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वन रैंक वन पेंशन के मुद्दे पर पूर्व सैनिक ने किया सूइसाइड, जहर खाने से पहले घरवालों को किया फोन

ram-kishanनई दिल्ली। पूर्व सैनिकों के लिए वन रैंक वन पेंशन की सिफारिशों में कथित अनियमितताओं को लेकर राजधानी स्थित जंतर-मंतर पर कुछ साथियों के साथ प्रदर्शन कर रहे पूर्व सैनिक राम किशन ग्रेवाल ने सूइसाइड कर लिया है। वह हरियाणा के भिवानी जिले के रहने वाले थे। वह सेना से सूबेदार पद से रिटायर्ड हुए थे। राम किशन के बेटे ने बताया, ‘उन्होंने हमें फोन किया और बताया कि वह सूइसाइड कर रहे हैं क्योंकि सरकार वन रैंक वन पेंशन पर उनकी मांगों को पूरा करने में नाकाम रही।’ उधर, दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने राम किशन की आत्महत्या को लेकर मोदी सरकार पर हमला बोला है।

जहर खाकर घरवालों को दी सूचना
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राम किशन ने अपने सूइसाइड नोट में कहा है कि वह यह कदम सैनिकों के लिए उठा रहे हैं। राम किशन ने सूइसाइड नोट में लिखा, ‘मैं मेरे देश के लिए, मेरी मातृ भूमि के लिए और मेरे देश के वीर जवानों के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर रहा हूं।’ परिजनों के मुताबिक, मंगलवार दोपहर रामकिशन अपने साथियों के साथ रक्षा मंत्री से मिलने जा रहे थे लेकिन रास्ते में ही उन्होंने जहर खा लिया। परिजनों के मुताबिक, राम किशन जो ज्ञापन रक्षा मंत्री को देने जा रहे थे, उसी पर उन्होंने सुसाइड नोट लिखकर (नीचे तस्वीर में) जहर खा लिया। रामकिशन के छोटे बेटे के मुताबिक उसके पिता ने खुद इस बात की सूचना फोन कर उन्हें दी। जहर खाने के बाद रामकिशन को राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहां उनकी मौत हो गई।

पार्क में खाया जहर
पुलिस सूत्रों ने बताया कि राम किशन ओआरओपी की बढ़ी दरें नहीं मिलने और पिछली पेंशन भी कम मिलने से निराश थे। शिकायत लेकर जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन करने दिल्ली आए थे, लेकिन यहां उन्हें ज्यादा लोगों का साथ नहीं मिला। उनके ज्ञापन पर चार लोगों के साइन मिले हैं। शायद यही तीन-चार लोग मंगलवार शाम उनके साथ थे। सभी ज्ञापन लेकर रक्षा मंत्रालय जा रहे थे। साथियों ने बताया कि वे रामकिशन के साथ राजपथ के पार्क में बैठे थे। रामकिशन ने कब जहर खा लिया, उन्हें भी पता नहीं चला। तबीयत बिगड़ने पर वे उन्हें अस्पताल लेकर गए।

केजरीवाल भी कूदे
इस मामले में दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल भी कूद पड़े हैं। वह राम किशन के परिवारवालों से मिलने जाएंगे। केजरीवाल ने राम किशन की मौत पर दुख जताते हुए वन रैंक वन पेंशन के मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार की आलोचना की। केजरीवाल ने देशवासियों से अपील की कि वे पूर्व सैनिकों के अधिकारों के लिए लड़ें।

