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सुपरपॉवर बनने की रेस में कैसे आगे निकला चीन, जो भारत से था कभी कोसों पीछे

नवनीत मिश्र

नई दिल्ली।…नेहरू मेमोरियल म्यूजियम लाइब्रेरी में एंटीक पिलर्स को निहारते-निहारते मैं अतीत के नेहरूयुग में पहुंच गया। ऐसा लगा मानो  नेहरू मेरे सामने म्यूजियम की सीढ़ियों से नीचे उतर रहे हों। मैं इन ख्यालों में डूबा हुआ था,अचानक एक मजदूर बगल से गुजरा और उसने मलबा फेंका। धूल उड़ी तो सहसा मेरा ध्यान भंग हुआ। और मैं ख्यालों की दुनिया से झट से  हकीकत में पहुंच गया। भारत दौरे पर  मेरा पहला स्टॉप नई दिल्ली में नेहरू म्यूजिमय रहा।  यह भवन कलात्मक ब्रिटिश आर्किटेक्चर का नायाब नमूना है। यूं तो इमारत पुरानी हो चुकी है, मगर मरम्मत ठीक से नहीं हुई है। लुक्स से पता चलता है कि यह इमारत कभी बहुत भव्य रही होगी। जब नेहरू इस भव्य इमारत में प्रवेश किए होंगे तो क्या गजब का अहसास हुआ होगा। उनके अंदर तब एक विजन पैदा हुआ होगा। वह विजन रहा होगा भारत को सुपरपॉवर बनाने का। दिलोदिमाग में नेहरू ने भारत को सुपरपॉवर बनाने का ब्लू प्रिंट भी खींचा होगा।  तब  उन्हें भरोसा रहा होगा कि एक दिन  भारत दुनिया में सेकंडरी नहीं बल्कि अग्रणी भूमिका निभाएगा।

दरअसल नेहरू सपनों में जीने वाली शख्सियत नहीं थे। आजादी मिलने के बाद पूरी निडरता से  भारत को आगे ले जाने का मानचित्र दिमाग में तैयार कर रहे थे। उस वक्त भारत के पास औद्यौगिक विकास के लिए जरूरी रेलवे की बड़ी ताकत थी। यह ताकत ब्रिटिश सरकार ने विदाई के वक्त विरासत में सौंपी थी। तब भारत के पास स्थिर राजनीतिक व्यवस्था थी। भारत की तुलना में पीपुल्स रिपब्लिक चाइना को दो साल बाद आजादी मिली। तुलना करें तो भारत चीन की तुलना में तब     बड़ी ताकत था। हमसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी भारत के पास। भारत इसलिए आगे था,  क्योंकि तब भारत विश्व की सातवीं बड़ी औद्यौगिक शक्ति थी। तब भारत के पास 60 लाख फैक्ट्री वर्कर थे। दूसरी तरफ चीन संघर्ष कर रहा था। उस दौरान चीन के पास महज 12 लाख मजदूर थे।  नेहरू के समय में चीन भारत का एक बटा पांचवां हिस्सा भी नहीं था। दरअसल ब्रिटिश गुलामी के समय  दस साल जेल में बिताने के चलते नेहरू के इरादे दृढ़ हो गए। जब जेल से निकले तो एक नई ऊर्जा और नई चेतना के साथ गुलामी की बेड़ियों से मुक्ति के बाद हाथ में सत्ता लेकर जब नेहरू  भारतीय वायसराय के पुराने बंगले में पहुंचे तो  देश मे विकास की नई क्रांति लाने का इरादा जेहन में था।

दरअसल आजादी के बाद भारत की क्रांति और चीन की 1949 की साम्यवादी क्रांति में जमीन-आसमान का फर्क रहा। नेहरू ने आजादी के बावजूद भारत को आगे ले जाने के लिए ब्रिटिश मॉडल का ही अनुसरण किया। चाहे न्यायिक, संसदीय या शिक्षा व्यवस्था हो  हर जगह ब्रिटिश छाप रही। यहां तक की नेहरू ने जिस लोकतंत्र को भारत में स्थापित किया, उसके बुनियादी सिद्धांत समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, अखंडता भी ब्रिटिश  मॉडल से प्रेरित थे। यह वो ब्रिटिश मॉडल था, जिसे अंग्रेजी हुकूमत ने ने बहुजातीय-बहुधर्मीय भारत पर राज करने के लिए बनाया था। बगावत से बचने के लिए गुलाम भारत में एक स्थिर शासन के लिए यह व्यवस्था तत्कालीन अंग्रेज शासकों ने विकसित की थी। याी बुलडॉग जैसी पुलिस और सख्त कानून… अभिव्यक्ति का दमन और सरकारी फाइलों से सिस्टम चलाना। इस सिस्टम को डेवलप करने के उद्देश्य था भारत में हजारों साल से अर्जित हुई संपदा, संपन्नता और संसाधन को ब्रिटेन ले जाने का। उस वक्त भारत में जातीय और धार्मिक तनाव था। जिसे देखते हुए भारत की एकता के लिए नेहरू ने ब्रिटिश मॉडल पर  ही भरोसा किया। नतीजा था कि नेहरू का भारत एक अलग ही राह पर चल निकला।

भारत की क्रांति चीन की 1949 की क्रांति से बिल्कुल भिन्न थी।  चीन में कम्युनिस्ट पार्टी ने जो क्रांति की, उसने समाज में विसंगतियों को तोड़ दिया। महिलाओं के पैरों में बंधी बेड़ियां तोड़ दीं। रेलवे, शिक्षा, स्वास्थ्य, सरकारी व्यवस्था, टैक्स आदि की दिशा में अभूतपूर्व बदलाव किए। जिससे चीन विकास की राह पर सरपट दौड़ता गया। आज भारत और चीन के बीच प्रगति की दूरियां हैं। सुपरपॉवर बनने की दूरियां हैं। विकास की रेस में भारत के पिछड़ने के कारणों का लेना-देना न तो 20 वीं शताब्दी और न ही 20 साल पहले के सुधारों से है।  इन फासलों का कोई मतलब नहीं।  भारत और चीन के बीज फासला  उऩ दो क्रांतियों का भेद है, जिस पर एक तरफ चीन बढ़ा था, दूसरी तरफ नेहरू। नेहरू गुलामी की सोच को ही ढोते रहे। नेहरू ने  अंग्रेजी हुकूमत के नक्शे कदम पर चलकर भारत के आधुनिकीकरण की कोशिश की।  लेकिन चीन अपने देश के यथार्थ को लेकर आगे बढ़ा। यही वजह थी कि चीन की क्रांति ने कम समय में ही ऐसा अंतर पैदा कर दिया, जिसे भरा नहीं जा सकता। डिंग डैंग के मुताबिक भारत ने नेहरू की उस सोच की कीमत चुकाई है। वह सोच, व्यवस्था  जिसकी छाप भारत के हर शङर में घूम-घूमकर देख सकते हैं।

सभार हिंदी संवाद को डॉट इन