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यूपी में अब होगी अति पिछड़ा वोट बैंक की जंग

pd logलखनऊ। यूपी में ‘प्लस’ फैक्टर रहे अति पिछड़ा वोट बैंक की जंग और तेज होगी। इसकी वजह यह है कि सभी पार्टियों का अपना परंपरागत वोट बैंक है। इस परंपरागत वोट बैंक के अलावा जो पार्टी अतिपिछड़ों को अपनी ओर करने में सफल रहती है, वह प्लस हो जाती है। जातियों और उप जातियों के समूहों में प्रदेश में सबसे ज्यादा 33 फीसदी वोटर अति पिछड़े ही हैं।

बीजेपी: प्रदेश में ब्राह्मण, कायस्थ और क्षत्रिय मिलाकर लगभग 20 फीसदी सवर्ण हैं। इनका एक बड़ा तबका बीजेपी और कुछ कांग्रेस का वोटर माना जाता है। लंबे समय से कांग्रेस के हाशिए पर रहने की वजह से इस वर्ग के लगभग 12 से 15 फीसदी वोटरों पर कब्जा माना जाता रहा है। अति पिछड़ों की कुल आबादी 33 फीसदी है। इसमें से 10 फीसदी भी बीजेपी को मिल जाए तो यह 22 से 25 फीसदी हो जाता है। इसके बाद अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में से भी कुल 10 फीसदी मिल गया तो यह आंकड़ा 35 फीसदी तक पहुंच सकता है। केशव प्रसाद मौर्य ओबीसी से आते हैं। ऐसे में सबसे बड़े 33 फीसदी बल्क वोटर में से 10-11 फीसदी भी दिलाने में सफल हो जाते हैं तो यह बड़ी कामयाबी होगी।

बीएसाी: बीएसपी का दलित कैडर वोट है। दलितों की आबादी करीब 24 प्रतिशत है। इसमें से 18 फीसदी पर उसका कब्जा माना जाता है। कुल 18 फीसदी मुसलमान हैं। इनमें से एक तिहाई यानी, 6 फीसदी आ गया तो यह 24 प्रतिशत हो जाता है। अब रहा अति पिछड़ा 33 प्रतिशत। इसमें से वह एक तिहाई ले जाए तो वह भी 35 प्रतिशत पार कर जाएगी। यही वजह है कि बीएसपी प्रमुख मायावती लगातार दलितों के साथ अति पिछड़ों की बात कर रही हैं। बीएसपी दलित-अति पिछड़ा रैलियां और बैठकें भी कर रही है।

समाजवादी पार्टी:समाजवादी पार्टी का कैडर वोट पिछड़ा वर्ग ही है। कुल पिछड़ा वोटर करीब 54 प्रतिशत है। इसमें ही 33 फीसदी अति पिछड़ा है। माना जाता है कि इसमें भी यादव और अन्य ओबीसी उसके साथ रहता है। मुसलमानों का छह फीसदी और अति पिछड़ों का 10 फीसदी से ऊपर मिल जाता है तो वह भी अच्छा खासा आंकड़ा छू लेती है।

कांग्रेस: जहां तक कांग्रेस की बात है तो उसका टारगेट वोटर सभी जातियों में बिखरा हुआ है। धर्म निरपेक्षता के नाम पर और बीजेपी विरोध में दलित, अति पिछड़ा, सवर्ण तथा मुसलमानों के एक वर्ग को वह आकर्षित करती है। चुनावी रणनीतिक प्रशांत किशोर की सेवा लेने के बाद कांग्रेस की स्ट्रैटिजी भी यही है कि छोटी पार्टियां और उपेक्षित जातीय तबकों को जोड़ा जाए। ऐसे में उसकी नजर भी अति पिछड़ों पर है।

बीजेपी यूपी में केशव प्रसाद मौर्य की इमेज मिनी मोदी के तौर पर पेश करने की तैयारी में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह केशव प्रसाद भी पिछड़ा वर्ग से आते हैं। दोनों चाय वाले रहे हैं। इससे जातीय समीकरण साधने में मदद मिलेगी। बीजेपी के लिए मुफीद कट्टर हिंदुत्व की छवि को भुनाने में भी केशव प्रसाद का नाम फिट है। वह आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल में लंबे समय तक काम करते रहे। कई हिंदू आंदोलनों में वह आगे रहे।