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लालू की जिद से नहीं भाजपा के प्रयास से टूटा महागठबंधन लंबे समय से महागठबंधन तोड़ना चाहती थी भाजपा

राजेश श्रीवास्तव

लखनऊ। बिहार में 2० महीने की अल्प अवधि के बाद महागठबंधन टूट गया। भले ही यह महागठबंधन टूटने का ठीकरा लालू यादव के सिर फोड़ा जा रहा हो लेकिन पर्दे के पीछे जिस तरह का खेल खेला गया या यूं कहें कि जिस तरह का माहौल बनाया गया उससे साफ है कि भाजपा अपने मंसूबों में पूरी तरह सफल हो गयी।

दरअसल लंबे समय से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिस तरह से महागठबंधन में होने के बावजूद भाजपा के सुर में सुर मिला रहे थे इससे साफ था कि एक दिन यह होना ही था। मुद्दा चाहे नोटबंदी का रहा हो, या फिर जीएसटी का। मोदी के हर निमंत्रण में शामिल होना विपक्ष के बजाय सरकार के पाले में खड़ा होना। इतनी ही नहीं, राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए बिहार की बेटी के तौर पर खड़ी उम्मीदवार मीरा कुमार को नकार कर राजग के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देना, यह सब घटनाएं बताती हैं कि भाजपा की गोद में नीतीश लंबे समय से खेल रहे थे।

यह सब महज इत्तिफाक नहीं है बल्कि बिहार में भारतीय जनता पार्टी की सोची समझी साजिश थी। बिहार में मुंह की खाने के बाद से वहां पर महागठबंधन की सरकार को खत्म करनेे के लिए जिस तरह से साफ्ट टारगेट नीतीश कुमार को बनाया जा रहा था। इससे साफ हो गया था कि नीतीश कभी भी महागठबंधन तोड़ कर भाजपा के पाले में खड़े हो जायेंगे। अब जब बिहार के मुख्यमंत्री पद से उन्होंने इस्तीफा दे दिया है तो यह भी अब लगभग साफ हो ही गया है कि वहां पर भाजपा के सहयोग से वह दोबारा सीएम भी बन सकते हैं।

यह भी महज कोरी कल्पना नहीं है बल्कि नीतीश के इस्तीफे के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ट्वीट कर नीतीश कुमार को बधाई देना और यह कहना कि भ्रष्टाचार की लड़ाई में उन्होंने जो योगदान दिया उसका वह स्वागत कर रहे हैं। केवल बधाई और स्वागत तक बात सीमित नहीं रही। भाजपा नेता जेपी नड्डा ने उनके मंसूबो को भी उजागर कर दिया। नड्डा ने कहा कि भाजपा बिहार में मध्यावधि चुनाव नहीं चाहती और वह हर तरह का समर्थन नीतीश को देने को तैयार हैं। इसके लिए भाजपा ने आनन-फानन तीन सदस्यीय समिति भी गठित कर दी है।

पूरे प्रकरण में जिस तरह लालू को मोहरा बनाया गया, यह भी बड़ी रणनीति रही। महागठबंधन के दो प्रमुख नेता लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव रहे थे। तीसरे नेता नीतीश कुमार थे न्हें प्रधानमंत्री नीतीश का विकल्प समझा जाता था। नीतीश को भाजपा ने अपने पाले में खड़ा कर लिया है। मुलायम अपने बेटे के हाथों ही टूट गये हैं। उनका उप्र में ही कोई खास वजूद नहीं रह गया है। अब सिर्फ लालू प्रसाद यादव ही थे जो विपक्ष के तौर पर आवाज बुलंद कर रहे थे। लालू को तेजस्वी नाम के तीर से चित कर दिया गया है।

जबकि तेजस्वी पर अभी सिर्फ मामला दर्ज किया गया है। अभी न जांच में वह दोषी पाये गये हैं और न उन्हें सजा हुई है। ऐसे में इस्तीफा मांगना और देना या न देना सिर्फ नैतिकता की बात तो हो सकती है लेकिन इतना बड़ा मुद्दा नहीं कि किसी सरकार को कुर्बान कर दिया जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महागठबंधन से अलग होने पर नीतीश कुमार को ट्वीट कर कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में जुड़ने के लिए नीतीश कुमार को बहुत-बहुत बधाई।

सवा सौ करोड़ नागरिक ईमानदारी का स्वागत और समर्थन कर रहे हैं। देश के, विशेष रूप से बिहार के उज्जवल भविष्य के लिए राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर भ्रष्टाचार के खिलाफ एक होकर लड़ना, आज देश और समय की मांग है। वहीं वरिष्ठ बीजेपी नेता जेपी नड्डा ने मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा कि बीजेपी बिहार में मध्यावधि चुनाव नहीं चाहती। इसलिए भविष्य की संभवनाओं पर चर्चा के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठित की है।

भ्रष्टाचार के मामले में उपमुख्यमंत्री तेजस्वी के खिलाफ सीबीआई की प्राथमिकी दर्ज होने के बाद से ही बीजेपी तेजस्वी के इस्तीफ़े की मांग कर रही थी। बीजेपी की ओर से नीतीश कुमार की स्वच्छ छवि का हवाला दिया जा रहा था, हालांकि राजद ने शुरू से ही तेजस्वी के इस्तीफ़े से इनकार किया। ीतीश ने तेजस्वी से भ्रष्टाचार के मामले में दर्ज शिकायत पर सफाई भी मांगी थी। वहीं लालू यादव ने साफ कहा था कि सीबीआई की एफआईआर इस्तीफ़े का आधार नहीं बन सकती। लालू ने कहा था कि तेजस्वी ना तो इस्तीफा देंगे और ना ही किसी तरह की सफाई पेश करेंगे। तेजस्वी ने भी महागठबंधन में सब कुछ ठीक होने की बात कहते हुए इस्तीफ़े से इनकार किया था।