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रोने वाली आईपीएस अफसर की असलियत देखिए!

लखनऊ। यूपी के गोरखपुर में महिला पुलिस अधिकारी से बीजेपी के विधायक की कथित बदसलूकी के मामले में नया मोड़ आ गया है। मीडिया में खबरें चल रही हैं कि स्थानीय विधायक राधा मोहन अग्रवाल ने ट्रेनी आईपीएस अधिकारी चारू निगम को इतनी बुरी तरह डांटा की वो रो पड़ीं। लेकिन चैनलों और अखबारों में इस पूरे झगड़े की असली कहानी नहीं बताई गई। यह बात सामने आई है कि विधायक के गुस्से से ठीक पहले चारू निगम ने उसी जगह पर महिलाओं और बच्चों के प्रदर्शन के खिलाफ लाठीचार्ज का आदेश दिया था। शराब के ठेके का विरोध कर रही महिलाओं और उनके साथ मौजूद छोटे-छोटे बच्चों को बुरी तरह पीटा गया। खुद चारू निगम ने भी इस दौरान महिलाओं पर लात-घूंसे बरसाए। एक प्रेगनेंट महिला ने सामने आकर बयान दिया है कि उन्होंने उसके पेट पर लात से मारा था। साथ ही उसकी बुजुर्ग मां के साथ भी धक्कामुक्की की। चारू निगम दलील दे रही हैं कि महिलाओं ने उन पर पथराव किया, जबकि मौके पर मौजूद स्थानीय पत्रकारों और चश्मदीदों के मुताबिक ऐसा कुछ नहीं हुआ था। गलती चारू निगम की थी, लेकिन उन्होंने आंसू बहा दिया और दिल्ली में बैठे पत्रकारों ने उन्हें फौरन पीड़ित मान लिया और बीजेपी विधायक को खलनायक बना दिया। (नीचे देखें घटना का वीडियो)

अफसर के आंसू का पूरा सच!

लाठीचार्ज की घटना के बाद जब बीजेपी विधायक राधामोहन दास अग्रवाल को खबर मिली तो वो मौके पर पहुंचे। वो मौके पर मौजूद एसडीएम से बात कर रहे थे तो बीच में चारू निगम ने टोका-टोकी शुरू कर दी, जिस पर वो भड़क गए और चुप रहने को कहा। जिसके बाद वो वहीं पर रोने लगीं। हो सकता है कि पहली नजर में विधायक का बर्ताव गलत हो। लेकिन उससे भी बड़ी गलती चारू निगम कर चुकी थीं। उन्होंने शांतिपूर्ण तरीके से चक्का जाम कर रही महिलाओं को समझाने-बुझाने और बड़े अधिकारियों को बुलाने के बजाय खुद ही लाठीचार्ज का आदेश दे दिया। जिस महिला के पेट पर उन्होंने लात मारी वो पांच महीने की गर्भवती है। तब से उसके पेट में दर्द है और उसे अस्पताल भी ले जाना पड़ा। जिस 70 साल की महिला को लाठी मारी गई उसकी हालत अब भी खराब है। इसके अलावा चारू निगम के ही आदेश पर 7 महिलाओं को जीप में ठूंस कर थाने ले जाया गया। जहां उनके साथ गाली-गलौज और बदसलूकी भी की गई। बाद में प्रदर्शनकारी महिलाओं पर झूठे आरोप लगा दिए गए कि वो पथराव कर रही थीं, जबकि मौके पर मौजूद मीडिया और दूसरे चश्मदीदों के मुताबिक महिलाओं ने कोई हिंसा नहीं की थी।

ठेके पर क्या था विवाद?

