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इस गाने को सुनकर हजारों लोगों ने कर लिया था स्यूसाइड, सरकार को करना पड़ा बैन

‘मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया.’ सदाबहार देवानंद पर फिल्मांया ये गाना आज दशकों बाद भी सभी की जुबां पर चढ़ा हुआ है. कहा जाता है कि खुद देव साहब को भी ये गाना इतना पसंद था कि जब भी वो किसी तनाव या निराशा में होते थे, तो ये गाना गुनगुनाते थे. इसी तरह आप भी जब परेशान होते हैं तो अपनी पसंद के गाने सुनकर मूड को थोड़ा फ्रेश करने की कोशिश करते हैं, बल्कि कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो दिनभर की थकान मिटाने के लिए रात में गाने सुने बिना नहीं रह पाते. दूसरी तरफ अगर हम आपसे पूछे कि जब आप बहुत ज्यादा परेशान या उदास होते हैं तो आप किस तरह के गाने या म्यूजिक सुनना पसंद करते हैं.

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तो, आप में से कुछ लोगों का जवाब होगा कि रोंमाटिक, डिस्को या तेज आवाज वाले गाने, जबकि कुछ लोग अपने मूड के हिसाब से दर्द भरे गीत सुनना ही पसंद करते हैं, इसकी वजह होती है वो अपनी उदासी को ऐसे गानों के साथ पूरी तरह डूबकर महसूस करना चाहते हैं. आप इन दो तरह के लोगों में से चाहे किसी भी मूड के व्यक्ति हो, लेकिन इतना तो साफ है कि म्यूजिक का मकसद होता है आपको रिफ्रेश करना, लेकिन अगर हम आपसे ये कहे कि एक गाना ऐसा भी है, जिसे सुनने के बाद हजारों लोगों ने आत्महत्या कर ली और जिसके बाद इस गाने पर बैन लगा दिया गया था. आपको ये बात सुनने में थोड़ी अटपटी लग रही होगी, लेकिन ये बिल्कुल सच है. दरअसल, हंगरी के एक गीतकार ने एक ऐसा दर्दनाक गीत लिखा, जिसे सुनकर हंगरी, अमेरिका आदि देशों के लोग इतने भावुक हो गए कि अधिकतर लोगों ने आत्महत्या कर ली या डिप्रेशन का शिकार हो गए.

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‘रेजसो सेरेस’ की दर्दनाक लव स्टोरी

वर्ष 1889 में जन्में ‘रेजसो सेरेस’ प्यानो बहुत अच्छा बजाते थे. वो एक गीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे, लेकिन बहुत संघर्ष करने के बाद भी उन्हें ब्रेक नहीं मिल पाया. उनका ज्यादातर जीवन गरीबी में ही बीता था. उनकी असफलताओं से उन गर्लफ्रेंड ने इतनी परेशान हो गई थी, कि उसने सेरेस को कोई छोटी-मोटी नौकरी करके अपना गुजारा करने की सलाह दी, लेकिन सेरेस अपना नाम कमाना चाहते थे.

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उन्होंने अपनी गर्लफ्रेंड की बात मानने से इंकार कर दिया. 1932 में एक दिन उनकी गर्लफ्रेंड उन्हें हमेशा के लिए अकेला छोड़कर चली गई. अपने कॅरियर के बाद अपने प्यार से मिले धोखे ने सेरेस को बहुत बड़ा सदमा पहुंचाया. उस दिन से कई दिनों तक वो प्यानो पर दर्दभरे साज छेड़ते रहे, साथ ही उन्होंने 1933 में ‘ग्लूमी संडे’ नाम का एक गीत भी लिखा और इसे अपनी उदासी भरी आवाज में यूं ही गा दिया. देखते ही देखते ये गाना उनके दोस्तों के बीच मशहूर होते हुए पूरी दुनिया के लोगों की जुबां पर चढ़ गया.

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‘ग्लूमी डे’ सुनने से होने लगी आत्महत्या की घटनाएं

इस गाने के हिट होते ही रहस्यमय घटनाएं भी घटने लगी. सबसे पहली घटना बर्लिन में हुई, जहां एक लड़के ने ये गाना सुनकर अपने आपको गोली मार ली. वहीं न्यूयार्क में एक बुजुर्ग 7वीं मंजिल से नीचे कूद गए. हंगरी की एक 17 साल की लड़की ने इस गाने को सुनते हुए खुद को पानी में डुबो लिया. इसके अलावा भी दुनिया भर में ऐसी हजारों स्यूसाइड की घटनाएं घटती चली गई, जिसकी वजह ये गाना था.

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हंगरी और ब्रिटेन की सरकार ने लगाया बैन

आपको जानकर हैरानी होगी कि हंगरी, ब्रिटेन समेत कई देशों की सरकारों ने इस गाने को सार्वजनिक रूप से बजाने, रेडियो, रेस्टोरेंट, पब आदि में बजाने पर रोक लगा दी. इतिहास में ‘ग्लूमी डे’ गाना ‘स्यूसाइड सांग’ के नाम से हमेशा के लिए दर्ज हो गया. हांलाकि, आज अगर आप ये गाना सुनेंगे तो आप खुद हैरत में पड़ जाएंगे कि आखिर इस गाने में ऐसा था क्या, जिसे सुनकर लोग आत्महत्या कर लेते थे