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इंदिरा गांधी ने ‘दलित नायक’ बाबू जगजीवन राम को क्यॊं ‘बली का बकरा’ बनाया था?

कांग्रेस पिछले 70 साल से भारत के लोगों को उसमें भी दलितों को बेवकूफ बनाती आयी है। खुद को दलितों का सबसे बड़ा हमदर्द बताने वाली कांग्रेस आपको कभी यह नहीं बतायेगी की नेहरू ने संविधान के शिल्पी अंबेडकर जी का किस प्रकार अपमान किया था। ना ही कांग्रेस आपको यह बतायेगी की इंदिरा गांधी ने बाबू जगजीवन राम के साथ कैसा दुर्व्यवहार किया था। दलितों के नाम पर लोगों को भड़का कर अपनी राजनीती की किस्मत चमकाने वाली कांग्रेस ने दलितों के साथ अन्याय किया है। लेकिन दलित आज तक कांग्रेस के इस घटिया खेल को समझ नहीं पाये।

दलितों के प्रति कांग्रेस और नेहरू ‘खान’ दान को कितना प्रेम और आदर था यह बाबू जगजीवन राम पर लिखी जीवन वृत्तांत “बाबू जगजीवन राम: एक जीवनी” नामक पुस्तक में मिलता है। मंगलमूर्ती नामक लेखक द्वारा लिखी गयी इस पुस्तक में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि किस प्रकार इंदिरा गांधी ने दलित नायक बाबू जगजीवन राम की प्रसिद्दी को अपने हित और स्वार्थ के लिए इस्तेमाल किया और जगजीवन राम को आपातकाल के समय में ‘बली का बकरा’ बना दिया। इंदिरा गांधी ने बाबूजी की प्रसिद्धी, उनकी राजनैतिक कूट नितियां और उनकी बुद्दी मत्ता से सत्ता हासिल किया लेकिन कभी बाबू जी को सरकार में उन्नत पद नहीं दिया।

नेहरू खान दान का यह मानना है की ‘उन्नत पद’ पर केवल उनका अधिकार है। उनके परिवार के सदस्य के अलावा कॊई और देश का उन्नत पद नहीं संभाल सकता। दलितों को तो कॊई उन्नत पद बिलकुल नहीं दिया जाता। अगर दलितों के प्रति कांग्रेस को इतना ही प्रेम है तो पार्टी अध्यक्ष के पद पर किसी दलित नेता को क्यॊं नहीं बिठाया? क्या कांग्रेस आनेवाले चुनाव में किसी दलित नेता को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनायेगी? असंभव। राज गद्दी पर केवल खानदान का अधिकार है और प्रधानमंतत्री बनने का हक केवल राहुल को है और किसी को नहीं।

राष्ट्रीय नेता बाबूजी एक स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक न्याय के योद्धा, दलित वर्गों के समर्थक, उत्कृष्ट सांसद, सच्चे लोकतंत्रवादी, उत्कृष्ट केंद्रीय मंत्री, योग्य प्रशासक और असाधारण मेधावी वक्ता थे। उनका व्यक्तित्व महान था, उन्होंने भारतीय राजनीति में आपने प्रतिबद्धता, समर्पण और निष्ठा के साथ अर्ध-शताब्दी तक कार्य किया था। उन के जीवन के ऊपर लिखी गयी अपने किताब में लेखक मंगलमुर्ती ने कहा है कि इंदिरा गांधी कभी बाबू जी पर विश्वास नहीं करती थी। आपातकाल से पूर्व और उसके बाद भी केंन्द्र के इंटलिजेन्स एजेंसियों ने उनपर नजर रखी थी और वे किससे मिलते हैं इस बात की खबर इंदिरा गांधी तक पहुंचाते थे। इंदिरा गांधी हमेशा ही बाबूजी पर शक करती थी।

इस पुस्तक में लेखक लिखते हैं की बाबू जी की बुद्दिमत्ता, उनकी कूट नीतियों का उपयॊग पार्टी अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल तो करती थी लेकिन जब भी बात उन्हें किसी उन्नत पद पे बिठाने की आती तो उन्हें पीछे धकेल दिया जाता था। क्योंकि वे एक पिछड़े हुए निम्न वर्ग से आते थे और कांग्रेस का यह मानना था की बड़े पद पर केवल ‘उच्च जाति’ का व्यक्ति ही बैठ सकता है। बाबूजी के पास इतनी क्षमता थी की वे देश के प्रधानमंत्री बनने की यॊग्यता रखते थे इसी कारण इंदिरा गांधी उन्हें अपना प्रतिस्पर्धी मानती थी। इंदिरा गांधी ने बाबूजी को बदनाम करने के लिए घटिया चाल चली और आपातकाल के प्रस्ताव को बाबूजी द्वारा आगे बढ़ाया और अपने राजनैतिक स्वार्थ के आपूर्ती के लिए उन्हें बली का बकरा बना दिया।

वर्ष 1969 में कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के बाद बाबूजी ने पूरे देश में कांग्रेस पार्टी को मज़बूत करने व उसकी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए पूर्ण प्रयास किया जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस पार्टी 1971 के आम चुनावों में ऐतिहासिक व प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई। लेकिन 1975 के आपातकाल के वजह से कांग्रेस का जीतना असंभव था। उन पर लिखी गयी पुस्तक के अनुसार बाबूजी को देश पर आपातकाल थॊपने की चाल के बारे में अगले दिन ही पता चला जबकि  इंदिरागांधी ने एक दिन पूर्व ही उनके द्वारा प्रस्ताव को सदन में आगे ले आई थी। आपातकाल लगाया इंदिरा गांधी ने और अपवाद लगा बाबूजी पर। बाबूजी ने इंदिरा गांधी से कहा भी था की वह आपातकाल को हटाये और लोकतंत्र को बचाये लेकिन इंदिरा ने उनकी एक नहीं सुनी।

आपातकाल के उस दौर में बाबू जी ने कांग्रेस और इंदिरा का विरॊध करते हुए अपना पद त्याग दिया और कांग्रेस पार्टी को अपना इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने उसी दिन ‘कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ (सी.एफ़.डी.) नामक एक नयी पार्टी की रचना की और वर्ष 1977 के आम चुनावों में बाबूजी की विजय हुई व उन्हें रक्षा मंत्रालय का दायित्व दिया गया। आज़ादी के समय से देश की सेवा करने वाले बाबू जी को इंदिरा गांधी ने किस प्रकार सम्मान दिया था यह हम बाबूजी के जीवन पर लिखी इस पुस्तक द्वारा जान सकते हैं। ठीक इसी प्रकार का दुर्व्यवहार नेहरू ने अंबेडकर जी के साथ किया था। फिर भी ‘खान’ग्रेस खुद को दलितों का मसीहा कहती है और भाजपा को दलित विरॊधी! वास्तव में कांग्रेस दलित विरॊधी थी, है और हमेशा रहेगी।