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मोदी सरकार को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने तगड़ा झटका दिया, वेलस्पन एनर्जी द्वारा लगाए जाने वाले 1320 मेगावाट के ताप बिजली घर की पर्यावरणीय स्वीकृति रद्द

adaniलखनऊ। केंद्र की मोदी सरकार को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने तगड़ा झटका दिया है। ट्रिब्यूनल ने गोयनका ग्रुप की कंपनी वेलस्पन एनर्जी द्वारा उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद में लगाए जाने वाले 1320 मेगावाट के ताप बिजली घर की पर्यावरणीय स्वीकृति रद्द कर दी है। 7000 करोड़ की लागत से बनाए जाने वाले इस पावर प्लांट के निर्माण के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति ,केंद्र में मोदी सरकार के अस्तित्व में आने के महज दो महीने के भीतर 31 अगस्त 2014 को दे दी गई थी।

सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि वेलस्पन एनर्जी और अडानी ग्रुप के बीच प्रस्तावित पावर प्लांट्स की खरीदी की बातचीत अंतिम दौर में चल रही थी। गौरतलब है कि जिस इलाके में यह परियोजना स्थापित की जा रही थी वह इलाकर सुरक्षित वन क्षेत्र में निहित है,वही काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का दक्षिणी कैम्पस भी प्रस्तावित प्लांट से मह्ज 7 किलोमीटर दूर है।पूर्व में बीएचयू के 550 छात्रों और रजिस्ट्रार ने बिजलीघर के निर्माण को रोकने के लिए पर्यावरण मंत्रालय भी लिखा था। ग्रीन ट्रिब्यूनल में परियोजना के खिलाफ्र वाद भी बीएचयू के पूर्व छात्र देबोदित्यो सिन्हा की संस्था विन्ध्य बचाओं आंदोंलन द्वारा डाला गया था |

अभी कुछ दिन ही हुए जब टाटा ग्रुप ने अपने पूर्व अध्यक्ष साइरस मिस्त्री को अचानक उनके पद से हटा दिया। बहुत कम लोगों को पता होगा कि साइरस को हटाने की एक बड़ी वजह टाटा स्टील और वेलस्पन के बीच हुआ समझौता था ,जिसके अंतर्गत टाटा ने वेलस्पन रिनेवेबल एनर्जी को 10 हजार करोड़ रुपयों में खरीद लिया था।

रतन टाटा समेत टाटा के कई शेयर होल्डर इस सौदे से बेहद नाखुश थे। बुधवार को दिए गए निर्णय में न्यायालय ने वेलस्पन कंपनी को मिर्जापुर के मडिहान में जहाँ 11 सौ एकड़ में बिजलीघर का निर्माण कराया जाना था,निर्माणस्थल की भूमि को यथावत करने का भी हुक्म सुनाया है साथ ही कहा है कि अगर कंपनी चाहे तो अगले दो महीने में किसी भी शीर्ष अदालत में अपील कर सकती है।महत्वपूर्ण है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश का यह इलाका जंगली जीवों के अलावा जैव विविधता के बड़े केन्द्रों में शुमार रहा है ।

गौरतलब है कि वेलस्पन द्वारा 2 हजार मेगावाट का एक पावर प्लांट मध्य प्रदेश के अनुपपुर में भी स्थापित कर रही है।वेलस्पन की मिर्जापुर जिले में स्थापित परियोजना पहले गाजीपुर जिले में स्थापित की जानी थी ,मायावती के शासनकाल में जून 2012 में 9 परियोजनाओं को पावर परचेज एग्रीमेंट के तहत मंजूरी दी गई थी जिसमे यह परियोजना भी शामिल रही है।

वेलस्पन परियोजना में अडानी समूह की रूचि की अपनी वजहें रही हैं। वेलस्पन अपनी परियोजना जहाँ स्थापित कर रही थी वहां से भी गंगा होकर गुजरती है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने इलाहाबाद से हल्दिया तक 11 सौ किलोमीटर के जलमार्ग को विकसित करने का काम शुरू किया है। अगर इस जलमार्ग का निर्माण पूरा होता है तो इसका सर्वाधिक फायदा अडानी समूह को होना तय है,लेकिन न्यायालय के निर्णय ने उनकी राह में एक बड़ी मुसीबत ला खड़ी की है । क्योंकि जलमार्ग में स्थित हल्दिया में अडानी का फ़ूड प्रोसेसिंग प्लांट है तो हल्दिया से सटे ओड़िसा का धामरा पोर्ट भी अडानी की मल्कियत है।

गौरतलब है कि यह पोर्ट अडानी ने भाजपा द्वारा लोकसभा चुनाव जीतने के दिन ही खरीदी थी।इसके अलावा झारखंड में भी गंगा के किनारे अडानी का एक बिजलीघर लगना है। ऐसे में अगर मिर्जापुर में भी गंगा नदी के किनारे मडिहान के दादरीखुर्द में वेलस्पन एनर्जी द्वारा लगाया जाने वाला बिजलीघर अडानी के पास होता तो उनको बड़ा लाभ मिलता। दरअसल पोर्ट के साथ साथ खुद की कोयला खदान होने का अडानी को अतिरिक्त लाभ मिल सकता है अगर उन्हें कोयले के परिवहन के लिए गंगा का परिवहन मार्ग और उसके किनारे स्थित बिजलीघर मिल जाए|निस्संदेह ऐसे में बिजली क्षेत्र में काम कर रही तमाम निजी कंपनियों से अडानी ग्रुप बेहद आगे निकल जाएगा।