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जिला परिषदों पर कब्जे के लिए सबने सबसे हाथ मिलाया

मुंबई। जिला परिषद की सत्ता हथियाने के लिए राजनीतिक दलों ने नैतिकता, सिद्धांत, विचारधारा की पूरी तहर से तिलांजलि दे दी। सभी दलों का एक ही लक्ष्य। किसी भी तरह से जिला परिषद पर कब्जा जमाना। बीजेपी की रणनीति काम आई। वह नंबर वन निकली और सबसे ज्यादा 10 जिला परिषदों पर कब्जा जमाया। वहीं शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने क्रमश: 5-5-5 सीटें जीतीं। मंगलवार को राज्य में 25 जिला परिषदों में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पद का चुनाव हुआ।

जिला परिषद चुनाव में कांग्रेस ने शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। वहीं, बीजेपी ने भी शिवसेना और कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने के लिए एनसीपी से हाथ मिलाया। इस संबंध में राजनीति दल के नेता कहते हैं कि स्थानीय निकाय के चुनावों में स्थानीय नेता निर्णय लेते हैं। वे जिसके साथ चाहे गठबंधन करने की सिफारिश कर सकते हैं। स्थानीय नेताओं की सिफारिश को प्राथमिकता दी जाती है। उसकी हिसाब से जिला परिषद के चुनाव लड़े गए।

बीड में धनंजय मुंडे जीतकर भी हार गए
जिला परिषद चुनावों में बीड जिले में दिलचस्प तस्वीर दिखाई दी। वहां से एनसीपी को सबसे ज्यादा सीटें मिली, जबकि बीजेपी को कम सीटें मिली थीं। चुनाव नतीजे को लेकर ग्रामीण विकास मंत्री पंकजा मुंडे बहुत निराश हुईं, जबकि धनंजय मुंडे का राजनीतिक कद बढ़ गया। लेकिन अध्यक्ष के चुनाव में धनंजय मुंडे मात खा गए। पंकजा ने सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली धनंजय की पार्टी एनसीपी को सत्ता हासिल नहीं करने दी। मंत्री पंकजा ने एनसीपी नेता व पूर्व राज्य मंत्री सुरेश धस के साथ हाथ मिलाकर बीड जिला पंचायत पर बीजेपी का झंडा बुलंद कर दिया।

शिवसेना ने कांग्रेस से हाथ मिलाया
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रावसाहब दानवे को उनके गृह जिले जालना में शिवसेना ने उन्हें जोर का झटका दिया है। वहां शिवसेना का अध्यक्ष और एनसीपी का उपाध्यक्ष बना है। औरंगाबाद में भी शिवसेना ने कांग्रेस को समर्थन देकर बीजेपी को जिला परिषद अध्यक्ष से दूर कर दिया। नाशिक जिला परिषद में शिवसेना ने कांग्रेस और माकपा के सहयोग से सत्ता हासिल की। वहीं जलगांव में बीजेपी ने सत्ता पाने के लिए कांग्रेस की मदद ली। रायगड में राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुनील तटकरे की बेटी अदिति तटकरे जिला परिषद अध्यक्ष चुनी गईं।