नई दिल्ली। कांग्रेस का समय खराब चल रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से शुरू हुआ हार का सिलसिला लगातार जारी है। कांग्रेस के हाथ से उसका सियासी आधार फिसलता जा रहा है। सोनिया गांधी सक्रिय राजनीति से दूर हैं। कांग्रेस में दूसरी पीढ़ी के नेताओं काजैसे अकाल पड़ गया है।
अकाल पड़ा है या फिर ये दिखाया जा रहा है कि गांधी परिवार के अलावा नेता कहीं और से आ ही नहीं सकते हैं। सोनिया गांधी की खामोशी बहुत कुछ कह रही है।कांग्रेस में लंबे समय से राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने की मांग उठती रही है। सोनिया गांधी ने राहुल को उपाध्यक्ष बनाकर इस बात के संकेत भी दिए हैं कि वो जल्द ही अध्यक्ष बनने वाले हैं। लेकिन राहुल गांधी के अब तक राजनीतिक जीवन को देखें तो वो हमेशा से जिम्मेदारी लेने से बचते रहे हैं। कभी खुलकर उन्होंने ये नहीं कहा कि वो कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के लिए तैयार हैं। हमेशा अपने समर्थकों के जरिए इस बाता का ढिंढोरा पीटा कि उन्हे अध्यक्ष बनाया जाए।
राहुल गांधी बले ही कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं हैं लेकिन परोक्ष रूप से कांग्रेस के सभी फैसले वही करते हैं। उनके नेतृत्व में चुनाव लड़े जाते हैं। राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस की हालत ये हो गई है कि वो राज्यों के विधानसभा चुनाव तो दूर निकाय चुनाव में भी तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई है। इसके बाद से राहुल को लेकर पार्टी के अंदर ही सवाल खड़े होने लगे हैं. लेकिन कांग्रेस में चाटुकारिता की राजनीति का पुराना इतिहास रहा है। यही कारण है कि हर हार से राहुल को बचाने के लिए प्यादे आगे आ जाते हैं।
अब राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने को लेकर बहुत बड़ा खुलासा हुआ है। सूत्रों के मुताबिक सोनिया गांधी राहुल को अध्यक्ष नहीं बनाना चाहती हैं। सोनिया को इस बात का एहसास हो गया है कि राहुल के अंदर नेतृत्व क्षमता नहीं हैं। सोनिया गांधी के सामने दो रास्ते हैं। पहला ये कि वो राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाकर पार्टी की दुर्दशा को जारी रखें। दूसरा विकल्प ये है कि वो किसी दूसरे नेता को अध्यक्ष बनाएं। फिलहाल जो संकेत मिल रहे हैं उस से यही जाहिर हो रहा है कि राहुल गांधी के ऊपर सोनिया का भरोसा डगमगा रहा है। ऐसे में अब कांग्रेस के साथ साथ राहुल का सियासी भविष्य भी अंधकारमय दिख रहा है।