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चीन दगा दिया ही, रूस का साथ भी नहीं मिला

bricsपणजी। ब्रिक्स घोषणापत्र में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर का नाम चीन के अड़ंगा के कारण शामिल नहीं किया जा सका था, लेकिन भारत के लिए सबसे ज्यादा सोचनीय बात यह रही कि इस मुद्दे पर उसका करीबी सहयोगी रूस ने कोई झुकाव नहीं दिखाया। इस वजह से घोषणापत्र में भारत का मुख्य मुद्दा राज्य प्रायोजित आतंकवाद शामिल नहीं किया जा सका।

सूत्रों के अनुसार मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में रूस को चीन की ज्यादा जरूरत है। भारतीय अधिकारियों के लिए रूस का रवैया अभी भी समझ से परे है। रूस ने जैश-ए-मोहम्मद का नाम घोषणापत्र में शामिल कराने में भारत का कोई साथ नहीं दिया लेकिन वह खुद सीरियाई संगठन जबाहत-अल-नुसरा का नाम इसमें शामिल कराने में सफल रहा।

रूस सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद के पक्ष में नुसरा पर लगातार हमले करता रहा है। नुसरा, जैश, और लश्कर संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित संगठनों की सूची में शामिल है। कूटनीति मामलों के जानकार बह्मा चेल्लानी ने कहा कि रूस ब्रिक्स घोषणापत्र में भारत की चिंता को दर्शाना तो चाहता होगा लेकिन चीन की मौजूदगी के कारण वह ऐसा करने से बचा। उन्होंने कहा,’इसी कारण घोषणापत्र में राज्य प्रयोजित आतंकवाद का मुद्दा शामिल नहीं किया जा सका। हालांकि इसमें ISIS और अल नुसरा का नाम को शामिल कर लिया गया। लेकिन इस घोषणापत्र ने भारत के लिए ब्रिक्स की उपयोगिता पर ही सवाल खड़े कर दिए।
रूस ने जहां भारत के लिए कुछ खास नहीं किया वहीं चीन ने पाकिस्तानी आतंकवाद को न केवल संयुक्त राष्ट्र बल्कि ब्रिक्स में भी पूरी तरह से बचाया। ब्रिक्स सम्मेलन में सुरक्षा संबंधी मसले पर रूस निश्चित तौर पर विजेता के तौर पर उभरा। चेल्लानी ने कहा,’चीन ने ब्रिक्स के मंच का इस्तेमाल आर्थिक और राजनीतिक हित के तौर पर किया। लेकिन भारत को इससे क्या मिला?

गौरतलब है कि ब्रिक्स घोषणापत्र रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के पीएम नरेन्द्र मोदी को दिए गए उस आश्वासन के बाद आया था जिसमें उन्होंने कहा था रूस भारत के हितों के खिलाफ नहीं जाएगा।