औरंगजेब भारतीय इतिहास का सबसे विवादास्पद तानाशाह है। यह सच है कि उसके अधीन मुगल साम्राज्य अपने चरम पर पहुंच गया था, लेकिन औरंगजेब एक बहुत क्रूर शासक था, या ये भी कह सकते है की वो राक्षस के समान था।औरंगजेब ने सिर्फ एक मंदिर को नष्ट कर उस पर मस्जिद का निर्माण ही नहीं किया था बल्कि सभी मंदिरों को नष्ट करने का और उन सब पर मस्जिदों का निर्माण करने का आदेश भी दिया था जिसमे हिन्दू धर्म का सबसे पवित्र स्थान काशी विश्वनाथ मंदिर भी शामिल था| मथुरा में क्रिशन जी का जनम स्थान,गुजरात के तट पर सोमनाथ मंदिर जिसका पुनर्निर्माण किया गया था; विष्णु मंदिर जहां पर अलमगिर मस्जिद का निर्माण किया गया था और अयोध्या में त्रेता-का-ठाकुर मंदिर ऐसे कुछ उदहारण है जिन्हें औरंगजेब द्वारा नष्ट किया गया था।
औरंगजेब ने न केवल मंदिरों को नष्ट किया बल्कि उसने उनके उपयोगकर्ताओं को भी मिटा दिया,यहां तक कि उसने अपने भाई दारा शिकोह को हिंदू धर्म में रुचि लेने के लिए मार डाला था; सिख गुरु तेग बहादुर का सिर काट दिया गया था क्योंकि उन्होंने औरंगजेब के मजबूर कर धर्म रूपांतरणों पर आपत्ति जताई थी।
पर्सिवल स्पीयर जो की रोमिला थापर के साथ प्रतिष्ठित किताब “A History of India” में सह लेखक है वै लिखते हैं की औरंगजेब की असहिष्णुता पृथक कृत्यों पर आधारित एक शत्रुतापूर्ण कथा से थोड़ा अधिक है। वहीं इसी किताब के फ्रांस के संस्करण के लेखक (Fayard) औरंगजेब की प्रशंसा करते हुए लिखते हैं कि, ‘वह हिंदू कट्टरपंथियों द्वारा बदनाम किया गया है”। यहां तक कि भारतीय राजनेता भी औरंगजेब के बुरे कामों से अनजान हैं|हो सकता है की नेहरू इसके बारे में जानते हो, लेकिन उन्होंने अपने किसी स्वार्थों की वजह से इसपे चुप्पी साधे रखी और यहाँ तक की इतिहासकारों को निर्देश दिए की वो औरंगजेब को विनाशकारी के बदले कला के एक परोपकार के रूप में उसकी प्रशंसा करे।
मार्क्सवादी इतिहासकारों की छः पीढ़ियों ने हमेशा यही किया है और सच्चाई के प्रति अपनी निष्ठा को धोखा दिया है। बहुत कम लोग इस बारे में जानते है की औरंगजेब ने किसी भी प्रकार के संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया था और चित्रकारों को उसके गुस्से से पलायन करना पड़ा और राजस्थान के कुछ दोस्ताना महाराजाओं के साथ शरण लेनी पड़ी।
हमने सोचा कि हमें इस मामले की जड़ तक जाना चाहिए। इतिहास (जैसे पत्रकारिता) दस्तावेज़ीकरण और पहले अनुभव के बारे में है| हमने औरंगजेब को उसके स्वयं के दस्तावेजों के अनुसार ही दिखाने का फैसला किया। औरंगजेब द्वारा फारसी में लिखी हुई उनकी अनगिनत मूल शिलालेखों जिन्हें “फरमान” के नाम से जाना जाता है, भारत के संग्रहालयों में है विशेष रूप से राजस्थान में जैसे की बीकानेर अभिलेखागार में| सोमनाथ मंदिर का विनाश; हाथियों द्वारा जाजिया कर का विरोध करने वाले हिंदुओं का कुचलना, हिंदुओं पर घोड़ों और पालकी की सवारी करने के लिए प्रतिबंध लगाना या तेग बहादुर और दारा शिकोह को मारना जैसे अनगिनत ऐसे कुकर्म है जो औरंगजेब द्वारा किये गये|
बहुत लोग सोचरे होंगे की हाँ यह सब ठीक है, यह सब सच है, औरंगजेब वास्तव में एक राक्षस था, लेकिन हम इस बात को क्यूँ उठा रहे है जबकि हम जानते है की आज मुसलमानों और हिंदुओं के बीच पहले ही तनाव है|इस के दो कारण हैं। सबसे पहला यह है कि कोई भी राष्ट्र आगे बढ़ नहीं सकता जब तक कि उसके बच्चों को अपने इतिहास, अच्छे और बुरे, शुद्ध और विशुद्ध को सिखाया न जाए और दूसरा सचाई जो भी हो वो सब के सामने आंनी चाहिए और समुदाओं को आपस में लड़ने की बजाए वास्तविकता को सवीकार करना चाहिए|
औरंगजेब हिटलर था, मध्ययुगीन भारत का असुर था। हिटलर के नाम पर पश्चिम में कोई सड़क नही है, फिर हमारे भारत की राजधानी में नई दिल्ली में औरंगजेब रोड क्यूँ थी जो औरंगजेब द्वारा भारतीयों पर किये हुए जुल्मों की याद दिलाती थी| अच्छा हुआ जो अब इसका नाम बदल कर अब्दुल कलाम रोड रख दिया गया है|
औरंगजेब सोचता था कि सुन्नी इस्लाम धर्म का शुद्धतम रूप था और उसने क्रूर दक्षता के साथ इसे लागू करने की मांग की थी। 70 के दशक में कश्मीर मुस्लिम, जो परिवर्तित हिंदुओं का वंशज है, सोचते थे कि अल्लाह ही सच्चा परमेश्वर है, लेकिन वह अपने कश्मीरी पंडित पड़ोसी को स्वीकार करते थे और उसके यहाँ शादी पे जाते है, उसके घर में खाते थे और बदले में हिन्दू मस्जिद में जाते है| उनके बीच कोई भी भेद भाव नही थे| महिलाऐं बिना बुरके के कहीं भी आ जा सकती थी|
लेकिन फिर औरंगजेब की छाया कश्मीर पर पड़ गयी और कट्टरपंथी सुन्नी पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आगये और सिनेमाघरों को प्रतिबंधित कर दिया गया, बुरके को लागू कर दिया गया| 400,000 कश्मीरी पंडितों को हिंसा के माध्यम से कश्मीर से बाहर कर दिया गया और अपनी जमीन से ही वो अपने ही देश में शरणार्थी बनगये| आज शरीयत कश्मीर में है, उत्तर प्रदेश के मुसलमानों की सराहना की जा रही है और भारतीय मीडिया जो कुत्तों की तरह भोंकने लगता है जब सरकार वंदे मातरम् गाने के लिए कहती है अब शांत है।
लेकिन भारत में आज जरूरत है,भारत में ही नही वास्तव में दुनिया में जरूरत है एक दारा शिकोह की जो इस्लाम में अपने पैगंबर की सर्वोच्चता में विश्वास ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों को भी स्वीकार करता है, प्रत्येक में अच्छा देखता है, उनका भी अध्ययन करता है| इस्लाम को लगभग 15 सदियों पहले बनाये गये अपने ग्रंथों को अपनाने की जरूरत है। कबीर, दारा शिकोह और कुछ सुफी संतों ने इस कार्य का प्रयास किया था लेकिन विफल रहे|