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गृहयुद्ध में बेबस हुए कठोर नेता मुलायम,……..बढ़ रही है अखिलेश की ताकत

akhilesh-yadav-tipuलखनऊ। ‘दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आये क्यों, रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताये क्यों….(संग-ओ-ख़िश्त का मतलब पत्थर और ईंट)’ मिर्जा गालिब का ये शेर सोमवार को अखिलेश यादव पर पूरी तरह मौजूं हो रहा था। एसपी ऑफिस में चल रही मुलायम सिंह की मीटिंग में अखिलेश उनसे बार-बार यही तो पूछ रहे थे, कि कोई उन्हें सता क्यों रहा है। हालांकि इस बैठक के बाद अखिलेश पार्टी में और ताकतवर हुए हैं, क्योंकि न तो मुलायम ने उन्हें सीएम पद से हटाने की बात कही, न खुद को सीएम पद के लिए पेश किया। अखिलेश सहानुभूति की लहर पर भी सवार दिखे। पार्टी ऑफिस के बाहर जमा युवा कार्यकर्ता भी उनका भाषण सुन फूट-फूट कर रोते दिखे।

एसपी में चल रहे सत्ता संग्राम में अखिलेश एक ऐसे योद्धा के रूप में उभरे हैं, जो अपनों के ही तीर झेल रहा है। खास बात यह है कि ये तीर उन लोगों को बचाने के लिए चलाए जा रहे हैं जिनका दामन दागदार है। जैसे कि मुख्तार अंसारी और गायत्री प्रजापति। जैसे-जैसे एसपी का संकट गहरा रहा है अखिलेश का कद बढ़ रहा है। यह एक अजीब विरोधाभास है। इसकी एक वजह अखिलेश का सख्त रुख है। आमतौर पर यह देखा जा रहा था कि अखिलेश यादव पूरे साढ़े चार साल तक मुलायम समेत एसपी के बड़े नेताओं की छाया में काम कर रहे थे।

ब्यूरोक्रेसी में भी कुछ अधिकारियों के खिलाफ वे चाहकर भी कार्रवाई नहीं कर पा रहे थे। इससे उनकी छवि एक ढुलमुल सीएम की बन रही थी। लेकिन इस बार उन्होंने यू टर्न लिया है। वे अपने पक्ष पर टिके हुए हैं। हमारे देश में आमतौर पर बेटे को ही उत्तराधिकार शिफ्ट होता है। यहां भले ही मुलायम अखिलेश से अभी नाराज हों लेकिन ये भी सच है कि 2012 में वे अपना राजपाट अखिलेश को सौंप चुके हैं। अपनी जीवन भर से जुटाई ताकत अखिलेश को ट्रांसफर कर चुके हैं। यही वजह है कि सपा के कोर वोटर खासतौर से यादव अखिलेश में मुलायम की छवि देख रहे हैं।

अखिलेश की ताकत ये एक बड़ी वजह है। अखिलेश को भी यह समझ में आ चुका है कि यदि वे अभी कड़ा स्टैंड नहीं लेंगे तो उनका वोटर उन्हें भी माफ नहीं करेगा। इस कलह के बाद भले ही 2017 में सपा का प्रदर्शन कुछ खराब हो जाए लेकिन बतौर नेता अखिलेश पूरी तरह तैयार हो चुके होंगे। इसके बाद 2019 के लोकसभा और 2022 के विधानसभा में वे पूरी तैयारी के साथ मैदान में होंगे।

सोमवार को हुई मीटिंग में मुलायम के वो तेवर नहीं थे जिनके लिए वे जाने जाते हैं। मुलायम का पूरा राजनीतिक जीवन एक जुझारू और सख्त नेता का रहा है। अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने कई बड़े-बड़े नेताओं को पटखनी दी। कई संकट का मुकाबला किया। लेकिन इस बार ‘गृहयुद्ध’ में वे बेबस हैं। आखिर वे अपना चरखा दांव चलाएं भी तो किस पर। एक तरफ बेटा है तो दूसरी ओर भाई।

सिर्फ नसीहत देने के अलावा फिलहाल कुछ नहीं कर पा रहे हैं। मीटिंग में भी वे कोई समाधान न दे सके। दरअसल मुलायम परिवार की राजनीतिक इच्छाएं मुलायम के पुत्र अखिलेश पर भारी पड़ने लगी हैं। नेताजी ने अपने परिवार में सभी को राजनीतिक रूप से मजबूत कर दिया है। अखिलेश को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। कुल मिलाकर अखिलेश के आंसू और मुलायम की बेबसी पूरी समाजवादी पार्टी के हालात बयान कर रहे हैं।