बताया जा रहा है कि यहां चिलुआताल थाना क्षेत्र के तीन गांवों में शराब के ठेके खोले गए थे। गांव वाले इसका विरोध कर रहे थे। करीब 15 दिन पहले गांववालों ने विरोध प्रदर्शन किया तो एसडीएम ने आदेश दिया कि तीनों ठेके इन गांवों में नहीं खुलेंगे। दो ठेके तो बंद हो गए, लेकिन एक तीसरा ठेका फिर से खुलने लगा। इससे नाराज महिलाओं ने सड़क पर चक्काजाम लगा दिया। असिस्टेंट एसपी चारू निगम हालात को काबू करने मौके पर पहुंचीं और महिलाओं की बात सुनने या समझाने-बुझाने के बजाय उनसे सीधे भिड़ने लगीं और देखते ही देखते लाठीचार्ज का आदेश दे दिया। जबकि नियम के मुताबिक उन्हें पहले इलाके के थानेदार को बुलाना चाहिए था। क्योंकि महिलाओं का आरोप था कि थानेदार ने पैसे लेकर उस ठेके को फिर से खुलने दिया है।

देखें वीडियो: यह वीडियो पुलिस कार्रवाई से ठीक पहले का है। आप खुद देख सकते हैं कि महिलाओं के पास न तो कोई लाठी-डंडा है और न ही उन्होंने कोई पथराव किया।

विधायक की कथित बदसलूकी के बाद आईपीएस की आंखों से निकले आंसुओं के बाद घटना का दूसरा पहलू दरकिनार हो गया। पहले से ही योगी सरकार और बीजेपी के विधायकों को बदनाम करने में जुटी मीडिया को मौका मिल गया। मामले में उस गर्भवती महिला के आंसुओं को कोई जगह नही दी गई, जिसके गर्भ में 5 महीने का बच्चा है। साथ ही 10 साल के उस बच्चे की चोटें भी किसी को नहीं दिखीं जिस पर पुलिस की लाठीचार्ज का कहर टूटा। मीडिया ने सिर्फ महिला अफसर के आंसू दिखाए, उन गरीब महिलाओं  का खून नहीं दिखाया, जो पुलिस के लाठीचार्ज के कारण बहा। ये घटना जहां पर हुई वो योगी आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र में पड़ता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि जिन महिलाओं को चारू निगम ने बर्बरता से पिटवाया उनको इंसाफ कब मिलेगा। यह बात भी सामने आ रही है कि खुद को बचाने के लिए चारू ने खुद को घायल घोषित कर दिया और अपना मेडिकल भी करवाया। जबकि वीडियो में कहीं भी ऐसा नहीं दिख रहा कि उन्हें कोई चोट आई है।

 चारू निगम का पक्ष

उधर, आईपीएस चारू निगम ने फेसबुक पर इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुये लिखा है कि “मेरी ट्रेनिंग ने मुझे कमजोर होना नहीं सिखाया है। मैं इस बात की अपेक्षा नही कर रही थी, तभी मेरे सहयोगी एसपी सिटी गणेश साहा वहां पहुंचे और उन्होंने मेरी चोटों के बारे में बात की। जब तक एसपी सिटी सर नहीं आये थे, मैं वहां मौजूद सबसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी थी। लेकिन जब एसपी साहब वहां पुलिस बल के साथ आए और मेरे समर्थन में खड़े हुए तब मैं भावुक हो गई।” उन्होंने मीडिया का शुक्रिया भी अदा किया है कि उन्होंने सच दिखाया। ये अलग बात कि चारू निगम इस बात पर कोई सफाई नहीं दे रहीं कि आखिर महिलाओं और बच्चों पर लाठीचार्ज की क्या जरूरत आ पड़ी थी। उस गर्भवती महिला के लिए भी उन्होंने एक शब्द नहीं बोला है जो कह रही है कि मैडम ने मेरे पेट पर लात से मारा। विधायक जब एसडीएम से बात कर रहे थे तो उन्हें बीच में आने की क्या जरूरत थी? उससे पहले और बाद में विधायक ने उनसे एक बार बात भी नहीं की, फिर उन्हें किस आधार पर खलनायक घोषित किया जा रहा है। सबसे बढ़कर यह कि अफसर होने के नाते एक प्रोटोकॉल होता है। इस घटना को लेकर चारू निगम जिस तरह की बयानबाजी सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर कर रही हैं वो इस प्रोटोकॉल का सीधा-सीधा उल्लंघन है।