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कुमार विश्वास को केजरीवाल का फाइनल सलाम, जन्मदिन पर सब कुछ खुल्लम खुल्ला

नई दिल्ली। कुमार विश्वास के दिल पर क्या गुजर रही है ये उनके अलावा पूरी दुनिया को पता है, शायद उनको भी पता हो, लेकिन वो इसका इजहार नहीं कर पा रहे हैं। ये बेबसी और ये लाचारी कुमार के व्यक्तित्व से मेल नही खा रही है, अपनी हर बात को बेबाकी के साथ कहने वाले कविराज आज खामोश हैं, आम आदमी पार्टी के साथ  कुमार का सफर शायद पूरा हो गया है, जिस पार्टी को आंदोलन की भुरभुरी जमीन से निकाल कर अपनी कविताओं के जरिए सींचा था, वही पार्टी आज पराई हो गई है, पराएपन का ये एहसास उस समय और परेशान करता है कि जब आपकी जिंदगी का सबसे अहम दिन हो और आप खुद को तन्हा महसूस कर रहे हों।

कुमार विश्वास के लिए क्या कहा जाए, 10 फरवरी को उनकी पैदाइश हुई थी, याि कि 10 फरवरी उनका जनमदिन है, अभी तक उनके जन्मदिन पर बधाई दने वालों में सबसे पहले अरविंद केजरीवाल हुआ करते थे, लेकिन अब हालात बदल गए हैं, समीकरण बदल गए हैं, केजरीवाल जिनको नेता बनाने में कुमार का बहुत बड़ा हाथा था, जो उनके कहने पर प्रचार के लिए जुट जाते थे, वो केजरीवाल आज आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो हैं, वहीं कुमार के लिए पार्टी में कोई जगह नहीं है, वो भले ही अभी भी पार्टी में बने हुए हैं लेकिन वो जानते हैं कि उनको हाशिए पर डाल दिया गया है। एक नहीं कई मौके ऐसे आए हैं जब कुमार को ये संकेत दिया गया है कि उनका खाना पानी अब बंद हो गया है. लेकिन कुमार भी तनुजा त्रिवेदी की तरह जिद पकड़ कर बैठे हैं। अभी हमें और जलील होना है।
खुद कुमार के शब्दों में कहें तो वो जानते हैं कि केजरीवाल ने उनको मार भी दिया और शहीद भी नहीं होने दिया, पांच साल की राजनीति में ही केजरीवाल इतने माहिर हो गए हैं कि वो इस तरह का दांव सफलता के साथ खेल सकते हैं। राज्यसभा नहीं भेजे जाने से कुमार नाराज तो थे ही, बल्कि उनकी जगह जिसको भेजा गया है उस के नाम से वो और ज्यादा नाराज हुए थे। उनकी नाराजगी खुल कर सामने आई, और अब आलम ये है कि कुमार किनारे खड़े जश्न के नजारे देख रहे हैं. अब वो इस कश्ती के सवार नहीं रहे, उनकी जगह घेरी जा चुकी है। जन्मदिन के मौके पर केजरीवाल ने कुमाप को बधाई तक नहीं दी, सोशल मीडिया पर रवायत भी नहीं निभाई, अब कुमार को किस बात का इंतजार है।
केजरीवाल ने कुमार को बधाई ना देकर भी उनको आखिरी सलाम कर लिया है, ये सियासी लोग हैं, इनके कुछ नहीं करने में भी कुछ ना कुछ होता है, केजरीवाल ने यही किया, बधाई नहीं दी, कुमार के मन में जो थोड़ा बहुत संदेह रहा होगा उसे भी खत्म कर दिया, अब कुमार भी अपना फैसला लेने के लिए आजाद हैं, रही आप के विधायकों के समर्थन की बात तो जो कुमार खेमे के हैं वो भी पार्टी सुप्रीमो के डर से खामोश हो जाएंगे, तो कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि कुमार के लिए आप के दरवाजे पूरी तरह से बंद हो गए हैं, एक झरोखा अभी भी है, लेकिन वो दीवार की उस ऊंचाई पर है जहां तक पहुंचना किसी के लिए संभव नहीं है।