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लोकप्रिय संत मुख्यमंत्री को पत्रकार विरोधी साबित करने की नहीं चलेगी साज़िश

लखनऊ । यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ योग मुद्रा में लीन हैं, शायद उनकी नज़र उनके ही कार्यों के प्रसारक और प्रचारक विभाग तक नहीं पहुँच रही है. क्योंकि पिछली सरकार की भ्रष्टाचार रूपी तलैय्या में डुबकी लगाने वाले सवघोषित ईमानदार निदेशक महोदय आज भी उसी कुर्सी पर विराजमान हैं. जिसपर बैठ कर वो अब तक मलाई चाट रहे थे. दरसल मामला सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग उ.प्र. का है जहाँ पिछले पाँच सालों में लूट घसोट का सिलसिला इस क़दर परवान चढ़ा था कि पत्रकार आतिथ्य जैसे काम में भी आधिकारी द्वारा पत्रकारों को आतिथ्य के नाम पर आने वाले बजट की जूँठन के रूप में शाम को मीडिया सेंटर सड़ी हुई 20 चाय और 12 बिस्कुट भेज दिए जाते आयें हैं. पानी देने में भी आम पत्रकारों के सम्मान को दरकिनार करने में चपरासी तक पीछे नहीं हैं.

पानी की बोतल तक घर ले जाते हैं सूचना अधिकारी

पत्रकारों के लिए जो पानी की बोतलें आती हैं उन्हें सूचना विभाग के भ्रष्ट अधिकारी अपने घर ले जाते जिससे वे नित्य क्रिया से लेकर नहाने तक  काम में लाते हैं. सूचना विभाग में पिछली सरकार में भ्रष्ट अधिकारियों ने सदैव ब्लैकमेलिंग और दलाली में लिप्त तथाकथित पत्रकारों को कंधे पर बिठाया है जिसमें नोट खींच,धरना प्रदर्शन का ढोंग रचने वाला बगुला भगत पत्रकार इस बार मुख्य भूमिका में है. योगी जी आ गये लेकिन ये सिलसिला अभी थमा नहीं है. अधिकारी ऐसे ही तथाकथित पत्रकारों के साथ मिलकर योगी सरकार के ख़िलाफ़ षड्यंत्र कर रहें हैं. इतना ही नहीं निदेशक सूचना ने कई ब्लैकमेलर पी.आई.एल. पुरोधाओं को राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्रदान करने का ठेका ले लिया है. बदले में उनके मलाईदार पद की चौकीदारी का सौदा सुनिश्चित किया गया है. योगी सरकार की साफ़ नियत से परेशान भ्रष्ट अधिकारी पत्रकारों में योगी सरकार का विरोधी खेमा तैयार करना चाहते हैं. ये सब कारनामा उसी रणनीति का हिस्सा माने जा सकते हैं. ग़लत तरीक़ों से पैसा कमाने की लत कितनी  बुरी होती है. इसका नमूना तो तब देखने को मिला जब 6 अप्रैल 2017 को पिछले साल के कई महीनों की  उत्तर प्रदेश संदेश मैगज़ीन अखिलेश यादव की फ़ोटो लगी हुई कलर फोटोकापी मशीन पर छपती नज़र आयी, जो की उत्तर प्रदेश सूचना विभाग द्वारा प्रकाशित की जाती है.

प्रकाशन घोटाले का तो राम ही मालिक

दरसल प्रिंटाउट से छपवाकर पिछले साल के नाम पर भुगतान किया जाना था और लाखों के वारे न्यारे हो जाते ,लेकिन एक पत्रकार के द्वारा मुद्दा उठाए जाने पर एक घोटाला होते-होते रह गया. निदेशक महोदय ऐसे में चुप्पी साधते नज़र आए और मामला रफ़ा दफ़ा कर दिया. पिछली सरकार में फ़िल्म बंधु ने ना सिर्फ़ धन के अपितु चरित्रिक घोटाले को भी जन्म दिया है, जिसमें सूचना विभाग के स्मार्ट हीरो जैसे दिखने वाले फ़िल्म अधिकारी के साथ निदेशक महोदय ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. कई डिब्बा बंद फ़िल्मों की हिरोईनों से सम्पर्क के चलते लाखों सब्सीडी दी गई. फ़िल्म किसने देखी पता नहीं. प्रकाशन घोटाले का तो राम ही मालिक है छापा हज़ारों में काग़ज़ पर चढ़ाया गया, लाखों में  किस जिले में वितरण हुआ किस तहसील में बाँट दिया कोई हिसाब नहीं. योगी छापा मार दें तस्वीर साफ़ हो जाएगी. ऐसे तमाम कारनामों के चलते मेहनतकश पत्रकार बिचारे ख़ुद को ठगा महसूस करते हैं.

कॉफ़ी मशीन पर पत्रकारों का नहीं निदेशक का कब्जा

अभी अभी ताज़ा मामला सूचना राज्यमंत्री ने मीडिया सेंटर का दौरा किया और पत्रकारों के लिए एक कॉफ़ी मशीन लगवाने की व्यवस्था की है, लेकिन कॉफ़ी कब किसे मिलती है. इसकी सूचना किसी के पास नहीं. क्योंकि उस मशीन को भी निदेशक के कैम्प में बंदी बनाया गया है. अखिलेश के चहेते रहे निदेशक ने कई ब्लैकमेलर पत्रकारों के पत्र पत्रिकाओं को आचार संहिता लगने के बाद बैक डेट में लाखों के कई पुष्टिपत्र जारी कर करोड़ों का घोटाला किया है, जिसमें उनकी संलिप्तता जाँच होने पर शीशे की तरह साफ़ हो जाएगी. कुल मिलाकर इस तरह के अधिकारियों की एक टीम सक्रिय हो चुकी है जो योगी को बदनाम करने की साज़िश रच रहें हैं. ये आपस में बात करते हैं कि अकेले बाबा क्या करेगे.