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अगर कॊई कहता है की उसे मौत से डर नहीं लगता, या तो वह झूठ बोल रहा है या फिर वह ‘गॊरखा’ है

दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए “भारतीय सेना” नाम ही काफी है। जैसे ही दुश्मन भारतीय सेना की “गॊरखा रेजिमेंट” का नाम सुनते हैं उनके पैरों में गड़गड़ाहट  शुरू होती है, उनके हाथ कांपने लगते हैं, उनका गला सूख जाता है और आँखे दुंधली हो जाती है। मौत के आंखों में आखें डाल कर अगर मौत को कॊई मात दे सकता है तो वह गॊरखा है। दुनिया के सबसे बहतरीन सेनाओं में से तीसरे नंबर पर भारत है तो भारतीय सेना की मुकुट मणी है गॊरखा रेजिमेंट।

कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी भारतीय सेना हिम्मत नहीं हारती। पहले और दूसरे विश्व युद्द के समय से ही भारतीय सेना ने अपने अदम्य पराक्रम को विश्व के सामने प्रदर्शित किया है। गॊरखा, भारत का सबसे पुराना रेजिमेंट है। रण भूमी में अगर गॊरखा रेजिमेंट उतरा तो इसका अर्थ है दुश्मन स्वर्ग लोक पहुंच गया। आज तक इस रेजिमेंट ने एक भी युद्द नहीं हारा। इसीलिए दुनिया भर के देश गोरखा रेजिमेंट का सम्मान करते है और साथ ही साथ डरते भी हैं। क्योंकि इस रेजिमेंट का हर एक जवान किसी परमाणू बम से कम नहीं है।

वैसे तो भारतीय सेना की हर रेजिमेंट खास है और जांबाज़ है लेकिन गॊरखा रेजिमेंट की बहादुरी की मिसाल ही कुछ ऐसी है की सभी इसके मुरीद हो जाते हैं। गोरखा रेजीमेंट भारतीय सेना से अप्रैल 1815 में जुड़ी थी और तब से लेकर आज तक कई लड़ाइयों में भारतीय  सेना के साथ मजबूती से खड़ी है। दुनिया के सिर्फ तीन देशों में नेपाल, ब्रिटेन और भारत के पास ही गोरखा रेजिमेंट है। भारत के सेनाध्यक्ष रहे सैम मानेकशॉ ने कहा था अगर कॊई कहता है की उसे मौत से डर नहीं लगता, या तो वह झूठ बोल रहा है या फिर वह गोरखा है।

वास्तव में नेपाल में गोरखा नामक एक ज़िला है, जो हिमालय की तराई में बसा हुआ है। यह एक छोटा-सा गांव है और गॊरखा यहां के मूल निवासी है। कहते हैं की 8वीं शताब्दी में हिन्दू संत योद्धा श्री गुरु गोरखनाथ ने इन्हें इनका नाम दिया जो की गॊरखा है। गोरखा के राजा पृथ्वीनारायण शाह थे जो बाद में नेपाल के शासक बनगए, जिसके सैनिक गोरखाली कहलाने लगे। महाकाल का अवतार ही है गॊरखा। ये लोग एक जाति विशेष के योद्धा नहीं हैं बल्कि पहाड़ों में रहने वाली सुनवार, गुरुंग, राय, मागर और लिंबु जातियों का एक समुदाय है। जब इनके घर में कोई बच्चा पैदा होता है तो गांव में ‘आयो गोरखाली’ बोलकर शोर मचाते हैं। जन्म के साथ ही यहां के बच्चों को सिखाया जाता है कि ‘डर कर जीने से बेहतर है मर जाना’!

