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कश्मीर के माछील सेक्टर में बर्फीले तूफान में दबा सेना का पोस्ट, तीन जवान शहीद

श्रीनगर। कश्मीर के कुपवाड़ा माछील सेक्टर में बर्फीले तूफान से तीन जवान के शहीद हो जाने की खबर है. बर्फीले तूफान में दबने की वजह से एक जवान गंभीर रूप से घायल भी हो गया है. घायल जवान को अस्पताल में भर्ती करा दिया गया जहां उसकी हालत अभी भी गंभीर बनी हुई है.

जानकारी के अनुसार जम्मू के कुपवाड़ा में शुक्रवार शाम करीब साढ़े चार बजे माछील सेक्टर के सोना पांडी गली में 21 राजपूत का एक पोस्ट हिमस्खलन के नीचे दब गई. इसके नीचे दबने से तीन जवानों की मौत हो गई जबकि एक जवान गंभीर रूप से घायल हो गया. बताया जा रहा है कि सेना के जवानों ने अपने आपको को बचाने का प्रयास किया लेकिन वे अपने आप को बचा नहीं सके.

जम्मू के वरिष्ठ पत्रकार सुरेश एस डुग्गर के अनुसार  हवा के तूफानी थपेड़े ऐसे की एक पल के लिए खड़ा होना आसान नहीं. तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे. ऊपर से भीषण हिमपात के कारण चारों ओर बर्फ की ऊंची-ऊंची दीवार. लेकिन इन सबके बावजूद दुश्मन से निपटने के लिए खड़े भारतीय जवानों की हिम्मत देख वे पहाड़ भी अपना सिर झुका लेते हैं जिनके सीनों पर वे खड़े होते हैं.

कश्मीर सीमा की एलओसी पर ऐसे दृश्य आम हैं. सिर्फ कश्मीर सीमा पर ही नहीं बल्कि करगिल तथा सियाचिन हिमखंड में भी ये भारतीय सैनिक अपनी वीरता की दास्तानें लिख रहे हैं. ऐसा भी नहीं है कि वीरता की दास्तानें सिर्फ शत्रु पक्ष को मार कर ही लिखी जाती हैं बल्कि इन क्षेत्रों में प्रकृति पर काबू पाकर भी ऐसी दास्तानें लिखी जाती हैं.

अभी तक कश्मीर सीमा की कई ऐसी सीमा चौकियां थीं जहां सर्दियों में भारतीय जवानों को उस समय राहत मिल जाती थी जब वे नीचे उतर आते थे. 18 वर्ष पूर्व तक ऐसा ही होता था क्योंकि पाकिस्तानी पक्ष के साथ हुए मौखिक समझौते के अनुरूप कोई भी पक्ष उन सीमा चौकिओं पर कब्जा करने का प्रयास नहीं करता था जो सर्दियों में भयानक मौसम के कारण खाली छोड़ दी जाती रही हैं.

लेकिन करगिल युद्ध के उपरांत ऐसा कुछ नहीं हुआ. नतीजतन भयानक सर्दी के बावजूद भारतीय जवानों को उन सीमा चौकियों पर भी कब्जा बरकरार रखना पड़ रहा है जो करगिल युद्ध से पहले तक सर्दियों में खाली कर दी जाती रही हैं तो अब उन्हें करगिल के बंजर पहाड़ों पर भी सारा साल चौकसी व सतर्कता बरतने की खातिर चट्टान बन कर तैनात रहना पड़ रहा है. और इस बार स्नो सुनामी ने उनकी दिक्कतों तो बढ़ा दीं मगर हौसले को कम नहीं कर पाया.

दाद देनी पड़ती है भारतीय जवानों की जो करगिल तथा कश्मीर के उन पहाड़ों पर अपनी ड्यूटी बखूबी निभा रहे हैं जहां कभी एक सौ तो कभी डेढ़ सौ किमी प्रति घंटा की रफ्तार से बर्फीली हवाएं चलती हैं. ऐसे में भी वे सीना तान पाकिस्तानी जवानों के साथ साथ प्रकृति की दुश्मनी का भी सामना करते हैं.

