Breaking News

अलीगढ़ में ही नहीं देख सकते हैं आप ‘अलीगढ़’

Aligarhअलीगढ़। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के समलैंगिक प्रफेसर श्रीनिवास रामचंद्र सिरस की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘अलीगढ़’ को चाहे और कहीं भी जगह मिले और सराहा जाए, लेकिन अलीगढ़ और AMU में इस फिल्म के लिए कोई जगह नहीं है।

ऐसा नहीं कि शहर के लोग प्रफेसर सिरस की इस कहानी को देखना और समझना नहीं चाहते थे। सैकड़ों लोग लंबे समय से मनोज वाजपेयी की इस फिल्म को देखने का इंतजार कर रहे थे। भारत के साथ-साथ विदेशों में भी बेहद पसंद की गई और सराही गई इस फिल्म को अलीगढ़ में रिलीस होने का मौका नहीं मिला। शुक्रवार को जब यह फिल्म देशभर के सिनेमाघरों में रिलीस हुई, तब अलीगढ़ के सिनेमाघरों ने ‘अलीगढ़’ को अपने यहां जगह नहीं दी। फिल्म का इंतजार कर रहे लोगों ने सोचा कि शायद छोटा शहर होने के कारण अलीगढ़ में यह फिल्म शनिवार को लगेगी।

शुक्रवार के बाद शनिवार भी बीत गया, लेकिन शहर के सिनेमाघरों में अलीगढ़ फिल्म नहीं लगी। लोग हैरान थे और परेशान भी थे। कई लोगों ने इसकी वजह जानने की कोशिश भी की। निर्देशक हंसल मेहता सहित फिल्म की प्रॉडक्शन टीम को भी फोन किया गया। किसी को भी नहीं पता था कि ‘अलीगढ़’ आखिरकार अलीगढ़ क्यों नहीं पहुंची।

शनिवार को हमें जानकारी मिली की इस फिल्म को अलीगढ़ शहर में प्रतिबंधित कर दिया गया है। बीजेपी की मेयर शकुंतला भारती ने इसकी स्क्रीनिंग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। उनका मानना है कि इस फिल्म के कारण लोग अलीगढ़ को ‘समलैंगिकता’ के साथ जोड़ने लगेंगे। भारती इसे शहर की ‘बदनामी’ जैसा मानती हैं।

भारती को इस फिल्म का विरोध करने पर कोई अफसोस नहीं है। वह कहती हैं, ‘यह फिल्म समलैंगिक संबंधों पर आधारित है और यह अलीगढ़ में नहीं होता। यह अलीगढ़ नहीं है। हम शहर की बदनामी को प्रोत्साहन नहीं दे सकते हैं।’

सिनेमाघरों के मालिकों का कहना है कि फिल्म से केवल मेयर भारती को ही दिक्कत नहीं थी, बल्कि मिल्लत बेदारी मुहिम समिति नाम के एक स्थानीय संगठन ने केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली और रवि शंकर प्रसाद के अलावा पहलाज निहलानी की अध्यक्षता वाले सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) को पत्र लिखकर फिल्म का नाम बदले जाने की गुजारिश की थी। उनका कहना था कि इस फिल्म के नाम के कारण उनके शहर की बदनामी हो रही है।

जिस समय से इस फिल्म की शूटिंग की घोषणा हुई, तब से ही इसे लेकर काफी चिंताएं जताई जा रही थी। फिल्म में AMU को किस तरह पेश किया जाएगा इसे लेकर भी सवाल बना हुआ था। यूनिवर्सिटी के जनसंपर्क अधिकारी राहत अबरार ने पहले कहा था कि जरूरत पड़ने पर वह फिल्मकारों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का रास्ता चुन सकते हैं। अबरार ने कहा कि AMU को इस फिल्म द्वारा अलीगढ़ शहर और यूनिवर्सिटी को गलत तरीके से पेश किए जाने की चिंता है। उन्होंने यह भी कहा था कि यूनिवर्सिटी ने इस फिल्म के निर्देशक को फिल्म बनाने की अनुमति नहीं दी। मालूम हो कि ‘अलीगढ़’ फिल्म की शूटिंग बरेली शहर में की गई है। फिल्म के अलीगढ़ में रिलीज ना होने के बारे में पूछे जाने पर अबरार ने कहा कि वह इस मामले में टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं।

