लखनऊ। यूपी में जैसे-जैसे चुनाव अपने अंत को ओर बढ़ रहा हैं वैसे-वैसे आने वाली सरकार को लेकर भी कयासबाजी भी तेज हो गयी हैं. और इस कयासबाजी का अहम हिस्सा हैं यूपी के “नौकरशाह”. क्योकि नई सरकार का सबसे ज्यादा असर इन्हीं नौकरशाहों पर पड़ता हैं. ऐसे में चुनाव पूर्व यूपी के ये अधिकारी आने वाली सरकार के साथ अपनी सेटिंग करने में जुट गये हैं और लखनऊ की बदलती हवा भी इस ओर एक बड़ा संकेत दे रही हैं.
इसी कड़ी में नजर आ रहे मायाराज में बने वे स्मारक जो कल तक अखिलेशराज में उपेक्षा के शिकार थे पर आज इन पर अधिकारीयों के नेमत बरस रही हैं. आलम ये हैं कि करोडो-अरबों रूपये खर्च करके फिर से पार्कों को चमकाया जा रहा है और स्मारकों का नवीनीकरण किया जा रहा हैं. मायावती के बनाए कई स्मारकों में करीब 200 गेट लगाए गए थे. इनमें से कई टूटे पड़े थे. अभी तक कभी इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं आया, लेकिन अब एकाएक इनकी भी मरम्मत होनी शुरू हो गयी है. करीब 50 फीसदी गेटों की मरम्मत कर उन्हें दुरुस्त किया जा चुका है. बाकी का काम चल रहा है.
मायावती की सरकार आती है कि नही इस सवाल का जवाब तो 11 मार्च को मिलेगा, लेकिन अधिकारियों का स्मारकों के लिए अचानक उमड़ा दर्द ये जरूर बताता है कि अधिकारी कोई चांस नहीं लेना चाहते. यही कारण है की चार साल से बेसुध पड़े स्मारकों का खयाल उन्हें अचानक से आ गया.
बदला अफसरों का रंग
सूबे के अधिकारी भी अपना रंग बदलते दिख रहे हैं. मायावती के शासन में बने स्मारक 2012 के बाद सुनसान दिखने शुरू हो गये थे. कहीं दीवारें टूट रही थीं, तो कहीं गेट. चार साल से अधिक समय से नज़रअंदाज़ होने के बाद अब एक बार फिर अधिकारियों को इसकी चिंता सताने लगी है. पानी के लिए एक करोड़ की प्लम्बरिंग का सामान आ चुका. गेट और प्लंबरिंग का काम स्मारक समिति की ओर से किया जा रहा है.
नतीजों से पहले ही काम होगा पूरा
सूत्रों का कहना है कि इन सभी कामों को 11 मार्च से पहले पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. आला अधिकारी जल्दी काम पूरा करने का दबाव बनाए हुए हैं. उन्होंने चुनाव नतीजे आने से पहले स्मारकों को दुरुस्त करने का आदेश दिए गए हैं. वहीं सम्बंधित अधिकारियों का कहना है कि ये रूटीन का कार्य है. बजट जारी करने में देरी हुई थी, जिसके चलते काम देर में शुरू हुआ है.
बोले नौकरशाह
नाम न छपने की शर्त पर मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सरकार आने के बाद जनता के भविष्य का निर्धारण तो पूरे 5 साल में होता हैं पर हमारे भविष्य का निर्धारण सिर्फ कुछ महीनो के अन्दर होता हैं. वो बड़ी ही साफ़-गोई से कहते हैं कि सरकार राजनीति आप करें और सजा हम भुगतें ये कैसे हो सकता हैं. हम तो उसी के जिसकी सरकार हैं. ये पूछे जाने पर कि सरकार किसकी आ रही हैं वो बड़े ही शातिरंदाज में कहतें हैं कि जानकारी तो मुझसे ज्यादा आपको होगी. वैसे लखनऊ की बदलती हवा भी आपको बहुत कुछ बता देगी.
वही एक दूसरे अधिकारी कहते हैं कि जनाब सरकार किसी की भी आवें हम तो अपने काम से मतलब रखते हैं. हमारा काम ही आने वाली सरकार से तालमेल बैठना हम तो बस उसी की जुगत में जुटे हुए हैं. फिलहाल आसार माया जी के दिख रहे हैं इसलिए अब हम मायापरस्त होने की तयारी में जुटे हुए हैं.
बहरहाल सरकार किसी की भी आवें पर सत्ता के बदलती इस हवा ने पिछले 5 सालों से उपेक्षित स्मारकों के बागों में बाहर ला दी हैं और जहाँ कोई झाकने तक नहीं आता था, वहां अधिकारियों की चहलकदमी ये साफ दिखाती है कि अधिकारी कोई चांस लेने के मूड में नहीं हैं.