लखनऊ। जिस प्रकार एक मदारी अपना श्रेय दिखाने और बताने के लिये सड़क पर भीड़ एकत्र करके खेल दिखाता है ठीक उसी प्रकार दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल भीड़ को देखकर पागल हो जाते है और अपना नाम करने के लिए कोई न कोई ओछी हरकत कर जाते है। अन्ना हज़ारे के आंदोलन से लेकर जेएनयू में देश द्रोह की हरकत का प्रकरण हो या गुरमेहर की गलत बयानी। केजरीवाल ऐसे किसी मौके को खोना नहीं चाहते है जहाँ से वे मीडिया की सुर्खियों में बने रहे। वाराणसी से नरेंद्र मोदी के विरुद्ध चुनाव लड़ने का उद्देश्य चुनाव जीतना नहीं था बल्कि मीडिया के माध्यम से पूरे विश्व के सामने सुर्ख़ियो में आना था । इस ई खेल में कामयाब होने के बाद ही दिल्ली की पढ़ी लिखी जनता को मुर्ख बनाकर दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने में सफलता भी प्राप्त की।
हमेशा अपने को सुर्ख़ियो में बनाये रखने के उद्देश्य से जगह जगह होर्डिग्स एवं पोस्टरों में अपनी फोटो लगवाने में माहिर केजरीवाल ने दिल्ली में यातायात सुधार हेतु EVEN AND ODD नंबर की गाड़ियों के एक एक दिन चलाने की व्यवस्था भी मात्र अपनी वाहवाही के लिए की थी न कि जनहित में । शातिर दिमाग केजरीवाल दिल्ली के विद्यालयो और विश्वविद्यालयों में युवा छात्रों को समय समय पर भड़का कर उपद्रव कराते है और फिर उनमें अपना विश्वास जागते है। प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध कोई भी आवाज़ उठे तो केजरीवाल उस अवसर को चूकना नहीं चाहते।
प्रधान मंत्री पद का ख्वाब देखने वाले केजरीवाल किसी भी सोची समझी चाल को अंजाम देकर अपने निहित स्वार्थ को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते, यह बात अलग है कि उन्हें आसी किसी बात में सफलता नही मिलती। जेएनयू हो या दिल्ली विश्वविद्यालय दोनों जगह के छात्रों को उकसाने का तातपर्य ही यही है कि केजरीवाल द्वारा किये जाने वाले बड़े काम में उनहे इन छात्रों का सहयोग प्राप्त हो। गौरतलब है कि केजरीवाल आम आदमी पार्टी के किसी अन्य मंत्री या नेता को कभी अपनी वाहवाही में अपने साथ नहीं रखते और न ही उन्हें अपना कद ऊँचा करने का अवसर देते है।अन्ना हज़ारे आंदोलन के अपने कट्टर साथियो को भी पार्टी से बाहर दिखाने का रास्ता सिर्फ और सिर्फ इसलिए दिखया क्योकि वे साफ़ सुथरी छवि के स्पष्टवादी और बेबाक नेता थे जिनकी जनता में छवि केजरीवाल से अच्छी होती जा रही थी।
देश में आजकल देवी देवताओं और स्त्रियों के प्रति आपत्तिजनक टिप्पणियों तथा वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर प्रसारित करने का एक नया चलन आरम्भ हुआ है।यह कार्य समाज में एक ओर जहां विभिन्न समुदायों का विरोध करने के लिए आमने सामने खड़ा कर देता है वही दूसरी ओर युवा पीढ़ी का चरित्र हनन कर् रहा है और उनके दिलो दिमाग में सामाजिक हिंसा और नफरत पैदा कर रहा है।यह सब कार्य देश की कुछ राजनितिक पार्टीयो और उनके नेताओ के संरक्षण में पनप रहे है। निश्चित रूप से ऐसी राजनैतिक पार्टीयो को विदेशी ताकतों से मदत भी प्राप्त होती है। सांप्रदायिक दंगे,छात्र संघो के माद्यम से आतंकवादियों का समर्थन और देशद्रोही कार्यो को बढ़ावा देने की कार्यवाहियां स्वार्थी नेताओ की ही देंन है।
ऐसी घटनाओं पर गंभीरता से चिंतन और मनन करके सरकार को सतर्कता बरतनी होगी और देशद्रोहियो के रूप में बढ़ रही ऐसी ताकतों को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा।देश के हर कोने में ऐसी ताकते जन्म ले रही है क्षेत्रीय दलों द्वारा ऐसे कार्यो पर निहित स्वार्थवश समर्थन दिया जाता है।दिल्ली विश्विद्यालय या जेएनयू इसका जीता जागता उदाहरण है जहाँ देश विरोधी ताकतों ने देश को हिला कर रख दिया है।यह भी देखा होगा कि देश की कुछ विदेशी ताकतों से पलने वाली राजनितिक पार्टीयो के मन्दबुद्धि नेता देशद्रोहियो के समर्थन में खड़े होते भी दिखाई दिये।आज देश को ऐसी ताकतों और ऐसी राजनितिक पार्टीयो के चाटुकार नेताओ से सतर्क रहने की जरूरत है जिन्हें कभी भी देश की सत्ता तो नही मिलेगी पर देश में आतंकी उन्माद बढ़ाने में तत्पर रहेंगे।