राजेश श्रीवास्तव
दो राज्यों – बिहार और दिल्ली में हुई करारी शिकस्त के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतने बौखला गये हैं कि वह यूपी विधानसभा चुनाव अपने खाते में हर हाल में करना चाहते हैं। चाहे सर्जिकल स्टàाइक हो या फिर आर्थिक स्ट्राइक । सर्जिकल स्टàाइक तक तो ठीक था। उससे आम आदमी इतना नहीं प्रभावित हुआ जितना नोटबंदी के चलते हुए। मैं इस फैसले की आलोचना नहीं करता। शायद कोई नहीं करेगा लेकिन फैसला इतनी जल्दीबाजी में हुआ कि उसके लिये पूरी तरह होमवर्क नहीं किया गया। पांच दिन से एटीएम पूरी तरह बंद हैं। दिहाड़ी मजदूरी करने वाला और निजी कंपनियों में काम करके अपना जीवन यापन करने वाला आम आदमी, गृहणियां सब बैंकों की कतार मंे सुबह आठ बजे से लेकर शाम आठ बजे तक खड़ी हैं। लेकिन उनकी समस्या जस की तस बनी है। मोदी के इस फैसले से बैंकों के कर्मचारी भी हांफने लगे हैं। अगर इस फैसले से काला धन खत्म होता तो जनता सरकार में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बहुत पहले ही नोट बंदी का आदेश दिया था। लेकिन तब भी काला धन खत्म नहीं हुआ। कांग्रेस ने भी एक फैसला लेना चाहा था कि 2००5 से पहले के 5०० और हजार के सारे नोट बंद कर दिये जाने चाहिए तब इसी भाजपा ने जमीन सिर पर उठा ली थी।
मैं फैसले पर नहीं जाना चाहता, क्योंकि यह फैसला कितना कारगर होगा, यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही कुछ दिन बात सीना ठोंक कर बतायेंगे। लेकिन एक आंकड़े के मुताबिक भारत में तकरीबन 6० हजार करोड़ बैंक खाते हैं। इनमें से मात्र 1० से 15 फीसद ही नियमानुसार संचालित होते हंै। बाकी कई खातों में तो महीनों क्या सालों तक एक भी रुपये का लेन- देन नहीं होता। जन-धन खातों का भी यही हाल है। आज तक उसमंे सरकार की ओर से कोई पैसा नहीं आया। एक बैंक अधिकारी की मानें तो अब सभी ऐसे खातों की बहार आ गयी है। जिन खातों को खुलवाने के बाद ध्ोला नहीं जमा हुआ अब उनमें भी ढाई-ढाई लाख रुपये जमा हो रहे हैं। जन-धन खातों में भी रुपया ठूंसा जा रहा है। निश्चित रूप से यह पैसा खाता धारकों का नहीं है लेकिन अब इन खातों का सदुपयोग कुछ रणनीति के तहत किया जा रहा है।
काले धन पर रोक कोई नोट बंदी या कुछ कड़े पैसले नहीं लगा सकते। काले धन पर रोक लगाने की नीयत होनी चाहिए। मोदी सरकार जिस तरह के फैसले ले रही है वह निश्चित रूप से सभी के सभी यूपी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर लिये जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में 2०17 में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। लिहाजा ऐसा कोई भी कारगर कदम मोदी सरकार उठाने से नहीं चूक रही जिसमंे उसकी सरकार की इमेज बनती दिख्ो। चाहे उसकी व्यापक तैयारी की गयी हो अथवा नहीं। इन फैसलों के चलते निश्चित रूप से कोई बड़ा आदमी नहीं बल्कि 8० प्रतिशत आम आदमी ही परेशान है। जिसके अच्छे दिन लाने का वायदा प्रधानमंत्री मोदी ने किया था। मैं अभी विधानसभा चुनाव के परिणामों की बात नहीं करना चाहता क्योंकि उसके लिए शायद अभी उचित समय नहीं आया है। लेकिन इस तरह के जल्दबाजी में लिये गये फैसले निश्चित रूप से भाजपा के लिए सुखद नहीं कहे जा सकते। क्योंकि फैसला अच्छा हो तो उसका क्रियान्वयन भी अच्छा होना चाहिए। चाहे जितना अच्छा निर्णय हो लेकिन उसका ढंग अच्छा न हो और लोग उससे परेशान हों तो उसके परिणाम तो भुगतने ही होंगे।
