐसे बयान देने से बचते हैं।

हमें अब तक मिले इनपुट्स इसी बात की तरफ इशारा कर रहे हैं। राहुल के साथ कांग्रेस नेता आनंद शर्मा भी चीनी दूतावास में गए थे। यह हर कोई जानता है कि राहुल गांधी को इंटरनेशनल डिप्लोमेसी की कोई समझ नहीं है। ऐसे में वो चीन के राजदूत से कुछ जानने गए हों यह कोई भी मानने को तैयार नहीं होगा। तो कहीं ऐसा तो नहीं कि चीन से मदद मांगी गई है कि वो देश के किसी छोटे हिस्से पर हमला करके कब्जा कर ले। फिर कांग्रेस देश के अंदर संसद से सड़क तक पीएम मोदी को आसानी से कमजोर प्रधानमंत्री साबित कर देगी। इससे पहले कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर बिल्कुल ऐसी ही मदद पाकिस्तान से मांग चुके हैं। भारत में चीन का दूतावास शुरू से ही ऐसी ही भूमिका में रहा है। 1949 और 1962 में कम्युनिस्ट पार्टी सीपीआई की मदद से चीन ऐसी कोशिश कर चुका है। अगर मोदी सरकार जाती है तो इसमें फौरी तौर पर कांग्रेस और चीन दोनों का ही फायदा है। अब देखने वाली बात है कि इन दावों में कितना दम है। फिलहाल बीजेपी ने मांग की है कि राहुल गांधी बताएं कि वो उन्होंने राजदूत से क्या बात की।

भारत में हिंदुत्व के उभार के खिलाफ राहुल गांधी के दिलोदिमाग में कितना जहर भरा हुआ है यह इसी बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने अमेरिकी दूतावास के एक अधिकारी से मिलकर कहा था कि हिंदू आतंकवाद ज्यादा खतरनाक है। उन्होंने यहां तक कहा था कि ‘हिंदू आतंकवादी संगठन’ लश्कर ए तैयबा जैसे संगठनों से ज्यादा खतरनाक हैं। बाद में अमेरिकी सरकार के क्लासीफाइड पेपर लीक के बाद इस मामले का भंडाफोड़ हुआ था। ऐसे में हो सकता है कि चीन के राजदूत से मुलाकात भी राहुल गांधी के उसी एजेंडे का हिस्सा हो।