मुंबई। निकाय चुनावों के नतीजों के बाद महाराष्ट्र की पूरी राजनीति में हलचल मच गई है। बीएमसी चुनावों में बुरा प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस अचानक से किंगमेकर की भूमिका में है। राज्य में अब कांग्रेस और शिवसेना के बीच बढ़ती नजदीकियों की अटकलें हैं। कांग्रेस से हाथ मिलाकर शिवसेना एक ही झटके में बीजेपी को राज्य और बीएमसी की सत्ता से दूर करने का बड़ा दांव खेल सकती है। कांग्रेस ने भी साफ कर दिया है कि गठबंधन पर तब विचार होगा जब शिवसेना फडणवीस सरकार से कदम पीछे खींचेगी। उधर, शिवसेना नेता और परिवहन मंत्री दिवाकर रावते ने भी इस नए समीकरण को हवा देने वाला बयान दिया है।
राज्य सरकार में दोनों सहयोगी शिवसेना और बीजेपी की बीएमसी में सीटें लगभग बराबर हैं। शिवसेना को 84 सीट मिली हैं जबकि बीजेपी को 82 सीटें हासिल हुई हैं। 227 सदस्यों वाली बीएमसी की सत्ता पर काबिज होने के लिए जादुई आंकड़ा 114 का बनता है। ऐसे में कांग्रेस 31 सीट की मदद से इस आंकड़े को पूरा करने के लिए परफेक्ट फिट नजर आ रही है।
शिवसेना के वरिष्ठ नेता और परिवहन मंत्री दिवाकर राउते ने कहा है कि बीजेपी के साथ गठबंधन की संभावना तभी खत्म हो गई जब दोनों ने अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया। शुक्रवार को महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चव्हाण कह चुके हैं कि शिवसेना को बीएमसी में सपॉर्ट चाहिए तो उसे राज्य सरकार में बीजेपी का साथ छोड़ना होगा।
शिवसेना ने पहले ही बीएमसी में नवनिर्वाचित 4 निर्दलीय पार्षदों को अपने खेमे में शामिल कर लिया है। इस तरह शिवसेना के पास 88 पार्षद हो गए हैं। ऐसे में इन 5 वजहों से शिवसेना-कांग्रेस के बीच गठबंधन की संभावना बनते दिख रही है…
1- बीजेपी दोनों के लिए खतरा है।
2- कांग्रेस के लिए राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर शिवसेना से कोई खतरा नहीं है।
3- शिवसेना जानती है कि उसे मुंबई में कांग्रेस से कोई खतरा नहीं है।
4- शिवसेना जानती है कि बीजेपी के साथ गठबंधन बाद में चलकर बीएमसी में उसकी सत्ता के लिए खतरनाक हो सकता है।
5- कांग्रेस के लिए यह एक मौका है जिससे वह राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी से मिली हार का बदला चुका सकती है।
अपनी पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर शिवसेना के एक टॉप नेता ने मुंबई मिरर को बताया कि पार्टी चीफ उद्धव ठाकरे भी राज्य सरकार से बाहर होने का मन बना रहे हैं। ऐसे में शिवसेना नेता और परिवहन मंत्री दिवाकर राउते का बयान इस संभावना को और भी मजबूत कर रहा है। राउते ने कहा, ‘उद्धवजी ने एक पब्लिक मीटिंग में बीजेपी के साथ चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की थी। इस वजह से किसी पार्टी से गठबंधन नहीं होगा। राज्य सरकार से बाहर आने के संबंध में उद्धव जी फैसला करेंगे और हम उनका आदेश मानेंगे।’
एक दूसरे शिवसेना नेता ने बताया कि बीजेपी के साथ गठबंधन का उनकी पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि मुंबई में बीजेपी लगातार फायदे में रही लेकिन हमें नुकसान उठाना पड़ा। आंकड़ों भी उनकी इस बात की गवाही देते हैं। 2007 में बीएमसी में बीजेपी के पास महज 28 पार्षद थे। आज बीजेपी के पास 82 पार्षद हैं। 2007 में शिवसेना के 84 पार्षद थे, 10 साल बाद भी संख्या यही है। वह भी तब जबकि शिवसेना ने अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा है।
2004 में मुंबई में बीजेपी के 4 विधायक थे जबकि शिवसेना के विधायकों की संख्या 9 थी। फिलहाल बीजेपी के पास 15 विधायक हैं जबकि शिवसेना के पास विधायकों की संख्या 14 है। शिवसेना के नेता ने कहा, ‘हम सरकार में अपनी जगह के बलिदान के लिए तैयार हैं। सत्ता में बने रहने का कोई मतलब नहीं है। हमारी चिंता केवल इस बात की है कि हमारे विधायक बने रहें और पार्टी में फूट न आए।’
महाराष्ट्र विधानसभा के 288 सदस्यों में शिवसेना के पास 63 विधायक हैं। बीजेपी के विधायकों के पास 122 विधायक हैं। अकेले पड़ने की स्थिति में बीजेपी बहुमत से 22 विधायक दूर है। अगर शिवसेना ने अपने कदम खींचे तो सरकार बचाने के लिए बीजेपी को एनसीपी की मदद लेनी पड़ सकती है।
उद्धव ठाकरे ने शनिवार को शिवसेना भवन में अपने नए बीएमसी पार्षदों की बैठक बुलाई है। इस बीच बीजेपी ने भी शिवसेना के इस संभावित कदम को देखते हुए खुद को तैयार किया है। एक सीनियर बीजेपी नेता ने बताया कि सीएम देवेंद्र फडणवीस ने इसके लिए प्लान तैयार कर लियाा है। उनका कहना है कि महाराष्ट्र में मध्यावधि चुनाव नहीं होंगे। साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि मेयर के चुनाव से पहले शिवसेना अपना समर्थन वापस ले तो इसमें चौंकने जैसा कुछ नहीं होगा।
क्या हो सकते हैं समीकरण
बीएमसी के लिए
बीएमसी में शिवसेना के 84 नगरसेवक आए हैं। उसे चार निर्दलियों का समर्थन मिल रहा है, क्योंकि इन चार में से तीन तो शिवसेना के बागी रहे हैं। कांग्रेस के 31 और एनसीपी के 9 नगरसेवक हैं। इन्हें मिलाकर 128 का आंकड़ा बनता है। बहुमत के लिए 114 नगरेसवकों का समर्थन चाहिए। दूसरी ओर, बीजेपी के 82 कॉर्पोरेटर चुनकर आए हैं। चंद निर्दलियों के अलावा उसे किसी और का समर्थन नहीं मिल रहा है। ऐसे में, बीएमसी की सत्ता उसकी पहुंच से दूर ही लग रही है।
राज्य सरकार के लिए
महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए भी शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी साथ आ सकते हैं। इससे बीजेपी की फडणवीस संकट में आ जाएगी। बताया जा रहा है कि एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने युक्ति सुझाई है। विधानसभा में शिवसेना के 63, कांग्रेस के 42 और एनसीपी के 41 विधायक हैं। इन तीनों के मिलने से यह संख्या 146 हो जाएगी। सरकार बनाने के लिए 144 विधायकों का समर्थन चाहिए। फिलहाल बीजेपी के 122 और शिवसेना के 63 विधायकों के योग से फडणवीस सरकार चल रही है।