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सियाचिन से सेना हटाने के लिए पाकिस्तान ने की पहल

abdul-basitनई दिल्ली। पाकिस्तान की तरफ से सियाचिन में आपसी सहमति से सेना के जवानों को हटाने और मुद्दो को तुरंत सुलझाने के लिए पहल की गई है। पाकिस्तान की यह पहल उस समय सामने आई है जब पूरा देश लांस नायक हनमंतप्पा समेत अपने 10 जवानों के शहीद होने से शोक में डूबा हुआ है। 3 फरवरी को सियाचिन में आए एक हिमस्खलन में भारत के 10 जवान फंस गए थे। उसमें से एक जवान हनमंतप्पा को 6 दिनों तक बर्फ में दबे रहने के बाद जिंदा वापस लाने में कामयाबी मिली थी। लेकिन गुरुवार को हनुमंतप्पा ने भी अंतिम सांसें ले लीं।
इस बीच पाकिस्तान ने कहा कि सियाचिन से आपसी सहमति से जवानों को हटाकर उसके तथा भारत के बीच सियाचिन मुद्दे का ‘तत्काल’ समाधान निकालने का समय आ गया है। ताकि यह सुनिश्चित हो कि ग्लैशियर पर विषम परिस्थितियों के कारण और जवानों की जानें न जाएं।

पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने इस संबंध में पिछले साल संयुक्त राष्ट्र महासभा में पीएम नवाज शरीफ के प्रस्ताव का जिक्र किया। उस दौरान नवाज शरीफ ने सियाचिन से जवानों को आपसी सहमति से हटाने के संबंध में प्रस्ताव दिया था।

बासित ने कहा, ‘ये हादसे बातचीत के जरिए शांतिपूर्ण तरीकों से जल्दी इस मसले के समाधान की जरूरत पर बल देते हैं।’ बासित ने कहा, ‘इसलिए हमें मजबूती से लगता है कि यह सुनिश्चित करने का समय आ गया है कि सियाचिन में विषम परिस्थितियों के कारण और जानें नहीं जाएं।’

2005 में तत्कालीन पीएम डॉ. मनमोहन सिंह ने सियाचिन ग्लैशियर का दौरा किया था। मनमोहन सिंह भारत के ऐसे पहले पीएम थे, जो सियाचिन पहुंचे थे। उन्होंने दौरे के बाद सियाचिन को ‘पीस माउंटेन’ में तब्दील करने की बात कही थी। तबसे सियाचिन से सैनिकों को हटाने का जिक्र शुरू हुआ था।

सियाचिन को दुनिया के सबसे खतरनाक जंगी स्थानों में से एक माना जाता है। भारत-पाकिस्तान के बीच सियाचिन लेकर तीन दशक से विवाद की स्थिति है। 74 किलोमीटर लंबे इस ग्लैशियर पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिए भारत ने यहां 10 हजार से ज्यादा सैनिकों को तैनात कर रखा है।

एक अनुमान के मुताबिक यहां सेना की तैनाती में भारत को हर दिन करीब 7 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इस बर्फीले स्थान पर कब्जा बनाए रखने की कीमत भारतीय सेना को बड़े नुकसान के तौर पर चुकानी पड़ी है। अब तक इस 74 किमी क्षेत्रफल के बर्फीले इलाके पर कब्जा बनाए रखने की कवायद में भारत के 879 सैनिक अपनी जान गंवा चुके हैं।