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हिंसा से जुड़े ही नहीं थे गुजरात दंगे का चेहरा बने दोनों शख्स

अहमदाबाद। 2002 के गुजरात दंगों का चेहरा बने अशोक परमार उर्फ अशोक मोची और कुतुबुद्दीन अंसारी, दोनों दी दंगों से नहीं जुड़े हैं। सिर पर भगवा कपड़ा बांधे और हाथों में रॉड लिए अशोक तथा दूसरी तरफ असहायता की स्थिति में हाथ जोड़े अंसारी गुजरात दंगों का चेहरा बन गए थे। लेकिन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक न तो अशोक आरोपी है और न ही अंसारी पीड़ित।

दंगे जब अपने चरम पर थे तब अशोक, शाहपुर एरिया में कैमरे में कैद हुए थे। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में अशोक की तस्वीर आने के बाद वह गुजरात में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ घृणा का प्रतीक बन गए थे। गौरतलब है कि गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक कोच में उपद्रवियों ने आग लगा दिया था जिसमें अयोध्या से लौट रहे कारसेवकों सहित 59 यात्री मारे गए थे। इस घटना के बाद दंगे भड़क उठे थे।

42 वर्षीय अशोक ने कहा, ‘मैंने गलत जगह गलत एक्सप्रेशन दे दिए। मुझसे उस तरह से पोज देने को कहा गया था। वहां हो रही हिंसा से मेरा कोई लेना देना नहीं था।’ किसी भी दंगे में आरोपी नहीं होने के बावजूद अशोक दंगे का प्रतीक बने रहे।

वहीं दूसरी तरफ पेशे से टेलर 49 वर्षीय अंसारी की तस्वीर उस वक्त खींची गई जब वह रैपिड एक्शन फोर्स के जवानों से रखियल एरिया में अपने परिवार को बचाने की गुहार कर रहे थे। उनका परिवार तो सुरक्षित रहा लेकिन वह पीड़ित मुसलमानों का चेहरा बन गए। पश्चिम बंगाल की सरकार ने उन्हें कोलकाता में बसने का निमंत्रण दिया था। बहरहाल 3 बच्चों के पिता अंसारी 2005 में अहमदाबाद वापस लौट आए और वह छोटी सी अपनी एक दुकान चलाते हैं।

गुजरात वापसी के बाद अंसारी ने दंगे में अपनी प्रॉपर्टी के नुकसान के लिए अधिकारियों के चक्कर लगाए। लेकिन किराए के मकान में रहने की वजह से सरकार के पास नुकसान हुई संपत्ति का कोई रेकॉर्ड नहीं था। अंसारी की तस्वीर का बाद में कई जगह दुरुपयोग भी हुआ अहमदाबाद में 2008 के सीरियल ब्लास्ट के बाद आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन ने इसका गलत तरीके से उपयोग हुआ था।

मार्च 2014 में अशोक और अंसारी ने एकता और सामाजिक समरसता का संदेश देने के लिए एक साथ मंच साझा किया था। यह मिलाप केरल में एक एनजीओ की मदद से हुआ था, जहां अशोक ने अंसारी की बायोग्रफी रिलीज की।