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जो पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने नहीं किया, वह मोदी ने कर दिखाया!

atal-modiनई दिल्ली। उड़ी हमले का ‘बदला’ लेने के साथ ही 29 सितंबर का दिन प्रधानमंत्री मोदी और देश दोनों के लिहाज से यादगार रहा। उड़ी में हुए हमले के बाद से लगातार विपक्ष के निशाने पर चल रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक कदम ने विपक्ष और लोगों के गुस्से को जहां न सिर्फ शांत कराया, बल्कि रातोंरात उनकी लोकप्रियता में भी कई गुना इजाफा कर दिया। पाकिस्तान पर कार्रवाई न करने को लेकर न सिर्फ बाहर से, बल्कि सरकार और पार्टी के भीतर से आवाजें उठने लगी थीं।

आखिरकार सरकार ने कड़ा फैसला लिया और पीओके में घुसकर स्पेशल फोर्सेस के जवानों ने आतंकी कैंपों को तबाह कर दिया। इस फैसले ने प्रधानमंत्री मोदी को पोखरण- II जैसा परमाणु परीक्षण करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भी एक कदम आगे कर दिया। वह इस तरह, क्योंकि 2001 में संसद पर हमले के बाद वाजपेयी पर भी दबाव था कि वह पाकिस्तान को उसकी सीमा में घुसकर जवाब दें, लेकिन उन्होंने एलओसी को पार न करने का फैसला किया था। मोदी ने यह कर दिखाया।

हालांकि एलओसी क्रॉस कर दुश्मन पर हमला करने का फैसला लेने के पीछे एक दिक्कत यह भी थी कि इससे बात बिगड़ने का डर था, लेकिन केंद्र सरकार इसके लिए तैयार थी। जो पाकिस्तान इतने दिनों से धमकियां दे रहा था, उसे भी आखिरकार समझ आ गया कि इस तरह की लड़ाइयों में नुकसान सिर्फ एकतरफा नहीं होगा।

कुछ दिनों पहले ही बीजेपी के एक बड़े नेता ने कहा था, ‘इस वक्त जरूरत है कि पाकिस्तान को कुछ तो नुकसान उठाना ही पड़ेगा।’ हालांकि सेना के इस ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के बाद पार्टी में खुशी की लहर है और विपक्ष ने भी सरकार को अपना पूरा समर्थन दिया है।

अगर केंद्र सरकार ‘अचानक’ मिली इस लोकप्रियता को बरकरार रख पाती है, तो इसका फायदा आने वाले यूपी चुनावों में भी मिल सकता है। जहां उसका सीधा मुकाबला एसपी और बीएसपी से है। बिहार की हार और गुजरात-कर्नाटक में अगले साल होने वाले चुनाव के लिहाज से यूपी के चुनाव बीजेपी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।