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…तो ‘बुआ’ मायावती के भरोसे लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं ‘भतीजे’ अखिलेश

लखनऊ। कहते हैं कि राजनीति में ना तो कोई परमानेंट दुश्‍मन होता है और ना ही दोस्‍त। उत्‍तर प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव इस बात को सच साबित करते हुए नजर आ रहे हैं। अखिेलेश यादव ने साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती के साथ गठबंधन के संकेत दिए हैं। अखिलेश यादव चाहते हैं कि उन्‍हें इस चुनाव में बुआ जी का आशीर्वाद मिल जाए। अखिलेश यादव का कहना है कि उनका उनकी बुआ जी यानी बीएसपी सुप्रीमो मायावती से कोई झगड़ा नहीं है। अखिलेश कहते हैं कि समाज के हर तबके को प्रभावित करने वाली आर्थिक अराजकता के कारण अगले लोकसभा चुनाव से पहले ही भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ तीसरा मोर्चा अपने वजूद में आ सकता है। बेशक ये खबर मायावती को खुश करने वाली हो लेकिन, कांग्रेस और यूपीए के लिए इस खबर को बहुत ही बुरा माना जा सकता है।

दरअसल, सोमवार को अखिलेश यादव मुंबई में थे। वो यहां पर ताज लैंड एंड होटल में मुंबई हिंदी पत्रकार संघ के प्रतिनिधियों से बात कर रहे थे। इसी बातचीत के दौरान ही उन्‍होंने कहा कि इस वक्‍त देश में एक तरह से आर्थिक अराजकता का माहौल है। अखिलेश ने कहा कि देश में हो रहे इस आर्थिक उथल-पुथल से समाज का हर तबका बहुत परेशान है। देश के आर्थिक हालात खराब होते जा रहे हैं। अखिलेश यादव का कहना है कि इन्‍हीं सारे मसलों को लेकर भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ तीसरा मोर्चा अस्तित्‍व में आएगा। अखिलेश का कहना है कि वो महाराष्‍ट्र में कांग्रेस से गठबंधन करना चाहते हैं। उन्‍होंने दावा किया कि उनके विपक्ष के हर नेता से बहुत ही अच्‍छे संबंध हैं। इसी दौरान उन्‍होंने कहा कि मेरे बुआ जी से भी काफी अच्‍छे संबंध हैं। अखिलेश मायावती को हमेशा बुआ जी कहकर ही संबोधित करते हैं। इसी कार्यक्रम में उन्‍होंने मायावती के साथ गठबंधन के संकेत दिए।

इससे पहले भी अखिलेश यादव कई बार इस बात के संकेत दे चुके हैं कि उन्‍हें बीएसपी के साथ जाने में कोई परहेज नहीं है। दरअसल, मुलायम सिंह यादव और मायावती का सालों से 36 का आंकड़ा रहा है। दोनों नेता एक दूसरे को एकदम पसंद नहीं करते हैं। लेकिन, जब से समाजवादी पार्टी की कमान अखिलेश यादव ने संभाली है वो चाहते हैं कि उन्‍हें मायावती का भी समर्थन मिल जाए। इससे पहले बीते साल जब उत्‍तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए थे। उस वक्‍त समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था और साथ मिलकर चुनाव लड़े थे। जबकि बीएसपी ने अकेले ही चुनाव लड़ा था। उत्‍तर प्रदेश में उस वक्‍त विपक्ष की हालत इतनी बुरी हो गई थी कि कांग्रेस दस सीटों का आंकड़ा पार नहीं कर पाई थी। जबकि बीएसपी बीस सीटें भी हासिल नहीं कर सकती। जबकि समाजवादी पार्टी पार्टी पचास सीटों के भीतर ही सिमट कर रह गई थी।

लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्‍त के बाद अखिलेश को समझ में आ गया है कि उनके लिए कांग्रेस से ज्‍यादा फायदेमंद मायावती का समर्थन हो सकता है। इसलिए अब वो चाहते हैं कि मायावती समाजवादी पार्टी से गठबंधन के लिए राजी हो जाएं। हालांकि भारतीय जनता पार्टी और एनडीए को पटखनी देने में जुटे विपक्ष्‍ा के भीतर अभी से फूट पड़ती नजर आ रही है। जहां एक ओर कांग्रेस यूपीए को मजबूत करने के साथ ही प्रधानमंत्री पद पर राहुल गांधी की दावेदारी पेश कर चुका है। वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी की ओर से भी इस पद के लिए अखिलेश यादव का नाम उछाला जा रहा है। यूपीए के कई घटक दल या उसके साथ रहीं पार्टियां राहुल गांधी के नाम पर एकमत नहीं हैं। शायद यही वजह है कि अब बीजेपी और एनडीए के खिलाफ थर्ड फ्रंट की कवायद शुरु हो गई है। लेकिन, इसकी धुरी कौन बनेगा ये देखना काफी दिलचस्‍प होगा।