लखनऊ। समाजवादी पार्टी में टिकट बंटवारे और कांग्रेस से गठबंधन को लेकर मुलायम और अखिलेश के बीच चल रही तनातनी ने बीएसपी सुप्रीमो मायावती को मुस्लिम वोट बैंक को रिझाने का एक और मौका दे दिया है। मायावती दलित-मुस्लिम गठबंधन के सहारे अपनी चुनावी नैया पार लगाना चाहती हैं। हाल ही में उन्होंने कांग्रेस-एसपी गठबंधन की अटकलों को लेकर कहा था कि यह बीजेपी के इशारे पर होगा। उन्होंने मुस्लिम मतदाताओं से अपील की थी कि वे इस गठबंधन के झांसे में न आएं क्योंकि इससे बीजेपी को फायदा होगा।
बताया जा रहा है कि मायावती ने अपने पार्टी काडर से कहा है कि वे मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सभी जिलों में 2 जनवरी से आम सभाएं करना शुरू करें। बता दें कि 2 जनवरी को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लखनऊ में एक बड़ी रैली होने वाली है जिसमें चुनाव के मद्देनजर वह कई बड़ी घोषणाएं कर सकते हैं।
सूत्रों ने जानकारी दी है कि मायावती ने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दीकी और उनके बेटे अफजल से कहा है कि वे पश्चिमी यूपी के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में सभाएं करें और समाजवादी पार्टी में चल रही लड़ाई को लोगों के बीच इस तरह पेश करें कि लोगों को यकीन हो जाए कि आपसी लड़ाई में उलझी एसपी, बीजेपी को सत्ता में आने से नहीं रोक पाएगी।
यही रणनीति पूर्वी यूपी में भी अपनाई जाएगी जहां यह जिम्मेदारी मायावती ने अपने सांसद मुनकद अली और पूर्व सांसद सलीम अंसारी को दी है। अली को इलाहाबाद और वाराणसी (पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र) में सभा करने को कहा गया है, वहीं अंसारी को गोरखपुर का जिम्मा दिया गया है जो बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ का गढ़ माना जाता है। इसी तरह नौशाद अली, अतहर अली खान और शमशुद्दीन जैसे बीएसपी के जोनल कोऑर्डिनेटर्स को बुंदेलखंड, देवीपाटन संभाग और आजमगढ़ संभाग में सभाएं करने को कहा गया है।
एक राजनीतिक समीक्षक ने कहा, ‘मायावती को पता है कि ऐसे वक्त में जब समाजवादी पार्टी में अंदरूनी लड़ाई चल रही है, मुलायम द्वारा कांग्रेस से गठबंधन की बात को खारिज करने की क्या अहमियत है।’ दो दिन पहले ही मायावती ने बीजेपी पर आरोप लगाया था कि वह मुलायम को आय से अधिक संपत्ति के मामले में कार्रवाई का डर दिखाकर उन पर कांग्रेस से गठबंधन करने का दबाव डाल रही है।