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हार के बाद भी नहीं छूट रहा समाजवादी पार्टी का ‘यादव प्रेम’

नई दिल्ली। 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए महागठबंधन की वकालत करने वाले नेता इस बात से हैरान हैं कि समाजवादी पार्टी ने यूपी विधानसभा चुनाव में करारी हार से ‘सही सबक’ नहीं लिया है। उन्हें लगता है कि हार के बाद भी पार्टी द्वारा लिए गए फैसलों से यह बात झलक रही है कि वह अपनी गलतियों को सुधारने और कमियों को दूर करने के प्रति गंभीर नहीं है। दरअसल, यह बात एसपी के ‘यादव प्रेम’ को लेकर कही जा रही है।

चुनाव हारने के बाद भी एसपी का ‘यादव प्रेम’ छूट नहीं रहा है। अखिलेश यादव ने विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद वरिष्ठ नेता राम गोविंद चौधरी को दे दिया जो यादव जाति से ही आते हैं। खुद अखिलेश विधानमंडल दल के नेता बन गए। लोकसभा में मुलायम सिंह यादव और राज्यसभा में राम गोपाल यादव पार्टी के नेता हैं। ऐसे में विधान परिषद से लेकर लोकसभा तक सभी मुख्य पदों पर यादव नेता ही काबिज हैं।

यूपी चुनाव में एसपी की हार की एक बड़ी वजह पार्टी में ‘यादवों का प्रभुत्व’ भी मानी जा रही है। बीजेपी ने इसी का फायदा उठाते हुए अन्य ओबीसी जातियों के बीच यादव विरोधी ध्रुवीकरण किया और बड़ी जीत हासिल की। एसपी में ‘यादव प्रभुत्व’ के जारी रहते हुए अन्य ओबीसी जातियों के बीच फिर से पैठ बनाना काफी मुश्किल होगा। महागठबंधन की वकालत करने वाले नेताओं का मानना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए यह बहुत जरूरी है कि यूपी के ‘अति पिछड़े’ और कुर्मी जैसे गैर यादव ओबीसी फिर से एसपी के साथ जुड़ें और वह भी बड़ी संख्या में। एक नेता ने कहा, ‘विधानसभा में गैर यादव नेता प्रतिपक्ष के साथ सांकेतिक तौर पर इसकी शरुआत की जा सकती थी।’

महागठबंधन के इच्छुक नेताओं का मानना है कि एसपी और बीएसपी को ‘सेक्युलरिज्म’ और यादव-जाटव की राजनीति को छोड़ना होगा। इसी को आधार बना कर बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में दोनों दलों को धूल चटा दी। इस बीच एसपी, बीएसपी और कांग्रेस को लोकसभा चुनाव के लिए साथ लाने की गंभीर कोशिशें भी शुरू कर दी गई हैं। वैसे राजनीतिक टकराव के चलते मायावती और मुलायम के बीच गठबंधन काफी मुश्किल लगता है, लेकिन पहले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव में बीजेपी की शानदार जीत के बाद अगर ऐसा वाकई हो जाए तो हैरानी नहीं होगी।

मंडल आयोग के बाद बदली राजनीति में यूपी के ओबीसी और अति पिछड़े समाजवादी पार्टी के वोटर हुआ करते थे। प्रदेश में बीएसपी के उभार के बाद दलित और अति पिछड़े उसके साथ चले गए, लेकिन 2017 के चुनाव में बीजेपी ने इन तमाम समीकरणों को धराशायी कर दिया। एक सांसद ने कहा, ‘हमारे सामने इन समुदायों का भरोसा फिर से जीतने की चुनौती है, या कम से कम इनके एक वर्ग को हमें अपने साथ लाना होगा।’

हालांकि यह भी माना जा रहा है कि महागठबंधन जमीन पर काम तभी करेगा जब हार से सबक लिए जाया और जरूरी सुधार किए जाएं। जानकार मानते हैं कि एसपी को अपने ‘कोर वोट’ से बाहर की जातियों से ताल्लुक रखने वाले नेताओं को आगे लाना होगा तभी उन समुदायों का भरोसा फिर जीतने की संभावना बन सकेगी।