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तू प्यार है किसी और की… (कहानी)

असित कुमार मिश्र

शहर-ए-बलिया में जब महीना जेठ का हो, और उसमें पहली बारिश हो, तो इसे शुभ माना जाता है। कहते हैं यही बारिश अधपके आमों में मिठास और पियरी रंगत भरती है। यही बारिश के कतरे अंगूर के हरे-हरे दानों में पेवश्त होकर बताते हैं कि अब अंगूरों को खट्टा कहने का जमाना गया। जामुन के पेड़ पर काले दाने उभरने लगते हैं जिनको अगोरने के लिए कोयल जामुन में ही अपना घर बना लेती है। जेठ के मेघ आँधी और तूफान के साथ हड़बड़ाए हुए से आते हैं। जिन्हें बरसने की कम, तेज़ी से भाग जाने की बहुत जल्दी होती है। इसी महीने में शादी – बियाह भी खूब होते हैं। तरकारी की सुगन्ध में लोगों की दौड़भाग मिलकर यह बता देती है कि आज लग्न बहुत तेज़ है। लेकिन इस निगोड़ी बारिश को भी शादी-बियाह के दिन ही आना होता है वो भी ठीक संझा के बेरा ही।
ऐसी ही एक साँझ को जैसे ही हवा के झोंके थोड़े तेज़ हुए, गर्मी से बेहाल कौशिला चाची ने खुद से कहा – “थोड़ा भगवान जी बरिस भी जाते तो नीमन हो जाता”…
गाँवों में आज भी भगवान ही बरसते हैं और भगवान ही गर्मी करते हैं। संसार में हो रही तमाम बौद्धिक और भौतिक क्रांतियों के बीच भगवान के होने ना होने के सवालों के बाद भी गाँव हर बात में भगवान को ही मानता है।
तभी उधर से सुदर्शन चचा ने कहा – अरे एतना पापी बढ़ गए हैं गाँव में कि का बरखा होगा जी…
कौशिला चाची ने एकदम से डाँट दिया चाचा को – आप तऽ चुप्पे रहिए! बड़का धर्मात्मा बने हैं। सुरूज भगवान को एक लोटा जल दिए ना जाने कौ बरिस बीत गया होगा।
लेकिन कुछ बात है चाची के मन में, जो ना बाहर हो रहा है ना भीतर रह ही रहा है। कहीं दूर बज रहे बियाह के गीतों में भावुक होकर उनके मुँह से निकल ही जाता है – ओइसे आज बहुत लोगों का शादी – बियाह है मत बरिसिए भगवान जी।
सुदर्शन चचा भी हाथों में लिए तंबाकू को मुँह की दिशा देते हुए व्यंग्य में कह ही दिए – हाँ आज कमलवा के बेटी अंजुवा का बियाह है न! उसी की चिंता हो रही है तुमको।
चाची ने खिसिया कर फिर डाँटा – बीच में बोलने का आदत पड़ गया है? कौन सा नेकी कर दिया है कमलवा ने हमरे साथ। एगो लौकी की बात पर पिछले साल तीन दिन झगड़ा की थी। हम भूल गए हैं का? ऊ छछुन्नर डोली – कंहार लेकर आए तब भी हम ना जाएँगे उसके अंगना में।
उधर बियाह में मांडो के बाँस हिल रहे थे और मांडो में लगा “अंजू संग राकेश” वाला बोर्ड भी हिल रहा था। भुकभुकिया लाईट से घर के सभी कोने चहक रहे थे। छत पर बड़का -बड़का साउंड बाक्स अपनी औकात से चार लाठी आगे निकल कर गा रहे थे –
धीरे-धीरे, धीरे-धीरे, आँखों में छा रहे हो
चुपके-चुपके, चुपके-चुपके, दिल में समा रहे हो
झुकती हुईं ये पलकें, खुलते हुए ये गेसू
ये शर्म की अदाएँ, वो शोखियों का जादू
कैसे-कैसे, कैसे-कैसे,सपने दिखा रहे हो।
छत के एक कोने में सबसे अलग खड़ी एक लड़की गाने में खोई-खोई सी बड़ी अदा से गाल पर बिखर आए गेसुओं को कानों के पीछे ले जाकर अटका रही थी।
थोड़ी दूर मोबाइल में लगे हुए प्रवीण बाबू उस लड़की, गाने और खुद में काम्बीनेशन मिला रहे थे लेकिन बोलें कैसे! रिश्तेदारी में आई लड़की है! पता नहीं शादीशुदा है कि नहीं? लेकिन सिंदूर तो लगाई नहीं है और साड़ी पहनने का तो फैसन ही है।
फिर धीरे-धीरे टहलते हुए से लड़की की ओर बढे और कहा – अच्छा ई गाना तो ‘वीर-जारा’ फिलिमवा का है न?
लड़की ने हल्के से चौंक कर देखा और कहा- हाँ।
प्रवीण बाबू ने बात आगे बढ़ाई – हमारा फेवरेट फिलिम यही है। अच्छा आपका नाम भी प्रीति ही है न?
