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यूपी में मनरेगा घोटाले की बहती गंगा में पत्रकार भी डुबकी लगाने से पीछे नहीं रहे

लखनऊ। सूबे की बसपा और सपा की सरकार में उत्तर प्रदेश के नौकरशाह केंद्र से  मनरेगा योजना के तहत राज्य सरकार को भेजी गयी रकम दीमक की तरह चाट गए. अरबों रुपये के घोटाले की चल रही सीबीआई जांच का फंदा अब ग्राम प्रधानों पर भी कसता नजर आ रहा है. दरअसल इस मद की धनराशि की बंदरबाँट इस कदर परवान चढ़ि की ब्लॉक और जिले के पत्रकार भी इससे वंचित नहीं रहे. गौरतलब है कि सूबे के महोबा जिले से निकली इस घोटाले की चिंगारी जैसे ही आग की लपटों में तब्दील हुई, इसे बुझाने के लिए ग्राम प्रधान अपने स्तर से जुट गए. जिसके चलते घोटाले की परतें न खुलें इसके एवज में देश के नामी गिरामी अख़बारों और पत्रकारों को पैसे बांटे गए.

सूत्रों के मुताबिक सूबे के कई जिलों में करोड़ों रुपये अधिकारियों ने अपने आपको बचाने के लिए ग्राम प्रधानों के जरिये पत्रकारों को विज्ञापन के नाम पर बाँट दिए. जिन जिलों में यह गड़बड़ घोटाला किया गया है. उनमें महोबा, सोनभद्र, मिर्जापुर, बाँदा, चित्रकूट और हमीरपुर समेत प्रदेश के कई जिले शामिल हैं. दिलचस्प बात ये है कि महात्मा गाँधी रोजगार गारंटी ( मनरेगा) योजना के मद का पैसा अख़बारों में विज्ञापन देकर प्रचार और प्रसार करने के लिए नहीं बल्कि उसका उपयोग संविदा पर तैनात कर्मचारियों को मानदेय देने के लिए होता है. प्राथमिकता के तौर पर योजना में तैनात संविदाकर्मियों को उनका मानदेय दिया जाना जरुरी है. लेकिन अधिकारियो ने अपने आपको इस घोटाले में नपता देखकर इस महत्वपूर्ण योजना का पैसा पत्रकारों को खुश करने पर लुटा दिया.

जिसके चलते 100 दिन का रोजगार देने के एवज में केंद्र से राज्य सरकार को मिली धनराशि लोगों को खुश करने पर लुटा दी गयी. इसी का नतीजा है कि प्रदेश में इन अल्प मानदेय संविदा कर्मियों का मानदेय 12 – 12 महीनों से बकाया होने के कारण कुछ संविदा कर्मियों ने भुखमरी की कगार पर खड़े होने के कारण आत्महत्या कर ली. इस मामले की जांच करने पहुंचे केंद्रीय रोजगार गारंटी परिषद् के पूर्व सदस्य और कांग्रेसी नेता संजय दीक्षित के सामने जब ये मामला आया तो उन होनें इस बाबत यूपी के प्रमुख सचिव ग्राम विकास को एक चिट्ठी लिखकर उनसे इस प्रकरण में सख्त रवैया अख्तियार करने की मांग की. इसके साथ ही उन्होंने अपनी चिट्ठी में उनसे ये भी कहा कि संविदा पर कार्यरत कर्मचारी मानदेय न मिलने के कारण भुखमरी से तड़प कर आत्महत्या कर रहे हैं.

जबकि इस मद का तकरीबन 2 हजार करोड़ रुपये अधिकारियों को बचाये जाने के लिए ग्राम प्रधानों ने नामी गिरामी अख़बारों के पत्रकारों को विज्ञापन के नाम पर बाँट दिया है. जिस पर फौरी कार्रवाई कर इस पर तत्काल रोक लगायी जाये. यही नहीं पूर्व में दी गयी धनराशि कि वसूली कर दोषी व्यक्तियों पर कार्यवाही की जाये. यही नहीं कांग्रेसी नेता ने अपनी इस शिकायती चिट्ठी के साथ प्रमुख सचिव ग्राम विकास को 200 पन्नो के साक्ष्य के साथ सबूत भी पेश किये.

लेकिन 5 दिसंबर 2013 को दी गयी इस शिकायती चिट्ठी पर तत्कालीन प्रमुख सचिव ने कार्यवाही करने की बजाय उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया. जिसके चलते न तो इस मद के पैसों को लुटाने पर कोई रोक लग सकी और न ही पूर्व में दी गयी धनराशि की वसूली की जा सकी. आपको बता दें कि इस बड़े घोटाले में करीब तीन दर्जन आईएएस और पीसीएस अफसर फंसे हुए हैं, जिनको बचाये जाने के लिए राज्य सरकार ने अभी तक न तो सीबीआई को अभियोजन की अनुमति दी है और न ही अपने स्तर से कोई कार्रवाई की है.जिसके चलते अखिलेश के चहेते आईएएस अफसर पंधारी यादव समेत तीन दर्जन नौकरशाह मौज कर केंद्र सरकार की रोजगार गारंटी योजना की खिल्ली उड़ा रहे हैं. फिलहाल केंद्र और राज्य में बीजेपी की सरकार क्या इस मामले में सीबीआई को जांच के लिए अभियोजन की अनुमति प्रदान करेगी या वह भी बसपा और सपा सरकार की तरह इस मामले को ठन्डे बस्ते में डाल देगी.