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असम के नागरिक रजिस्टर में 1.39 करोड़ लोगों के नाम नहीं, तनाव की आशंका

दिसपुर। असम में रविवार देर रात बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का पहला ड्राफ्ट जारी कर दिया गया है. इस प्रक्रिया में कुल 3.29 करोड़ लोगों ने आवेदन किए थे, जिनमें से 1.9 करोड़ को ही भारत का वैध नागरिक माना गया है. इसका मतलब ये है कि 1.39 करोड़ लोगों के नाम इस रजिस्टर में नहीं हैं. इस लिस्ट को लेकर तनाव की आशंका है.

असम में रहने वाले भारतीय नागरिकों की पहचान के लिए उनका नाम इस रजिस्टर में दर्ज किया जा रहा है. यह कदम असम में अवैध रूप से बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकालने के लिए किया गया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 31 दिसंबर को पहला ड्राफ्ट जारी किया गया. इस रजिस्टर में जिन आवेदकों के नाम शामिल नहीं किए गए हैं, उनकी अभी जांच चल रही हैं. भारत के रजिस्ट्रार जनरल शैलेश ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ये जानकारी दी. उन्होंने बताया, ‘यह ड्राफ्ट एक हिस्सा है, जिसमें अब तक 1.9 करोड़ लोगों के नाम पर मुहर लगाई गई है. बाकी बचे नामों की अलग-अलग स्तर पर जांच की जा रही हैं. जैसे ही सत्यापन प्रक्रिया पूरी हो जाएगी, एक और ड्राफ्ट जारी किया जाएगा.’

NRC के राज्य कॉर्डिनेटर प्रतीक हजेला ने बताया कि जिन लोगों के नाम पहले ड्राफ्ट में छूट गए हैं, उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा, ‘यह एक मुश्किल प्रक्रिया है. इसलिए ऐसा भी हो सकता है कि एक ही परिवार के कुछ नाम पहले ड्राफ्ट से गायब हों. मगर, इसमें घबराने की कोई जरूरत नहीं है.’

2015 से लिए जा रहे हैं आवेदन

बांग्लादेशियों की अधिकता से पैदा हुए संकट के बाद नागरिक सत्यापन के लिए आवेदन लेने की यह प्रक्रिया मई 2015 में शुरू की गई थी. रजिस्ट्रार जनरल ने बताया कि 68.27 लाख परिवारों से 6.5 करोड़ दस्तावेज मिले थे.’ उन्होंने ये भी बताया कि 2018 में ही यह प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी.

कांग्रेस राज में शुरू हुई थी प्रक्रिया

असम में बांग्लादेश से नागरिक आते रहे हैं. मौजूदा प्रक्रिया साल 2005 में कांग्रेस शासन के दौरान शुरू हुई थी और बीजेपी के सत्ता में आने के बाद इसमें तेजी आई. इस पूरी प्रक्रिया पर नजर रख रहे सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 31 दिसंबर तक एनआरसी का पहला मसौदा प्रकाशित किया जाए.

भारी सुरक्षाबल तैनात

पहला ड्राफ्ट जारी होने से पहले ही सूबे में तनाव की आशंका जताई जा रही थी. जिसके मद्देनजर भारी संख्या में सुरक्षाबलों को तैनात किया गया है या अलर्ट पर रखा गया है. गृह मंत्रालय और राज्य सरकार की तरफ से बार-बार संयम बरतने की अपील की गई है. गृह मंत्रालय ने कहा है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के पहले मसौदे में जिन लोगों का नाम नहीं है, उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है. उन्हें अपना परिचय दस्तावेज साबित करने के लिए पर्याप्त मौके दिए जाएंगे.