लड़की ने कहा – नहीं तो हमारा नाम प्रतिभा है। आपको कैसे लगा कि हमारा नाम प्रीति होगा?
प्रवीण बाबू बोले – नहीं मतलब सेम टु सेम वीर जारा वाली प्रीति जिंटा जइसा दिखतीं हैं न आप तो हमको लगा कि….
प्रतिभा हँस पड़ी और प्रवीण बाबू को वो सीन याद आ गया जब शाहरूख खान प्रीति जिंटा को हेलीकॉप्टर से बचा रहे होते हैं।
उधर सुदर्शन चचा दुआर पर अपने उन परम दोस्तों के साथ ताश खेलने में लगे थे जिन्हें चाची परम आवारा कहती थीं। चाची अंजुवा के बियाह की बात सोचते सोचते थोड़ा लेटी ही थीं कि उन्हें नींद आ गई और उन्होंने देखा कि कमला चाची उनका पैर पकडे रो रही हैं – ए दीदी! हमसे न जो कुछ कहासुनी हुआ था वो हुआ था अंजुवा तो आपे की बेटी है आपके बिना बियाह कैसा लगेगा? चलिए जल्दी बाराती आ गए हैं गारी गाना है…
अचानक चाची की नींद टूटी वो उठ बैठीं और जल्दी से ललका साड़ी पहना, लिलार में सेनुर, पांव में आलता लगाया और बाहर ताश खेल रहे सुदर्शन चाचा को आवाज़ दी -ए मोनू के पापा! सुनिए जल्दी से तो।
सुदर्शन चचा ना चाहते हुए भी उठकर आए और बोले – का बात है? ई एतना सज-धज कर कांहे बुलाई हो?
चाची ने अधीर होकर कहा -हम कमलवा के घरे जा रहे हैं । जब पास में हैं तो बोल-ठोल होइबे करेगा। आ अंजुवा खाली कमलवा की बेटी थोड़े है हमरी गोदी में भी ओतने पली – पढ़ी है। बेटी तो पूरे गाँव की होती है…
ताश के पत्तों को लिए बैठे पदारथ भइया ने समर्थन किया – हाँ एकदम सही कह रही हैं चाची। बेटी से कइसी दुश्मनी है जी!
सुदर्शन चचा खीझ कर बोले – तुम्हारी बुद्धि का पता ही नहीं चला आज तक। कब हाँ का ना हो जाएगा.. हे भगवान।
चाची जल्दी जल्दी पैर बढ़ाती हुई कह गईं – अच्छा सुनिए! खाली दुआर पर पांच आदमी बैठाने का ढंग आता है?मझिला घर में दही रखा है सबको खिला दीजिए आ अपनो खा लीजिएगा।
इस एक वाक्य पर ताश खेल रहे गाँव के सभी भूतपूर्व आवारों के समूह ने जा रही चाची को सरधा से देखा था।
उधर प्रतिभा से बात करते हुए प्रवीण बाबू ने कहा – अच्छा फेसबुक पर हैं आप?
प्रतिभा ने उनका रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करते हुए कहा – परवीन जी क्या करते हैं आप?
प्रवीण बाबू ने बताया – एम एड् कर रहे हैं।
प्रतिभा ने हँस कर कहा – बर्बाद होने के लिए बी एड् ही काफी नहीं था कि एम एड् करने लगे!
प्रवीण बाबू को थोड़ा बुरा लगा लेकिन उन्होंने हँस कर पूछा – आपने भी बी एड् किया है क्या?
प्रतिभा ने गाल पर आ रहे बालों को फिर हटाते हुए कहा – नहीं हम पीएनबी में क्लर्क हैं और बी एड् आपके ‘जीजा’ ने किया है। वो ही तो हैं सामने देखिए…
प्रवीण बाबू के अंदर कुछ टूटा उधर लाउडस्पीकर अभी भी पूरी आवाज़ में चीख रहे थे – तू प्यार है किसी और की तुम्हें चाहता कोई और है…
बियाह शादी सकुशल बीत गया। पूरी रात कौशिला चाची और कमला चाची ने गीत गाया। उन दोनों के बीच का झगड़ा ना जाने कबका आँसुओं के साथ ही बह चुका था। कौशिला चाची ने अंजू को बिदा करते हुए भरे गले से कहा – ए अंजू अपने दुलहा का फोटो हमरी व्हाट्स ऐप पर भेज देना आ वहाँ पहुँचते ही मैसेज कर देना। लेकिन अंजुवा की बिदाई में कौशिला चाची ज्यादा रोईं कि कमला चाची कहना मुश्किल है।
हाँ! अगले दिन गाँव के मोड़ पर बाजार से लौटते हुए प्रवीण बाबू को काटकर एक मोटरसाइकिल आगे निकली। प्रवीण बाबू ने झटके से ब्रेक मारा और बर्बाद निगाहों से जाती हुई उस औरत को मुड़कर देखा जिसने अब साड़ी पहन रखी थी। और दूर कहीं फिर वही गाना बज रहा था – तू प्यार है किसी और की…