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डोकलाम विवाद पर बोले यूरोपीय संसद के वाइस प्रेजिडेंट, चीन को भारत की इतनी कड़ी प्रतिक्रिया का अंदाजा नहीं था

ब्रसेल्स। सिक्किम सीमा पर डोकलाम क्षेत्र में भारत की इतनी कड़ी प्रतिक्रिया का अंदाजा चीन को नहीं था। यूरोपीय संसद के वाइस प्रेजिडेंट अरेसार्द चारनियेत्सकी ने अपने एक लेख में यह टिप्पणी की है। चारनियेत्सकी ने ‘ईपी टुडे’ में लिखे एक लेख में कहा है कि चीन को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि भारत भूटान सीमा की रक्षा के लिए इतने कड़क अंदाज में पेश आएगा। बता दें कि 16 जून को चीन की सेना ने डोकलाम क्षेत्र के डोकला से जोम्पेलरी स्थित भूटान आर्मी के कैंप की ओर सड़क बनाने की शुरुआत की, जबकि भूटान और चीन के बीच सीमा पर बातचीत जारी है। इसके बाद भारत ने इसमें हस्तक्षेप किया। डोकलाम में भारतीय सेना और चीनी सेना में तनातनी के बाद दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण माहौल है।

यूरोपीय संसद के वाइस प्रेजिडेंट ने अपने लेख में चीन के उस झूठ का भी पर्दाफाश किया जिसमें पेइचिंग ने कहा था कि उसके ‘शांतिपूर्ण उदय’ के कारण किसी देश को तकलीफ नहीं होगी। उन्होंने कहा कि चीन उस विदेश नीति को अपना रहा है जो अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत मान्य नहीं है। चीन इन दिनों सीमा विवाद के लिए भारत को जिम्मेदार बताकर रोजाना बयानबाजी कर रहा है। भूटान ने कहा कि हमारा 1988 और 1998 का लिखित समझौता भी है, जिसमें कहा गया है कि सीमा मुद्दे के अंतिम समाधान होने तक दोनों पक्ष अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए सहमत हैं। मार्च 1959 के पहले की तरह सीमा पर यथास्थिति बनाए रखी जाएगी। समझौतों में यह भी कहा गया है कि दोनों पक्ष किसी तरह की एकतरफा कार्रवाई से बचेंगे, बल प्रयोग नहीं करेंगे और सीमा की स्थिति बदलने की कोशिश भी नहीं करेंगे।

चारनियेत्सकी ने डोकलाम विवाद का जिक्र करते हुए लिखा है, ’16 जून को डोकला में सड़क बनाने का एकतरफा फैसला उसकी गलत विदेश नीति का हिस्सा है। भूटान ने चीन के इस कदम का सही कूटनीतिक रास्ते के जरिए विरोध जताया था। चीन को इस बात का अहसास था कि भूटान ऐसा की करेगा, लेकिन उसे बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि भारत अपने पड़ोसी भूटान की मदद के लिए इतनी ताकत से आगे आएगा।’ उन्होंने कहा कि चीन यह मानकर चल रहा था कि भूटान उसके इस कदम का सेना के जरिए तो कम-से-कम विरोध नहीं ही जताएगा। उसे भरोसा था कि जोम्पेलरी में वह सड़क का निर्माण कुछ सप्ताह में कर लेगा, जिससे उसे बड़ा रणनीतिक फायदा मिलता।

यूरोपीय यूनियन के वाइस प्रेजिडेंट ने कहा हालांकि सबकुछ चीन की योजना के अनुसार नहीं हुआ। भारतीय सेना ने भूटान सरकार से बात करने के बाद यथास्थिति के लिए कदम उठाया। यही बात संभवत: चीन के अंदाज के परे रही। चीनी विदेश मंत्रालय और उसकी सरकारी मीडिया ने वही घिसे-पिटे पुरानी बातें दोहरानी शुरू कर दीं। चीनी मीडिया ने भारत को 1962 युद्ध की याद दिलाई।

चारनियेत्सकी ने अपने लेख में कहा, ‘भारत के कदम के बाद चीन ने भारत का विरोध करना शुरू कर दिया। चीन का कहना है कि डोकलाम से भारतीय सेना हटने तक वह सीमा विवाद पर नई दिल्ली से कोई बात नहीं करेगा।’ उन्होंने कहा, ‘चीन को यह समझने की जरूरत है कि सैन्य ताकत और आर्थिक ताकत बढ़ने के साथ-साथ किसी देश को अंतरराष्ट्रीय नियमों का भी पालन करना चाहिए।’