Breaking News

सस्ते तेल से सरकार को होगी 3.5 लाख करोड़ की बचत

oilनई दिल्ली। मौजूदा वित्त वर्ष में भारत को तेल आयात पर खर्च होने वाली राशि में बड़ी बचत होगी। वर्तमान वित्त वर्ष में भारत का क्रूड ऑइल इंपोर्ट बिल 62 अरब डॉलर रह सकता है, जो पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले करीब आधा होगा। इसकी वजह यह है कि क्रूड की सप्लाई बढ़ने के कारण इसकी अंतरराष्ट्रीय कीमतों में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। कच्चे तेल के दामों में कमी के चलते सरकार को 51 अरब डॉलर यानी करीब 3,49,640 करोड़ रुपये की बचत होने की उम्मीद है।
ऑइल मिनिस्ट्री की पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) ने अपनी मंथली कमेंट्री में कहा है कि वित्तीय वर्ष 2014-15 में क्रूड इंपोर्ट पर एक्सपेंडिचर 113 अरब डॉलर का था और मौजूदा वित्त वर्ष में उसके मुकाबले 45 फीसदी कमी आने का अनुमान है। इसमें फरवरी और मार्च के लिए इंडियन बॉस्केट क्रूड ऑयल के प्राइसेज 35 डॉलर प्रति बैरल और 67 रुपये प्रति डॉलर का एक्सचेंज रेट के हिसाब से अनुमान लगाया गया है।

जनवरी में इंडियन बॉस्केट क्रूड ऑयल के प्राइस 28.08 डॉलर प्रति बैरल रहे। पीपीएसी ने कहा है कि अगर क्रूड ऑयल की कीमतों में प्रति बैरल एक डॉलर की बढ़ोतरी होती है तो नेट इंपोर्ट बिल 0.16 अरब डॉलर बढ़ेगा। वहीं, अगर डॉलर का एक्सचेंज रेट एक रुपया बढ़ता है तो 541 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी होगी।

वॉल्यूम टर्म में चालू वित्त वर्ष के दौरान क्रूड ऑयल का इंपोर्ट मामूली रूप से घटकर 188.23 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) रहने का अनुमान है, जो वित्त वर्ष 2014-15 में 189.43 एमएमटी के स्तर पर था। हालांकि, अप्रैल-जनवरी के दौरान इंपोर्ट में 4.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। मौजूदा वर्ष में अप्रैल से जनवरी के बीच भारत का क्रूड ऑइल प्रॉडक्शन 1.2 फीसदी घटा, जिससे इंपोर्ट पर निर्भरता 80 फीसदी के ऊपर पहुंच गई।

इस अवधि के दौरान पेट्रोल, डीजल और कुकिंग गैस जैसे पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स की घरेलू खपत 10 फीसदी बढ़ गई। भारत पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स का नेट एक्सपोर्टर है, लेकिन बढ़ती घरेलू डिमांड और कमजोर इंटरनेशनल प्राइसेज ने एक्सपोर्ट्स की रफ्तार सुस्त कर दी है, जो कि जनवरी को खत्म नौ महीने में 9 फीसदी घटा है। ग्लोबल मार्केट में ऑयल की कीमतों में आई तेज गिरावट का भारत को बड़ा फायदा हुआ है। देश का इंपोर्ट बिल घटने और वैल्यूबल फॉरेन एक्सचेंज में बचत के साथ ही ऑयल प्राइसेज में आई गिरावट से फ्यूल सेल्स डीरेगुलेट करने और सब्सिडीज घटाने में मदद मिली है।

देश का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 7 पर्सेंट बढ़ा है, जबकि अप्रैल-दिसंबर 2015 के दौरान फ्यूल सब्सिडी घटकर 22,000 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गई है, जो कि एक साल पहले की समान अवधि में 76,000 करोड़ रुपये के स्तर पर थीं। सस्ते फ्यूल, हायर कार सेल्स और बढ़ती आर्थिक गतिविधियों ने देश में ईंधन की खपत की रफ्तार बढ़ाई है। सरकार ने भी सस्ते क्रूड ऑयल का पूरा फायदा ग्राहकों तक नहीं पहुंचाया है और लगातार फ्यूल पर ड्यूटी बढ़ाई है। मौजूदा समय में कंज्यूमर पेट्रोल की रिटेल कीमतों का करीब 60 फीसदी ड्यूटी के रूप में देता है।