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काँटों भरा ताज मिला है योगी आदित्य नाथ को

लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में भारी बहुमत से सरकार भले ही बना ली हो, लेकिन मुख्यमंत्री का नाम तय करने में जिस तरह से एक हफ़्ते का समय लग गया, उससे साफ़ पता चलता है कि इस बहुमत की उम्मीदों पर खरा उतरना नई सरकार के लिए कितना चुनौतीपूर्ण है.

हालांकि अब मुख्यमंत्री का नाम घोषित हो चुका है और योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री होंगे. नए मुख्यमंत्री के सामने जहां क़ानून-व्यवस्था दुरुस्त रखना चुनौतीपूर्ण है वहीं केंद्रीय नेतृत्व और राज्य के नेताओं के बीच समन्वय बनाना भी कोई आसान काम नहीं है. क़रीब डेढ़ दशक बाद सरकार में आई बीजेपी के सामने अब वो तमाम मुद्दे भी चुनौती के रूप में सामने आएंगे जिन्हें वह केंद्र और राज्य दोनों जगह पूर्ण बहुमत आने की बात कहकर टाल देती थी.

बीजेपी की नई सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी पार्टी के आलाकमान यानी नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ राज्य के नेताओं के बीच समन्वय बनाए रखना.

ऐसा इसलिए क्योंकि पार्टी ने बहुमत मोदी के नाम पर हासिल किया है और नए मुख्यमंत्री का चुनाव भी उन्हीं की इच्छा के अनुसार हुआ है.

लेकिन मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य के नेताओं, मंत्रियों और पदाधिकारियों को भी संतुष्ट करना उनके लिए ज़रूरी होगा. वहीं केंद्रीय नेतृत्व अपने हिसाब से सरकार चलाने का दबाव उन पर बनाएगा ही.पिछली समाजवादी सरकार की जिस कथित कमी को विपक्ष ने सबसे ज़्यादा मुद्दा बनाया, वह था- क़ानून व्यवस्था.

ख़राब क़ानून व्यवस्था को लेकर भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के अलावा कुछ महीनों पहले तक कांग्रेस भी ज़बर्दस्त आक्रामक रही थी. जगह-जगह ज़मीनों के अवैध क़ब्ज़े से लेकर हत्या, अपहरण और बलात्कार जैसी घटनाओं को लेकर पिछली सरकार को कठघरे में खड़ा किया जाता रहा है. ज़ाहिर है, नई सरकार के लिए क़ानून व्यवस्था को दुरुस्त करना न सिर्फ़ चुनौती होगी, बल्कि उसकी विश्वसनीयता का स्तर भी उससे तय होगा.

बीजेपी ने सरकार में आने से पहले जो वायदे किए थे, उन्हें पूरा करना और वो भी जल्दी, एक बड़ी चुनौती होगी. इन वायदों में ख़ासकर किसानों की कर्ज़माफ़ी का मुद्दा बेहद अहम है. ख़ुद अमित शाह कई जनसभाओं में ये कह चुके हैं कि कैबिनेट की पहली बैठक में किसानों का कर्ज़ माफ़ कर दिया जाएगा.

ऐसी घोषणाओं पर जनता की निगाह और उम्मीद दोनों है, लेकिन अकेले राज्य सरकार के लिए इसे लागू करना आसान नहीं है. हां, केंद्र पूरी मदद करता है तो क़र्ज़माफ़ी में शायद बहुत दिक़्क़त भी न आए, लेकिन रोज़गार, उद्योग जैसे तमाम वायदे लागू करना आसान नहीं है.

भारतीय जनता पार्टी राम मंदिर जैसे मुद्दों को ये कहकर टालती रही है कि केंद्र और राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने पर ही वो इस पर अमल कर पाएगी.

हालांकि पार्टी के नेता इस पर लगातार ये कहते रहे हैं कि वो अदालत के फ़ैसले का इंतज़ार कर रहे हैं लेकिन अब बहुमत की जो स्थिति है, उसे देखते हुए पार्टी के भीतर काफ़ी दबाव होगा. मुख्यमंत्री को इस चुनौती से भी रूबरू होना पड़ेगा.

इसके अलावा संघ और उससे जुड़े दूसरे कुछ संगठनों के एजेंडे भी नई सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं. मसलन, तमाम जगहों के नाम बदलना, कैराना जैसे इलाक़ो में पलायन का मामला, ये ऐसे मुद्दे हैं जिनसे नई सरकार को दो-चार होना पड़ेगा.

नई सरकार के सामने प्रशासनिक अमले पर नियंत्रण रखना और अपने एजेंडों को लागू करवाना भी एक बड़ी चुनौती होगी.

प्रशासनिक अमला लंबे समय से बीएसपी और सपा सरकार के अधीन काम करने की अभ्यस्थ हो चुकी है, ऐसे में बीजेपी सरकार का उन अधिकारियों के साथ तालमेल बनाना और अपनी पसंद के अधिकारियों को अहम जगहों पर तैनात करना किसी चुनौती से कम नहीं है.

जानकारों का कहना है कि कई ऐसे भी अधिकारी हैं जो कि पिछली दोनों सरकारों में अपनी स्थिति मज़बूत किए हुए थे, नई सरकार को ऐसे अधिकारियों से ‘बचना’ भी एक बड़ी चुनौती है.