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क्या जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की रहस्यमयी मृत्यू के पीछे नेहरू का हाथ था?

जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक जाने माने राजनेता, विद्वान और बेरिस्टर थे। जवाहरलाल नेहरू की सरकार में उद्यॊग और आपूर्ती मंत्रायल भी उन्हॊंने संभाला था। माना जाता है की मुखर्जी नेहरू के राजकीय भविष्य के कड़े प्रतियॊगी थे। जनम से ही कुटिल नेहरू यह कभी बरदाश नहीं कर सकते थे की कॊई उनसे प्रतिभाशाली हो। सावरकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल, सुभाष चंद्र बॊस और अंबेडकर जैसे विद्वानों को पीठ पे छूरा खॊप कर खुद को महान बताते हुए देश के प्रधानमंत्री बन बैठे।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी का यह दृढ़ विश्वास था की मुखर्जी की हत्या नेहरू की केंन्द्र सरकार और जम्मू कश्मीर की सरकार के षड्यंत्र से ही हुई थी। अटलजी उन दिनों मुखर्जी के बहुत निकट हुआ करते थे और वह कहते हैं की श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू और कश्मीर की एकता और उसे भारत से जोड़े रखने की लगातार कॊशिश में लगे हुए थे। अटलजी का कहना था की यह मुखर्जी के त्याग का ही फल था की जम्मू और कश्मीर भारत से जुड़ा हुआ था।

मुखर्जी ने कश्मीर के अंदर जाने के लिए लगाई गयी अनुज्ञा पत्र का नियमॊल्लंघन करते हुए कश्मीर में प्रवेश किया था। एक पत्रकार जो उस समय मुखर्जी के साथ थे उनका कहना है की उन्हे लगा था की पंजाब पुलिस मुखर्जी को गिरफ़्तार कर लेगी और उन्हे आगे जाने से रॊकेगी। लेकिन आश्चर्य था की ऐसा नहीं हुआ। दर असल नेहरू और कश्मीर के सरकार की यह मिली भगत थी की मुखर्जी को कश्मीर के अंदर जाने दिया जाएगा लेकिन बाहर आने नहीं दिया जाएगा।

अटल जी ने नेहरू और जम्मू कश्मीर सरकार पर यह आरॊप लगाए थे की मुखर्जी के खिलाफ़ जानबूज़ कर षड्यंत्र रचा था की उन्हें कश्मीर के अंदर आने दिया जाएगा वरना लॊग सरकार से सवाल पूछेंगे। लेकिन कश्मीर के अंदर आते ही उन्हे गिरफ़्तार किया जाएगा और वापस जाने नहीं दिया जाएगा। और श्रीनगर में मुखर्जी को 11 मई 1953 को गिरफ़्तार कर लिया गया।

पहले मुखर्जी को श्रीनगर के केंद्र काराग्रह में रखा गया लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें वहाँ से निकाल कर शहर के बाहर एक कुटिया में रखा गया। मुखर्जी की तबीयत दिन ब दिन खराब होती चली गयी, उनके पीठ में भी दर्द शुरु होगया था। 19-20 जून को उनको तेज़ बुखार भी था। डॉक्टर के अनुसार फुस्फुस के आवरण में शॊथ हुआ था। डॉक्टर अली मोहम्मद ने उनकॊ स्ट्रेप्टोमाईसीन दवाई दिया। लेकिन मुखर्जी ने अली मोहम्मद से कहा की उनके निजी डॉक्टर के अनुसार स्ट्रेप्टोमाईसीन से उन्हें अलर्जी है।

लेकिन अली मोहम्मद ने उनसे कहा की अब दवाई बदलगयी है और इस दवाई से वे ठीक होजाएंगे। लेकिन 22 जून को उनकी छाती में दर्द होना शुरू हॊ जाता है और उन्हे मूर्छित हॊने का आभास हॊता है। उन्हे नज़दीकी अस्पताल में ले जाया जाता है और अगले ही दिन यानी 23 जून कॊ बड़े ही रहस्यमयी तरीके से उनकी मृत्यू हॊ जाती है। अस्पताल के डॉक्टर के अनुसार मुखर्जी की मौत ह्रदय स्थंबन की वजह से हुई थी । लेकिन अस्पताल के एक नर्स के अनुसार जब वह श्यामाजी के करीब पहुँची तो उनकी हालत बहुत ही नाज़ुक थी। वे सहायता के लिए डॉक्टर को बुला रहे थे नर्स ने डॉक्टर जगन्नाथ ज़ुत्शी को बुलाया लेकिन कुछ ही देर में मुखर्जी चल बसे। उस नर्स ने मुखर्जी की बेटी सबिता से कहा था की डॉक्टर जगन्नाथ ज़ुत्शी ने मुखर्जी को एक जेहरीली दवाई खिलाई थी जिस की वजह से उनकी मृत्यू हो गयी।

मुखर्जी की  माता जोगमई देवी ने नेहरू से अपने बेटे के रहस्यमई मृत्यू के बारे में प्रश्न पूछा तो नेहरू ने कहा मुखर्जी के मृत्यू के पीछे कॊई षड्यंत्र नहीं था और उनकी मौत सहज रूप से ही हुई थी। लेकिन मुखर्जी की माता यह बात मानने को तयार नहीं थी और इस मृत्यू की वजह की प्रामाणिक जाँच की माँग करते हुए नेहरू को खत लिखा। जैसा की अपेक्षा थी नेहरू ने मुखर्जी के माँ के लिखे खत को अनदेखा करदिया और इस बात को दबा दिया। और इस तरह से श्यामा प्रसाद मुखर्जी की  मृत्यू के पीछे का रहस्य दब ही गया।

यह बात तो किसी से छुपी नहीं है की नेहरू अपनी राजनीती को चमकाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है। मुखर्जी के रहस्यमई मृत्यू के पीछे का परदा तो ठीक वैसे ही कभी नहीं खुलेगा जैसे सुभाष चंद्र बोस के मृत्यू का रहस्य ।