एनआरसी की क्या जरूरत
असम में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशियों का मामला बहुत बड़ा मुद्दा रहा है। इस मुद्दे पर कई बड़े और हिंसक आंदोलन भी हुए है। असम के मूल नागरिकों ने तर्क दिया कि अवैध रूप से आकर यहां रह रहे ये लोग उनका हक मार रहे हैं। 80 के दशक में इसे लेकर एक बड़ा स्टूडेंट मूवमेंट हुआ था जिसके बाद असम गण परिषद और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ कि 1971 तक जो भी बांग्लोदशी असम में घुसे उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को निर्वासित किया जाएगा। इसके बाद असम गण परिषद ने वहां सरकार भी बनाई।हालांकि समझौता आगे नहीं बढ़ा।

मामला के दबने के बाद 2005 में एक बार फिर आंदोलन हुआ तब कांग्रेस की असम सरकार ने इस पर काम शुरू किया, लेकिन काम में सुस्ती रहने के बाद यह ममाला 2013 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। बीजेपी ने असम में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान इसे बड़ा मुद्दा भी बनाया। जब असम में पहली बार पूर्ण बहुमत वाली बीजेपी सरकार आई, तो इस मांग ने और जोर पकड़ा। हालांकि असल कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के दबाव में हुई। इस बीच मोदी सरकार के विवादित नागरिकता संशोधान बिल से भी इस मामले में नया मोड़ आ गया, जो अवैध रूप से घुसने वालों के लिए बेस साल 1971 से बढ़ाकर 2014 कर रहा है।

सुप्रीम कोर्ट के दबाव में जारी हुआ ड्राफ्ट
रविवार की मध्य रात्रि में विवादित ड्राफ्ट सुप्रीम कोर्ट के दबाव के बाद जारी हुआ है। केंद्र और राज्य सरकार ने दलील थी कि अभी ड्राफ्ट जारी होने से कानून-व्यवस्था का मामला उठ सकता है, क्योंकि इसमें लाखों लोगों के नाम नहीं हैं और इससे आशंका की स्थिति पैदा हो सकती है कि उनका भविष्य क्या हाेगा। हालांकि कोर्ट ने इस दलील को नहीं माना अपने आदेश में कहा कि इस ड्राफ्ट से किसी का हक नहीं छिनेगा।

राजनीतिक दांव-पेच भी जारी

एनआरसी को लेकर असम में राजनीतिक सरगर्मी भी तेज हो गयी है। भले बीजेपी के लिए यह भी बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है, लेकिन वह इस मुद्दे पर अभी आक्रामक रूप से अागे नहीं बढ़ सकती, क्योंकि इसमें मुस्लिमों के अलावा बड़ी तादाद में बांग्ला-हिंदू भी हैं जो बीजेपी के वोटर रहे हैं। पहले ड्राफ्ट में इनकी बड़ी तादाद है। सूत्रों के अनुसार ऐसी परिस्थिति में केंद्र सरकार नागरिकता संशोधन बिल के पास होने के बाद ही इस मुद्दे पर आगे बढ़ना चाहेगी, क्योंकि उसमें मुस्लिम को छोड़कर बाकी धर्म वाले लोगों को नागरिकता लेने की प्रक्रिया में रियायत दी गई है। पिछले दिनों होम मिनिस्टर राजनाथ सिंह के साथ मीटिंग में उन्होंने साफ कहा कि अभी हिंदू-बंगालियों को घबराने की जरूरत नहीं है। हालांकि इस मुद्दे को नए सिरे से अपने हिसाब से परिभाषित करने के मामले पर बीजेपी का असम गण परिषद से विवाद भी हो गया है और एजीपी पुराने स्टैंड के अनुसार ही समझौता चाहती है, जिसमें 1971 के बाद सभी अवैध रहने वालों को निकालने की बात हुई थी।

क्या अवैध नागरिक बांग्लादेश जाएंगे?
अब यह भी सवाल सामने आ रहा है कि अंतिम ड्राफ्ट आने के बाद जिनका नाम एनअारसी में नहीं आता है उनका भविष्य क्या होगा? क्या उन्हें बांग्लोदश भेज दिया जाएगा? सूत्रों के अनुसार अभी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर लिस्ट जारी की जा रही है, लेकिन उसके बाद क्या करना है, इसके लिए नीति को अंतिम रूप नहीं दिया गया है। दरअसल, इतनी बड़ी संख्या में अवैध नागरिकों के साथ क्या सलूक हो, यह केंद्र और राज्य सरकार के लिए सबसे बड़ी दुविधा हो सकती है। नरेन्द्र मोदी के बांग्लादेश से बेहतर रिश्ते बने हैं और पाकिस्तान को अलग-थलग करने में भारत को उससे मदद मिली है। ऐसे में बांग्लादेश पर इन लाखों लोगों को लेने का दबाव अभी बनाना आसान नहीं होगा।