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डॉनल्ड ट्रंप ने दिए चीन के प्रति सख्त नीति अपनाने के संकेत

donaldtrumpnewवॉशिंगटन । अमेरिका के नए राष्ट्रपति चुने गए डॉनल्ड ट्रंप का चीन के प्रति रवैया आगे चल कर चाहे जो भी रहे, पर फिलहाल उन्होंने चीन की प्रति सख्त नीति अपनाने के ही संकेत दिए हैं। ट्रंप के रुख को लेकर चीन के सरकारी मीडिया ने तो कड़ी प्रतिक्रिया दी ही है, साथ ही ओबामा प्रशासन की ओर से लगातार चेताया जा रहा है। सोमवार को वाइट हाउस के प्रवक्ता जोश अर्नस्ट ने कहा कि ताइवान के प्रति ताजा नजरिये से अमेरिका-चीन संबंधों को नुकसान पहुंच सकता है।

बता दें कि ट्रंप ने ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन से सीधे बातचीत की थी। उनका यह कदम 1979 में स्थापित अमेरिकी पॉलिसी के उलट था। तब के राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने चीन से एक समझौता किया था कि अमेरिका ताइवान से औपचारिक रिश्ते नहीं रखेगा क्योंकि चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है। यह बात और है कि ताइवान को सैन्य सामग्री बेचने के साथ ही अमेरिका के उसके साथ अन्य आर्थिक रिश्ते भी हैं। ट्रंप के इस कदम से चीन को एक झटका लगा है।

इसके अलावा ट्रंप ने ट्विटर के जरिए चीन की व्यापार और सैन्य नीति पर भी सवाल उठाए हैं। इस पर अर्नेस्ट ने कहा, ‘यह साफ नहीं है कि यह कैसा कूटनीतिक प्रयास है, यह समझाना मैं उन पर छोड़ता हूं।’ वैसे अभी तक ट्रंप के सलाहकार भी इस कदम के पीछे की मंशा को ठीक से समझा पाने में नाकामयाब रहे हैं। वे यह साफ नहीं कर पाए हैं कि ताइवान की नेता से बात करना क्या किसी नई नीति की ओर उठाया गया कदम है या फिर सिर्फ एक शिष्टाचार बातचीत। वाइट हाउस के चीफ ऑफ स्टाफ बनने वाले रेंस प्रीबस ने कहा कि ट्रंप को अच्छे से पता था कि वह क्या कर रहे हैं, वहीं उप राष्ट्रपति चुने गए माइक पेंस के मुताबिक यह सिर्फ बधाई देने के लिए की गई एक शिष्टाचार बातचीत थी।

दरअसल, ट्रंप ने तय किया है कि विदेश नीति के मामले में वह अनप्रिडिक्टबल रहेंगे। अंतरराष्ट्रीय जगत में उनकी नीति ऐसी होगी जिसका कोई अंदाजा न लगा सके। यह ओबामा की स्टाइल से बिल्कुल जुदा होगा, पर ट्रंप का यह अंदाज मित्र और दुश्मन देशों के लिए परेशान करने वाला होगा क्योंकि उनके मन में कई सवाल होंगे। वे समझ नहीं पाएंगे कि यह विदेश नीति सोची समझी रणनीति का हिस्सा है या इसे फौरी तौर पर बनाया जा रहा है।

उधर चीन की सरकार दूसरे देशों के साथ, खास तौर पर अमेरिका के साथ संबंधों में प्रिडिक्टबिलिटी चाहती है। अमेरिका और चीन दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं जिनके बीच होने वाला व्यापार 660 बिलियन डॉलर के आसपास पहुंच चुका है।

हालांकि साउथ चाइना सी में चीन द्वारा आइलैंड बनाए जाने को लेकर अमेरिका और चीन के बीच कड़े मतभेद रहे हैं और अमेरिका चीन पर साइबर चोरी का आरोप भी लगाता रहा है, पर फिर भी दोनों देशों ने जलवायु परिवर्तन और ईरान परमाणु समझौते को लेकर एक दूसरे को सहयोग दिया है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप के कार्यकाल में चीन-अमेरिका संबंध किस दिशा में जाते हैं।