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सपा से गठबंधन कर प्रियंका ने राहुल को पीछे छोड़ा, कांग्रेस में बड़ी जिम्मेदारी मिलने की संभावना

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर 105 सीटें हासिल करना कांग्रेस के लिए कोई विशेष उपलब्धि से कम नहीं कहा जा सकता क्योंकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस चंद सीटों तक ही सिमटी हुई है. पार्टी की इस उपलब्घि का श्रेय कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को तो मिलना स्वाभाविक ही है, लेकिन इस बार मामले में प्रियंका गांधी वाड्रा का रोल खासा चर्चा में बना हुआ है.

कई दिनों से गठबंधन को लेकर चर्चा चल रही थी कि लेकिन मामला बार-बार टूट की कगार पर पहुंच जा रहा है. दोनों ही दलों में गठबंधन के इच्छुक नेता पशोपेश में थे. इस बीच प्रियंका ने हस्तक्षेप किया और गठबंधन साकार हो गया.

अगर कांग्रेस का समाजवादी पार्टी से ये डील नहीं हो पाती तो पार्टी को यूपी में खासकर बेहद शर्मिंदगी झेलनी पड़ती क्योंकि उसने अखिलेश के साइकिल सिंबल जीतने के फौरन बाद ही गठबंधन को लेकर ऐलान कर दिया था और पार्टी के पास कोई प्लान बी भी नहीं था.

अखिलेश के साथ बातचीत में राहुल गांधी और उनके तमाम वार्ताकार काफी कोशिश के बाद भी ज्यादा सीट हासिल करने में फेल हो गए थे. इसके बाद पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी की तरफ से प्रियंका गांधी ने हस्तक्षेप किया और असंभव को संभव कर दिखाया.

अभी ये साफ होना बाकी है कि गठबंधन से कांग्रेस को कौन सी 105 सीटें मिलने जा रही हैं. इतना माना जा रहा है कि इनमें वो सीटें ज्यादा गठबंधन का हिस्सा बनेंगीं, जहां से सपा प्रत्याशी के जीत की उम्मीद कम हो या कांग्रेस के पास देने के लिए प्रत्याशी ही न हो.

लेकिन सच ये ही है कि 105 सीटें हासिल कर कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में बेहतर स्थिति हासिल कर ली है. आंकड़ों पर गौर करें तो इस समय उत्तरप्रदेश में वह चौथे नंबर की पार्टी है, वहीं वोट शेयर उसके पास महज 11 फीसदी ही है.

चाहे जो भी हो लेकिन प्रियंका इस चुनाव में राहुल गांधी से कहीं बड़ी ताकत बनकर उभरी हैं. वैसे प्रियंका गांधी को पार्टी में ज्यादा महत्वपूर्ण रोल दिए जाने की चर्चा पहले भी होती रही है, लेकिन इस बार चर्चा थोड़ी ज्यादा हो रही है.

पार्टी नेताओं के अनुसार पार्टी प्रियंका गांधी से चुनाव प्रचार में और बड़े रोल की उम्मीद करती दिख रही है. अभी तक उन्होंने खुद को राहुल की अमेठी और सोनिया की रायबरेली लोकसभा सीटों तक ही सीमित कर रखा था. और कहीं और प्रचार के लिए जाने की बात को लगातार मना करती आ रहीं थीं. उनके अनुसार इन दिनों सोनिया गांधी की तबियत ज्यादा ठीक नहीं रहती और राहुल गांधी के कंधे पर बहुत ज्यादा जिम्मेदारी आ चुकी है. जाहिर है प्रियंका इस कमी को पूरा कर सकती हैं.

यूपी विधानसभा चुनाव से शुरुआत कर प्रियंका के पूरी तरह राजनीति में उतरने और क्या यूपी विधानसभा चुनाव इसकी शुरुआत हैं और क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि राहुल के नेतृत्व को लेकर उनमें विश्वास नहीं है, इस पर ये नेता कुछ नहीं कहते. हालांकि अनौपचारिक बातचीत में वे ये जरूर कहते हैं कि पार्टी में कोई भी खुलकर नहीं कहेगा लेकिन राहुल गांधी एक नेता के तौर पर ज्यादा प्रेरणादायक नहीं हैं.

पिछले कई सालों से राहुल ने कड़ी मेहनत की है, कभी एक राज्य गए तो कभी दूसरे राज्य गए लेकिन हर बार उन्होंने अपने लिए कोई न कोई परेशानी खड़ी कर ली. उनकी साख पर ही सवाल उठते हैं. उनकी किसी भी कोशिश का जमीनी स्तर पर पार्टी को कोई लाभ नहीं मिल पाया.

इस समय राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष में एक बड़ा खालीपन पैदा हो गया है. 2014 में भारी चुनावी हार के बाद उम्मीद की जा रही थी कि राहुल के नेतृत्व में पार्टीतेजी से आगे बढ़ेगी और इस खालीपन को भर देगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. न तो राहुल पार्टी कैडर को ही प्रेरित कर सके, न ही उन्हें कोई दिशा दे सके.

उनकी भविष्य की योजनाओं में संगठन में पूरी तरह बदलाव करना शामिल था लेकिन ऐसा अब तक नहीं हो सका है. शायद यही कारण है कि वह अभी भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर प्रोन्नत नहीं हो सके हैं.

वहीं दूसरी तरफ प्रियंका की बात करें तो उनमें ज्यादा प्रतिभा दिखती है. उनकी राजनीतिक समझ कहीं बेहतर मानी जाती है, हालांकि अभी तक इसकी परीक्षा नहीं हुई है. उनके साथ सबसे बड़ी बात ये है कि वह लोगों से जल्द सही संबंध स्थापित कर लेती हैं. इसी कारण से वह एक अच्छी सौदागर हैं. समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन इसका ताजा उदाहरण है. यही नहीं एक राजनेता के तौर पर वह अपने भाई से कहीं ज्यादा स्वाभाविक हैं.

तो क्या अब कांग्रेस केंद्रीय स्तर पर प्रियंका को राहुल की जगह देगी. नहीं. इसका असर ठीक नहीं जाएगा. राहुल में इतना समय लगाने के बाद पार्टी उन्हें दरकिनार नहीं कर सकती. यही नहीं मामला परिवार का भी है. माना जा रहा है कि प्रियंका को

एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है लेकिन ये केंद्रीय स्तर से थोड़ी अलग ही होगी. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव इसकी शुरुआत हो सकते हैं.