हंसल मेहता इस फैसले पर बेहद गुस्सा हैं। वह कहते हैं, ‘यह समलैंगिकता के डर के कारण लिया गया फैसला है। वे अलीगढ़ को समलैंगिकता के साथ नहीं जोड़ना चाहते, लेकिन अब उन्हें होमोफोबिया से जोड़ा जाएगा।’

अलीगढ़ फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने वाले अपूर्व असरानी ने कहा कि वे फिल्म को अलीगढ़ शहर में रिलीस नहीं करने के फैसले पर बेहद गुस्सा हैं। वह कहते हैं, ‘वितरण की टीम आमतौर पर रिसर्च करती है कि किसी फिल्म को कहां पसंद किया जाएगा और कहां नहीं किया जाएगा। यह बहुत दुख की बात है कि अलीगढ़ शहर अपनी ही कहानी को नहीं देख सकेगा। मेयर ने फिल्म के खिलाफ विरोध किया। इसके बाद सिनेमाघर के मालिकों ने फिल्म ना दिखाने का फैसला किया। वे अपने सामने रखा गया शीशा खुद ही नहीं देखना चाहते। मुझे पता चला है कि हमारे खिलाफ अदालत में 3 मामले दर्ज हुए हैं। इससे पता चलता है कि लोगों में कितना होमोफोबिया भरा है।’

अपूर्व आगे कहते हैं, ‘इस फिल्म का विरोध और इसकी आलोचना करने वालों को मानना होगा कि भारत की कुल आबादी में लगभग 2 फीसदी लोग समलैंगिक समुदाय से आते हैं।’

हालांकि अलीगढ़ में रहने वाले कुछ लोगों को 26 फरवरी को इस फिल्म की रिलीस के दिन इसे देखने का मौका मिला। नाम ना छापने की शर्त पर एक सिनेमाघर के प्रबंधक ने बताया, ‘हमने गुरुवार को ऑनलाइन इस फिल्म की टिकट बिक्री के लिए रखा था। स्क्रीनिंग रद्द करने के लिहाज से बहुत देर हो गई थी। कई लोगों ने टिकट खरीद लिया था।’ प्रबंधक ने आगे बताया, ‘हमारे प्रोग्राम मैनेजर और बाकी लोगों के साथ बातचीत के बाद हमने इस मसले की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए बाकी सभी शो रद्द कर दिए। हमें डर था कि लोग फिल्म दिखाने का विरोध कर सकते हैं।’

शुक्रवार को यह फिल्म देखने वाले चुनिंदा लोगों में AMU में अंग्रेजी के प्रफेसर मुहम्मद असीम सिद्दीकी भी थे। वह कहते हैं, ‘दर्शकों की संख्या बमुश्किल 10 होगी। 9.15 का शो था, लेकिन कम से कम मैं फिल्म देख तो सका।’ इस फिल्म को देखने की चाहत रखने वाले कहीं और जाकर फिल्म देखने की कोशिश कर रहे हैं। AMU में राजनीति विज्ञान स्नातक के अंतिम वर्ष के छात्र ओमैर इफ्तिकार अपने दोस्तों के साथ दिल्ली आकर यह फिल्म देखने वाले हं। वह कहते हैं, ‘विरोध और प्रदर्शनों के कारण यहां फिल्म का रिलीस ना होना निराशा की बात है। अब हमें नोएडा या फिर दिल्ली जाकर फिल्म को देखना पड़ेगा। देख रहे हैं ना आप कि आखिरकार कुछ लोग जीत गए।’

AMU के प्रफेसर तारिक इस्लाम प्रफेसर सिरस के दोस्त थे। सिरस द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर यूनिवर्सिटी में फिर से बहाल किए जाने की कानूनी लड़ाई में तारिक ने भी साथ दिया था। वह स्थानीय संगठनों द्वारा फिल्म की रिलीस को लेकर किए जारी विरोध की आलोचना करते हैं। तारिक कहते हैं, ‘कुछ लोगों द्वारा समलैंगिकता की एक घटना को शहर के लिए बदनामी से जोड़ना बेहद होमोफोबिक रवैया है।’

स्थानीय वाड्रा सिनेमा के प्रबंधक सुनील शर्मा ने कहा कि सिनेमाघर के मालिकों को विरोध का ध्यान रखना पड़ता है। वह पूछते हैं, ‘हम यह फिल्म नहीं दिखा सकते क्योंकि इसे लेकर इतना विरोध जताया गया। अगर कोई फिल्म देखने आएगा ही नहीं, तो इसे दिखाने का क्या मतलब है?’