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डोकलाम पर मुह की खाने के बाद नेपाल को अपने पक्ष में करने में जुटा चीन

नई दिल्ली। डोकलाम में डटे भारतीय सैनिकों पर युद्ध की धमकियों का कोई असर न होता देख अब चीन शायद कूटनीतिक दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। इसी क्रम में नई दिल्ली स्थिति चीनी राजनयिकों ने नेपाली अधिकारियों को इस मुद्दे पर अपना पक्ष बताया है। चीन का नेपाल के साथ इस विवाद पर चर्चा करना दो वजहों से बेहद अहम है। पहली बात तो यह कि भारत एक विवादित क्षेत्र में चीन और नेपाल के साथ एक ट्राइजंक्शन शेयर करता है। दूसरा कारण यह कि बीते कुछ वक्त से भारत अपने पड़ोसी नेपाल पर प्रभाव कायम करने के मामले में संघर्ष कर रहा है।

राजनयिक सूत्रों ने हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि डोकलाम मुद्दे पर चीनी डेप्युटी चीफ ऑफ मिशन ने अपने नेपाली समकक्ष से चर्चा की। चीनी अफसर ने हाल ही में नियुक्त नेपाली अधिकारी को चीन के रुख से अवगत कराया। हालांकि, इस मुलाकात को शिष्टाचार भेंट बताया गया। चीन और नेपाल के अफसरों के बीच ऐसी ही बैठकें काठमांडू और पेइचिंग में भी हुईं।

भारत ने सार्वजनिक तौर पर यह नहीं बताया है कि उसने इस मुद्दे पर दूसरे दूशों को अपने रुख की जानकारी दी है कि नहीं। हालांकि, कुछ हफ्ते पहले इस मुद्दे पर अमेरिकी डिप्लोमैट्स से चर्चा की थी। नेपाल ने इस मामले में अभी तक भारतीय अधिकारियों से कोई जानकारी नहीं मांगी है। हालांकि, नेपाल के बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि भारत, चीन और भूटान के बीच लंबे वक्त तक चला विवाद उनके हित में नहीं है।

दरअसल, नेपाल चीन और भारत के साथ दो ट्राइजंक्शन शेयर करता है। एक पश्चिमी नेपाल के लिपुलेख में और दूसरा पूर्वी हिस्से स्थित जिनसंग चुली में। बीते वक्त में नेपाल लिपुलेख को लेकर चिंतित रहा है। यह विवादित कालापानी इलाके में पड़ता है, जिसपर भारत और नेपाल, दोनों ही दावा करते रहे हैं। 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी ने लिपुलेख पास के जरिए चीन के साथ व्यापार बढ़ाने का फैसला लिया था। इस कदम से नेपाल काफी नाराज हुआ था। उसके संसद में मांग उठी कि भारत और चीन के ज्वॉइंट स्टेटमेंट में लिपुलेख का जिक्र हटाया जाए क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय नियमों के खिलाफ है। नेपाली संसद ने यह भी जानना चाहा था कि क्या भारत और चीन के समझौते से नेपाल की संप्रभुता या क्षेत्रीय अखंडता कमतर हुई कि नहीं?

संयोग है कि नेपाल में इस महीने भारत और चीन के बड़े नेता दौरे करेंगे। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज BIMSTEC की बैठक में शामिल होने के लिए अगले हफ्ते जाएंगी। वहीं, चीन के उप प्रधानमंत्री भी शीर्ष नेताओं से मुलाकात करने 14 अगस्त को नेपाल में होंगे। उम्मीद की जा रही है कि सुषमा और चीनी उप प्रधानमंत्री के बीच डोकलाम के मुद्दे पर चर्चा होगी। भारतीय अधिकारियों को पता है कि नेपाल में एक बड़ा भारत विरोधी तबका मौजूद है। अधिकारी यह बात जानते हैं कि पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली के समर्थक डोकलाम मुद्दे पर भारत को घुसपैठिए के तौर पर पेश कर सकते हैं। चीनी उप प्रधानमंत्री के दौरे पर सबकी नजरें इसलिए भी होंगी क्योंकि नेपाल के चीन के वन वेल्ट वन रोड (OBOR) प्रॉजेक्ट में शामिल होने के फैसले के आगे का रास्ता तय हो सकता है। भारत के विरोध के बावजूद नेपाल ने ओबीओआर में शामिल होने की रजामंदी दी थी।