वरिष्ठ पत्रकार सुरेश एस डुग्गर के अनुसार  चौंकाने वाली बात यह है कि भयानक सर्दी तथा खराब मौसम के बावजूद इन क्षेत्रों में टिके हुए जवानों के लिए यह अफसोस की बात हो सकती है कि सर्दी में इन स्थानों पर तैनाती का उनका 16वां वर्ष है और अभी तक वे सहूलियतें भारतीय सेना उन्हें पूरी तरह से मुहैया नहीं करवा पाई है जिनकी आवश्यकता इन क्षेत्रों में है. हालांकि सियाचिन हिमखंड में यह जरूरतें अवश्य पूरी की जा चुकी हैं.

इसके प्रति सेनाधिकारी आप शिकायत करते हैं. कुछ दिन पहले जब इस संवाददता ने इन क्षेत्रों का दौरा किया तो सेना के जवानों को उन कमियों से जूझते हुए देखा गया जिनके लिए आग्रह पिछले कई सालों से लगातार किया जा रहा है. हालांकि सरकार इसे मानती है कि करगिल की चोटियों पर कब्जा बरकरार रखना सियाचिन हिमखंड से अधिक खतरनाक है.

इस सच्चाई से कोई अनभिज्ञ नहीं कि कश्मीर, करगिल तथा सियाचिन हिमखंड जैसे सीमांत क्षेत्रों में पाकिस्तानी सेना भारतीय पक्ष की दुश्मन तो है ही प्रकृति सबसे बड़ी शत्रु के रूप में सामने आती है. मगर इन सब बाधाओं को पार करने वालों का नाम ही भारतीय जवान है. हालांकि आधिकारिक आंकड़े इसे स्पष्ट करते हैं कि कश्मीर सीमा तथा सियाचिन हिमखंड पर होने वाली सैनिकों की मौतों में से 97 प्रतिशत के लिए वह प्रकृति जिम्मेदार होती है जिसका मुकाबला करने की खातिर भारतीय जवान सीना तान खड़े होते हैं.

यह भी कड़वी सच्चाई है कि इस वर्ष भारी बर्फबारी से हुए तीन बड़े हादसों में 24 सैनिक शहीद हो चुके हैं. यह सिलसिला अभी भी जारी है. इस वर्ष 26 व 28 जनवरी को उत्तरी कश्मीर में हिमस्खलन के दो मामलों में 20 सैनिक शहीद हुए थे.

वहीं, अप्रैल में करगिल के बटालिक में ऐसे ही एक हादसे में सेना के तीन जवान शहीद हो गए थे. 25 जनवरी को सोनमर्ग में बर्फ में दबने से सेना का एक अधिकारी शहीद हो गया था. इस वर्ष जनवरी में बांडीपोरा के गुरेज में 26 जनवरी को सैन्य चौकी के हिमस्खलन की चपेट में आने से सेना के जवान बर्फ में दब गए थे. इस हादसे में 15 सैनिकों की मौत हो गई थी. इस हादसे के दो दिन के बाद उत्तरी कश्मीर के मच्छल में सेना की एक चौकी बर्फ में दब गई. इस दौरान गंभीर हालात में सेना के पांच जवानों को वहां से निकाला गया था, लेकिन अस्पताल में दो दिन रहने के बाद वे वीरगति का प्राप्त हुए थे. वहीं, इस वर्ष अप्रैल में कारगिल के बटालिक सेक्टर में सेना की चौकी बर्फ में दब गई थी. इससे यहां तीन सैनिक शहीद हो गए थे.

बचाव अभियान के दौरान दो जवानों को बचा लिया गया. इस वर्ष का पहला महीना सेना पर भारी रहा था. गुरेज में हिमस्खलन से ठीक एक दिन पहले 25 जनवरी को बांडीपोरा के सोनमर्ग में हुए हिमस्खलन में सेना का एक अधिकारी शहीद हो गया था.