
अरविन्द सिंह गोप की राजनीतिक पृष्ठभूमि की अगर बात करें तो कभी उनके गॉड फादर के किरदार में अमर सिंह नजर आते थे। गोप को राजनीति में स्थापित करने का श्रेय अमर सिंह कोजाता है। समाजवादियों का ही मानना है कि कभी गोप को विधानसभा तक पहुंचाने और फिर लोक निर्माण जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय का मंत्री बनाने का काम अमर सिंह ने ही किया था।
अमर सिंह के समाजवादी पार्टी से निकाले जाने के बाद गोप ने शिवपाल सिंह यादव का साथ पकड़ लिया और गोप की पहचान शिवपाल सिंह यादव गुट के विशेष लोगों में होने लगी। समाजवादी पार्टी के नेताओं का ही मानना है कि गोप को शिवपाल सिंह यादव ने ही वर्तमान सरकार में कैबिनेट मंत्री का पद और प्रदेश संगठन में प्रदेश महासचिव का दायित्व दिलवाने का काम कराया। शिवपाल सिंह यादव ने गोप के साथ-साथ उनके साथियों को भी महत्वपूर्ण पद दिलवाने का काम किया।
लेकिन बाराबंकी की राजनीति में किसी ध्रुवतारे की तरह चमक रहे गोप पर बेनी प्रसाद वर्मा की वापसी भारी पड़ती दिखाई पड़ने लगी। जिससे गोप का कद धीरे -धीरे घटने लगा। बेनी प्रसाद वर्मा ने अपने पुत्र पूर्व कारागार मन्त्री राकेश वर्मा को गोप की ही विधानसभा राम नगर में सक्रिय कर उनकी नींदे उड़ाने का काम किया। हालांकि गोप ने भी राम नगर में अपने आपको समर्थकों सहित सक्रिय कर अपने इरादे साफ कर दिए कि वह इस विधानसभा को आसानी से छोड़ने वाले नहीं हैं।
इधर समाजवादी पार्टी में चाचा-भतीजे की लड़ाई के बाद मचे सियासी घमासान के बाद राजीनीति के माहिर खिलाडी माने जाने वाले अरविन्द सिंह गोप ने एक बार फिर पाला बदलकर अखिलेश यादव के गुट में छलांग लगा दी है। यह हम नहीं कह रहे बल्कि राजधानी लखनऊ में लगे गोप के ताजा पोस्टर इसकी गवाही दे रहे हैं। जहां इस पोस्टर में अखिलेश यादव तो मौजूद हैं मगर प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव इससे नदारद दिखई दे रहे हैं।

अरविन्द सिंह गोप को हालांकि इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा। गोप की इस पाला अदला-बदली के कारण ही प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने प्रदेश अध्यक्ष का पद संभालते ही पहला काम गोप को प्रदेश महासचिव से हटाने का किया। जिससे गोप के राजनितिक ग्राफ में कुछ गिरावट जरूर आ गयी। मगर दूसरी तरफ लोगों का मानना है कि इस पाला अदला-बदली में गोप ने अपनी ही पार्टी के नेता बेनी प्रसाद वर्मा से बाजी मार ली है। क्योंकि गोप तो शिवपाल गुट से अलग होकर अखिलेश गुट के भरोसेमंद हो गए, मगर बेनी प्रसाद वर्मा अभी तक यह तय ही नहीं कर पाए हैं कि वह किस गुट के भरोसेमंद रहेंगे।