गॊरखा रेजिमेंट का मुख्य हथियार है ‘खुखरी’ जो एक तेजधार वाला नेपाली कटार है, इसे सेना द्वारा गोरखा रेजीमेंट के सैनिकों को दिया जाता है। खुखरी 12 इंच लंबा तेज़ तरार चाकू होता है जो कि हर गोरखा सैनिक के पास होता है। दुश्मनों को सब्ज़ी की तरह काटने के लिए यह खुखरी ही काफी है। ‘जय मां काली, आयो गोरखाली ‘ कहते हुए गॊरखा रण भूमी में उतरते हैं और जिस प्रकार मां काली ने असुरों का संहार किया है ठीक उसी प्रकार दुश्मन का संहार करते हैं। अगर एक बार मयान से खुखरी बाहर निकली तो वह दुश्मनों के रक्त तर्पण के बिना अंदर नहीं जाती।

1814-16 के आंग्लो-नेपाल युद्ध में गोरखा सेना की युद्द कौशल से और उनकी बहादुरी से ब्रिटिश इतने प्रभावित हुए की गोरखा को ब्रिटिश भारतीय सेना से जोड़ लिया गया। ब्रिटिश उन्हें ‘मार्श्ल रेस’ कहकर बुलाते थे। 1947-48 में उरी सेक्टर, 1962 मे लद्दाख, 1965 और 1971 मे जम्मू और कश्मीर के युद्द में गोरखा रेजिमेंट ने अपना पराक्रम का निदर्शन दिया है। भारत द्वारा श्रीलंका भेजी गयी शांति फोर्स में गोरखा पलटन भी शामिल की गयी थी।

आंकड़ों  के अनुसार दो लाख गोरखा सैनिकों ने पहले विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस से लेकर फारस तक की खाइयों में लड़ाई लड़ी। इस युद्द में लगभग 20 हजार जवानों ने रणभूमि में वीरगति प्राप्त की। दूसरे विश्वयुद्ध में लगभग ढाई लाख गोरखा जवान सीरिया, उत्तर अफ्रीका, इटली, ग्रीस व बर्मा भी भेजे गए थे। उस विश्वयुद्ध में 32 हजार से अधिक गोरखों ने शहादत दी थी। दुनिया का तानाशाह हिटलर भी गॊरखाओं से बहुत प्रभावित हुआ था। उसने गोरखाओं की पराक्रम की प्रशंसा करते हुए कहा था कि “अगर मेरे पास गॊरखा होता तो मैं पूरे विश्व पर विजय पाता”! हिटलर उनको ” ब्लाक डेविल्स” यानी ‘काले शैतान’ कहकर बुलाता था। अगर शत्रु भी उनकी प्रशंसा करता है तो अनुमान लगाइए कि कितने जाबांज़ है गोरखा।

भारतीय सेना में 1,20,000 गोरखा सैनिक हैं तो ब्रिटिश सेना में उनकी तादाद 3,500 है। वर्तमान में हर वर्ष लगभग 1200-1300 नेपाली गोरखे भारतीय सेना में शामिल होते हैं। गोरखा राइफल्स में लगभग 80 हजार नेपाली गोरखा सैनिक हैं, जो कुल संख्या का लगभग 70 प्रतिशत है। शेष 30 प्रतिशत में देहरादून, दार्जिलिंग और धर्मशाला असम आदि के स्थानीय भारतीय गोरखे शामिल हैं। इसके अतिरिक्त रिटायर्ड गोरखा जवानों और असम राइफल्स में गोरखों की संख्या करीब एक लाख है। गोरखा रेजिमेंट अपनी बहादुरी के लिए महावीर चक्र और परमवीर चक्र से अलंकृत है।

भारत माता सौभाग्यवती है कि उसके पास जाबांज़ जवान है जो उसका मान बचाए रखने के लिए अपनी जान की बाज़ी लगा देते हैं। भारतीय सेना भारत की शान है तो गॊरखा रेजिमेंट भारतीय सेना का अभिमान है। धन्य है हम कि हमारा जन्म इस पावन भूमी में हुआ  है। भारतीय सेना और उसके जवान भगवान से कम नहीं है। अगर भगवान के बाद किसी की पूजा करना है तो हमारे जवानों की पूजा करनी चाहिए। आज उन्हीं के बलिदानों के कारण हम अपने घरों में सुरक्षित है।