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उत्तराखंड सियासी संकट : विधानसभाध्यक्ष ने हाई कोर्ट से बागी विधायकों की अर्जी खारिज करने की मांग की

नैनीताल। खुद को अयोग्य ठहराए जाने के खिलाफ कांग्रेस के नौ विधायकों की उच्च न्यायालय में दायर याचिका को उत्तराखंड विधानसभा के अध्यक्ष ने खारिज करने की मांग करते हुए शनिवार को कहा कि इन सबने दल-बदल कानून का उल्लंघन किया और इसके लिए उन्हें दंडित किया जाना चाहिए।विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि नौ बागी विधायकों से पूछा जाना चाहिए कि ‘भाजपा के पास वे कैसे गए’ और क्या ‘उन्होंने संविधान की दसवीं अनुसूची का उल्लंघन नहीं किया है।

वरिष्ठ वकील ने पूछा, ‘अगर उन्होंने दसवीं अनुसूची का उल्लंघन किया है तो फिर अयोग्यता पर रोक की मांग वे कैसे कर सकते हैं।’

उन्होंने कहा, ‘वे अयोग्य ठहराने पर रोक लगाने की मांग कैसे कर सकते हैं जब खंडपीठ (उत्तराखंड उच्च न्यायालय) के मुताबिक उन्होंने दल बदल का संवैधानिक अपराध किया है?’ सिब्बल ने न्यायमूर्ति यू सी ध्यानी के समक्ष कहा, ‘जब वे भाजपा में शामिल हुए और ज्ञापन (मत विभाजन के लिए) हस्ताक्षर किया तो वे जानते थे कि यह अनैतिक और असंवैधानिक है।’ नौ विधायकों की अयोग्यता के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के दौरान वह विधानसभा अध्यक्ष का पक्ष रख रहे थे।

उन्होंने कहा कि भाजपा में शामिल होकर नौ विधायकों ने ‘स्वेच्छा से पार्टी (कांग्रेस) की सदस्यता छोड़ दी है’ क्योंकि उन्होंने पार्टी की नीति के खिलाफ वोट दिया और सरकार को गिराने के लिए वोट दिया। सिब्बल ने इस आधार पर उनकी याचिका को खारिज करने की मांग की कि अदालत के समक्ष यह कहकर इन लोगों ने ‘फर्जीवाड़ा’ किया है कि उन्हें विधानसभा अध्यक्ष द्वारा दस्तावेज नहीं दिए गए। इस आधार पर भी याचिका खारिज करने की मांग की गई कि याचिकाकर्ताओं ने अदालत के समक्ष महत्वपूर्ण तथ्यों का खुलासा नहीं किया जो उनके पास थे और उन्होंने ‘अदालतों के अनुक्रम का पालन नहीं किया।’

उन्होंने कहा कि इन तीन आधार पर उच्च न्यायालय को याचिकाकर्ताओं की फाइल पर अनुच्छेद 226 के तहत ध्यान देने की जरूरत नहीं जिसमें उनकी अयोग्यता को चुनौती दी गई है। उन्होंने कहा, ‘इन तीन आधार पर गुण-दोष देखे बगैर याचिकाओं को सीधा खारिज कर दिया जाना चाहिए।’

उन्होंने कहा कि इन नौ लोगों की ‘राजनीतिक मंशा’ अयोग्यता पर स्थगन हासिल करना था ‘ताकि 28 मार्च को शक्ति परीक्षण में वे वोट कर सकें।’ सिब्बल ने सवाल किया कि कांग्रेस खरीद-फरोख्त कैसे कर सकती थी जब वह केवल नौ विधायकों को ‘वापस लाने का प्रयास’ कर रही थी जो भाजपा के खेमे में चले गए थे।

सिब्बल ने कहा, ‘भाजपा के साथ सौदा करने के बाद वे (नौ) विधानसभा में गए थे (18 मार्च को)। उन्होंने यह (मत विभाजन) सुबह में योजना बनाई थी।’ उन्होंने कहा, ‘तो अब हम किस तरह के खरीद फरोख्त की बात कर रहे हैं? 18 मार्च की घटना से पहले भाजपा के खेमे में गए नौ विधायकों की? इसलिए भाजपा खरीद फरोख्त कर सकती है और हम (कांग्रेस) पर अपने विधायकों को वापस लाने का प्रयास करने के लिए खरीद फरोख्त का आरोप लगा रही है।’

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सिब्बल ने नौ विधायकों की तरफ से वरिष्ठ वकील के पेश नहीं होने पर भी आपत्ति जताते हुए कहा कि यह उचित नहीं है क्योंकि आज की तारीख आपसी सहमति से तय हुई थी। विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से सिब्बल के जिरह खत्म करने पर न्यायमूर्ति ध्यानी ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 25 अप्रैल तय की।

न्यायाधीश ने यह भी कहा कि उनकी ‘एकमात्र चिंता’’ है कि 29 अप्रैल के शक्ति परीक्षण से पहले अगर उन्हें फैसला देना है तो उन्हें ‘इस पर सोचने के लिए समय चाहिए।’ अदालत 25 अप्रैल को कांग्रेस के नौ बागी विधायकों की तरफ से जिरह की सुनवाई करेगी।