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योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, क्यों और कैसे मारा गया कानपुर का गैंगस्टर विकास दुबे

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को विकास दुबे एनकाउंटर की जांच को लेकर सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने बताया कि गैंगस्टर को क्यों और कैसे पुलिस को मारना पड़ा। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले में दाखिल हलफनामे में न्यायालय को सूचित किया है कि उसने विकास दुबे और और उसके साथियों की मुठभेड़ में मौत के मामले की जांच के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति शशि कांत अग्रवाल की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग गठित किया है। जांच आयोग को 12 जुलाई से दो महीने के भीतर अपनी जांच पूरी करनी है।

सुप्रीम कोर्ट की ओर से जांच आयोग में बदलाव को लेकर दिए गए सुझावों पर शीर्ष अदालत में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जांच आयोग में बदलाव के सुझावों के बारे में अधिसूचना का मसौदा 22 जुलाई को पेश करेंगे। जांच समिति में शीर्ष अदालत के एक पूर्व न्यायाधीश और एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी को शामिल करने का सुझाव दिया। मेहता ने कहा कि इस मामले में कानून ने अपना काम शुरू कर दिया है और जांच शुरू हो गई है। उन्होंने कहा कि दुबे पैरोल पर था और उसके खिलाफ 65 प्राथमिकी दर्ज थी।

पुलिस महानिदेशक हितेश चंद्र ने अपने हलफनामे में न्यायालय को बताया है कि विकास दुबे और उसके गुर्गों ने 3 जुलाई को कानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में घात लगाकर पुलिस की टुकड़ी पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं थी जिसमें पुलिस उपाधीक्षक देवेंद्र मिश्रा सहित 8 पुलिसकर्मी शहीद हो गए। दुबे की मुठभेड़ में मौत से पहले उसके गिरोह के 5 कथित सदस्य भी अलग-अलग मुठभेड़ों में मारे गए थे।

मेहता ने कहा कि विकास दुबे की तलाश में उसके घर पर दबिश देने गई पुलिस टुकड़ी पर हुए हमले में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या की गई और उनके अंग-भंग किए गए। सॉलिसीटर जनरल ने कहा, ”मैं बाद में जो कुछ हुआ, उसे सही नहीं ठहरा रहा हूं।”

उत्तर प्रदेश सरकार ने न्यायालय में दायर हलफनामे में कहा है कि गैंगस्टर विकास दुबे को मप्र के उज्जैन से कानपुर ला रही पुलिस की टुकड़ी को आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी क्योंकि आरोपी ने भागने का प्रयास किया जिसमें वह मारा गया। विकास दुबे 10 जुलाई को कानपुर के निकट भौती में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था।

हलफनामे के अनुसार राज्य सरकार ने उप्र के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय भूसरेड्डी की अध्यक्षता में 11 जुलाई को तीन सदस्यीय विशेष जांच दल गठित किया है जो इस खतरनाक गैंगस्टर द्वारा किए गए अपराधों और दुबे, पुलिस और नेताओं की कथित सांठगांठ के मामलों की जांच करेगा।

उप्र पुलिस के महानिदेशक के हलफनामे के अनुसार, ”परिस्थितियों के तहत पुलिस की सुरक्षा टुकड़ी के पास यही विकल्प उपलब्ध था कि वह आत्मरक्षा में जवाबी गोली चलाए।” पुलिस महानिदेशक ने इस बात से इनकार किया कि दुबे ने उज्जैन में समर्पण किया था। उन्होंने कहा कि पुलिस से बचने के लिए भाग रहे इस आरोपी को महाकाल मंदिर में समिति के प्राधिकारियों और पुलिसकर्मियों ने मंदिर परिसर में पहचान लिया था।

विकास दुबे की मुठभेड़ में मौत से कुछ घंटे पहली ही याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता घनश्याम उपाध्याय ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने और न्यायालय की निगरानी में 5 आरोपियों की मुठभेड़ में हत्या की सीबीआई से जांच कराने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया था।

दिल्ली स्थित अधिवक्ता अनूप प्रकाश अवस्थी और एक अन्य ने भी अलग याचिका में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले और बाद में 10 जुलाई को विकास दुबे की पुलिस मुठभेड़ में मौत के मामले और उत्तर प्रदेश में पुलिस-अपराधियों और नेताओं की साठगांठ की न्यायालय की निगरानी में सीबीआई या एनआईए से इसकी जांच कराने तथा उन पर मुकदमा चलाने का अनुरोध किया है।

इसके अलावा, कानपुर में पुलिस की दबिश के बारे में महत्वपूर्ण सूचना विकास दुबे तक पहुंचाने में कथित संदिग्ध भूमिका की वजह से निलंबित पुलिस अधिकारी ने भी याचिका दायर की है। पुलिस अधिकारी कृष्ण कुमार शर्मा ने अपनी पत्नी विनीता सिरोही के जरिये यह याचिका दायर की है। इसमें विनीता ने आशंका व्यक्त की है कि उसके पति को गैरकानूनी और असंवैधानिक तरीके से खत्म किया जा सकता है।

इस बीच, गैर सरकारी संगठन पीयूसीएल ने भी एक याचिका दायर कर विकास दुबे और उसके दो सहयोगियों की उत्तर प्रदेश में पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने की घटना की जांच विशेष जांच दल से कराने का अनुरोध किया है।