क्या हैं पूर्व सैनिकों की मांगें
हाल ही में वन रैंक वन पेंशन में विसंगतियों की शिकायतों पर सुनवाई के लिए बनी जुडिशल कमिटी ने अपनी रिपोर्ट रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को सौंपी थी। पूर्व सैनिकों के मुताबिक, पहली शिकायत कट ऑफ ईयर पर है। अधिकतम पेंशन के लिए 33 साल की नौकरी की शर्त 1.1.2006 के पहले के सिविल पेंशनरों के लिए हटा दी गई है। इसे पूर्व फौजियों के लिए भी लागू करने की मांग हो रही है। कुछ और मांगें हैं – जैसे पेंशन को नए सिरे से तय करने का काम हर 5 साल की जगह हर साल हो। इसके लिए बेस ईयर 2014 की जगह 2013 हो। उस साल जिस माह में अधिकतम वेतन हो, उस पर री-फिक्सेशन हो। विसंगतियों को दूर करने में समय लगते देख पूर्व सैनिकों ने दोबारा आंदोलन शुरू करने का फैसला लिया था। कुछ लोगों ने इसके लिए राजनीतिक लड़ाई लड़ने का भी फैसला लिया है। फौजी जनता पार्टी ने इस मुद्दे पर पंजाब और उत्तराखंड में पूर्व सैनिकों के जरिये चुनाव लड़ने का फैसला किया है।

क्या है वन रैंक वन पेंशन का मामला
वन रैंक वन पेंशन का मतलब है-एक ही रैंक पर किसी भी तारीख पर रिटायर होने वाले सैनिक को एक जैसी पेंशन मिले। बरसों पुरानी इस मांग पर अमल का नरेंद्र मोदी ने पीएम बनने से पहले चुनावी वादा किया था। लेकिन सरकार बनने पर देरी होने लगी तो पूर्व सैनिकों ने पिछले साल 15 जून को इस मुद्दे पर रिले हंगर स्ट्राइक शुरू की थी जो अगस्त में बेमियादी अनशन में बदल गई। उसी साल 5 सितंबर को सरकार ने स्कीम का एेलान किया तब जाकर यह अनशन खत्म हुई। लेकिन जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन इस साल अप्रैल तक चलता रहा। रविवार को पीएम ने हिमाचल प्रदेश में सैनिकों के बीच कहा था कि सरकार ने वन रैंक वन पेंशन का वादा निभा दिया है। इसकी 5500 करोड़ रुपये की पहली किस्त जारी की जा चुकी है। कुल रकम चार किस्तों में दी जाएगी।

पर्रिकर ने लिया था क्रेडिट
OROP पर पहली किस्त दी जा चुकी है। विसंगतियों पर कमिटी ने अपनी रिपोर्ट दो दिन पहले ही रक्षा मंत्री को सौंपी है। वहीं, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने वन रैंक वन पेंशन के मामले पर कांग्रेस पर हमला बोला था। पर्रिकर ने कहा था कि मोदी सरकार दूसरों के इतर इस स्कीम को लागू करने वाली पहली सरकार थी। पर्रिकर के मुताबिक, पिछली सरकारों ने सिर्फ lip service (जुबानी जमाखर्च) किया।

सेना में ‘डाउनग्रेडिंग’ भी बना गले की फांस
सिविलियन अफसरों के मुकाबले सेना के अफसरों की कथित ‘डाउनग्रेडिंग’ का मामला भी रक्षा मंत्रालय के गले की फांस बन गया है। वह इस मुद्दे पर सेना से जुड़े लोगों में नाराजगी के बाद दोबारा से गौर करने के लिए तैयार हो गया है। हालांकि, सरकार ने यह भी कहा कि सेना के अफसरों के लिए रैंक में कोई बदलाव या कमतरी नहीं की गई है। बता दें कि सोशल मीडिया में ऐसे दस्तावेज पेश किए गए , जिनमें 1992 के आदेश में मेजर जनरल को जॉइंट सेक्रेटरी के बराबर बताया गया है जबकि 18 अक्टूबर के आदेश में मेजर जनरल को प्रिंसिपल डायरेक्टर के बराबर बताया गया है। इन रपटों पर रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि पुराने आदेशों को मंगाया है। अगर कमियां सामने आईं तो इसे 7 दिन में दुरुस्त कर लिया जाएगा।