नयी दिल्ली/लखनऊ। नेशनल ग्रीन ट्रीबुनल (NGT) की कडाई के चलते खनन माफिया पर गोंडा जिला प्रशासन ने किया चल अचल सम्पत्ति की कुर्की आस पडोस के खनन माफियाओं में मचा हडकंप। पिछले एक दशक से तरबगंज तहसील के चकरसूल चौबेपुर कल्यानपुर व हरिवंशपुर गाँव में बालू निकालने का काम शुरू हुआ जो धीरे धीरे सरकारी तंत्र सरकार और खनन माफिया की मिलीभगत से चलता रहा और बालू ठेकेदारी का कारोबार सैकडे से हजार, लाख, फिर करोडों में पहुंचा दिया गया। सारा खेल समय समय से प्रभाव में रहे माननीयों के सहयोग से चलता रहा।
अखबारों ने छुटभैया नेताओं की खनन मामले पर खबर न लिखकर गंगा नहाते रहे। लल्लन उर्फ हाफिज ने खनन के आधुनिक यंत्रों के माध्यम से मनकापुर कटरा रेल मार्ग के बगल धरती मां को चीरता रहा, थोडे ही समय में अरबों का मालिक बनकर गोंडा बस्ती फैजाबाद व आस पडोस के जिलों में बालू का एक मात्र कारोबारी बन गया। शिकायतों पर तरबगंज तहसील व जिला प्रशासन कहीं दूर के कुछ भूमि के पट्टे के सहारे कार्यवाही निक्षेपित करता रहा।
2012 में समाजवादी सरकार जब सूबे में बनी उसके दबंग मंत्री सरकार में खनन माफियाओं को संरक्षण देते रहे। यही नहीं, रेलवे के भी तमाम अधिकारी जांच के नाम पर क्लीन चिट देते रहे। और रेलवे लाइन के बगल खुदाई होती रही। हालात यहाँ तक आ गए कि गूगल अर्थ से खनन का गढ्ढा भी दिखने लगा।
सांसद कैसरगंज ने कभी कभार खनन का आरोप कैबिनेट मंत्री पर लगा कर दबाव बनाया पर उनका कोयला व्यापार खनन की अनियमितता का जबाव बनकर उनको चुप कराने में कामयाब हो गया। फिर क्या न तू कह मेरी न मैं कहूं तेरी। लेकिन पिछले साल भाजपा सांसद गोंडा कीर्तिवर्धन सिंह ने खनन के पूरे मामले को एनजीटी में उठाकर मुकदमा दायर कर कार्यवाही की मांग की। एनजीटी का आदेश हुआ कि खनन रोका जाय। पहले तो उप्र सरकार ने एनजीटी को नजर अंदाज किया पर कुछ दिनों बाद आरोपी पर एफआईआर कर जांच के नाम पर खनन चलाते रहे।
इधर विधान सभा चुनाव होने तथा सपा सरकार का दबाव घटने पर जिला प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए आरोपी हाफिज व मों सफीक उर्फ जवान की चक्रशूल ,चौबेपुर, कल्याणपुर ,हरिवंशपुर की लगभग दस करोड की चल अचल सम्पत्ति की नीलामी कर खनन माफिया के खिलाफ कडाई का संकेत दिया गया है।
बताया जाता है आरोपी के पास लखनऊ नोएडा फैजाबाद गोंडा शहरों में दर्जनों मकान है और एक ही परिवार में एक दर्जन से अधिक शस्त्र लाइसेंस देकर उपकृत किया गया है। खनन स्थान के निकट एक महाविद्यालय भी चलाया जा रहा है गोंडा जनपद के आस पास पोकलैंड से बालू निकालने का अकेला छोटा सा लल्लन बालूवाला ने अपने नातेदारों के नाम ट्रकें खरीद कर सप्लाई करा कर सैकडों लोगों का कुनबा विकसित कर लिया है। स्थानीय पुलिस प्रशासन की कमाई का एक बडा मद बालू खनन माना जाता है। प्रशासन की इस कार्यवाही से खनन माफियाओं में हडकम्प के बाबजूद उनका मानना है कि सरकार बनने तक परेशानी है जैसे सरकार बनी सब सही हो जायगा।
अपनी पब्लिसिटी के लिए काॅफी विथ करन की स्टाईल में “काॅफी विथ डीएम” करने वाले डीएम आशुतोष निरंजन की स्थिति भी संदेहास्पद है कहना गलत न होगा की डीएम ने भी खूब मलाई चाटी। तभी वो खनन के मामले पर पर्दा डालते रहे। 21 फरवरी को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने जिलाधिकारी को निर्देशित कर अवैध रेत खनन के मुद्दे पर एक हलफनामा दायर करने के लिए कहा था। इसे पहले डीएम आशुतोष निरंजन पर एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने तीन बार सम्मन के बाद कोर्ट में प्रदर्शित न होने पर कडी फटकार लगाई थी।
जिसके बाद न्यायाधिकरण ने जिला मजिस्ट्रेट के खिलाफ जमानती वारंट जारी कर अदालत के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया था।
वहीं रेलवे के अधिवक्ता ओम प्रकाश ने बताया कि पिछले साल नवंबर में गोंडा में अनधिकृत खनन के बारे में जिला प्रशासन को सूचित किया,था मगर कोई कार्रवाई आज तक नहीं की गई।जबकि डीएम आशुतोष निरंजन एनजीटी को गुमराह करते रहे और ये कहा कि किसी प्रकार की माईनिंग गोण्डा में नही हो रही। गोण्डा डीएम किस वजह से ये सफेद झूठ बोल रहे हैं यह जानना मुश्किल नही है।
वही सांसद गोण्डा कीर्तिवर्धन सिंह ने ट्रिब्यूनल को यह कहा कि नेताओं और खनन माफियाओं का गठजोड इतना तगडा है कि गोण्डा डीएम किसी पर कार्यवाई करने की हिम्मत नही कर पा रहे और झूठ बोल रहे हैं। इसलिए अपने काबिल अधिकारियों से इस मामले पर कार्यवाई कराई जाय।तू डाल डाल मैं पात पात की तरह सांसद अवैध खनन के अरोपियों के खिलाफ खडे हैं वहीं जिला प्रशासन और रेलवे के बयानों में विरोधाभास सब कुछ बयान कर रहा है।
एनजीटी की अगली सुनवाई 7 मार्च को है जहाँ एक बार फिर आशुतोष निरंजन को जवाब देना है। अब देखना है कि वो क्या झूठ बोलेंगे।