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गांव की तस्वीर बदल देने वाले शिक्षक का हुआ तबादला, फूट-फूट कर रो पड़े गांव वाले

लखनऊ। जिस वक्त देश में प्राथमिक शिक्षा की हालत पतली हो. जिस वक्त देश में 60 लाख से ज्यादा बच्चे स्कूल की दहलीज तक भी ना पहुंच पाते हों. ऐसे वक्त में कुछ शिक्षक ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने दम पर दूसरे शिक्षकों के लिए मिसाल पेश की है. ये खबर यूपी के दो ऐसे शिक्षकों की है जिन्होने दिन-रात मेहनत कर ना सिर्फ स्कूल की बल्की गांव वालों की भी तस्वीर बदल दी. इन दोनों शिक्षकों का जब तबादला हुआ तो ना सिर्फ स्कूल के बच्चे बल्कि गांव के लोग भी फूट-फूट कर रोने लगे. देश के उन तमाम शिक्षकों को ये खबर जरूर पढ़नी चाहिए जो स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने की बजाए कामचोरी करते हैं. और सारा ठीकरा सिस्टम के माथे मढ़ देते हैं.

ये कहानी है देवरिया के गौरी बाजार स्थीत प्राथमिक स्कूल के एक टीचर अवनीश यादव की. अवनीश की पोस्टींग साल 2009 में हुई थी. अवनीश ने जब स्कूल में कार्यभार संभाला तो वहां के हालात बहुत बुरे थे. कक्षा में दो या तीन बच्चे उपलब्ध रहते थे. अवनीश ने जब वजह जानने की कोशिश की तो पता चला कि गांव में रहने वाले ज्यादातर लोग मजदूर हैं. और अपने बच्चों को अपने साथ काम कराने के लिए लेकर जाते थे. ऐसी स्थिति को देखकर उन्होंने लोगों के घर-घर जाकर संपर्क करना शुरु कर दिया. काफी मशक्कत के बाद लोग अपने बच्चे को स्कूल भेजने के लिए तैयार हो गए. धीरे-धीरे अवनीश की मेहनत रंग लाई. स्कूल बच्चों से भर जाने लगा. 6 साल में दिन रात एक कर अवनीश ने स्कूल के बच्चों को इतना पढ़ाया कि जिन्हे पहले कुछ लिखना नहीं आता था वो अंतराष्ट्रीय मुद्दों पर बात करने लगे. अवनीश की मेहनत का सम्मान गांव वालों ने भी खूब किया. जब उनका तबादला हुआ तो स्कूल में मातम छा गया. बच्चे रो-रो कर कह रहे थे कि मास्टर साहब आप हमें छोड़कर मत जाओ. बच्चे तो बच्चे उनके माता-पिता भी मास्ट साहब के तबादले की खबर पर रो पड़ें.

ये कहानी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शाहबाद इलाके के रमपुरा गांव के सरकारी स्कूल के प्रिंसपल मुनिश कुमार की है. कार्यभार संभालकर वो जी जान से बच्चों तो पढ़ाने में लग गए. उन्होंने भी स्कूल की तस्वीर बदल दी. देखते ही देखते स्कूल में बच्चे कार्मेंट स्कूल से अच्छी शीक्षा पाने लगे. स्कूल को मुनिश कुमार ने जिले का बेस्ट स्कूल बना दिया. लेकिन फिर अचानक से उनके तबादले की खबर आ गई. पूरे गांव के लोग मुनिश के तबादले दुखी थे. कई लोग तो यह कह कर रो रहे थें कि अब उनके बच्चों को कौन पढ़ाएगा. गांव वाले उनके बारे में कहते हैं कि उन्होंने ना सिर्फ उनके बच्चों की बल्कि उनकी भी जिंदगी उन्होने बदल दी है.