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मानेकशॉ: जनरल जो पीएम इंदिरा गांधी को ‘स्वीटी’ कह सकता था

सैम मानेकशॉ बिना किसी शक भारत के सबसे मशहूर और सम्मानीय फौजी जनरल हैं. वो आदमी जिसने 1971 में पाकिस्तान से इतिहास का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण करवाया. लेकिन फील्डमार्शल मानेकशॉ सख्त फौजी होने के साथ-साथ अपनी शरारत और बेबाक मजाक के कारण भी जाने जाते हैं. ऐसे कई मौके हैं जब मानेकशॉ ने कुछ ऐसा बोला हो जो किताबों और किस्सों में लिखकर रख लिया गया.

एक मोटरसाइकिल के बदले पाकिस्तान

सैम मानेकशॉ और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति याहया खान एक साथ फौज में थे. मानेकशॉ के पास एक महंगी अमरीकी मोटरसाइकिल थी. इस याहया खान ने मानेकशॉ से कहा कि नए बने पाकिस्तान में ऐसी बाइक मिले न मिले. मानेकशॉ ने वो बाइक 1000 रुपए में याहया खान को दे दी. याहया पाकिस्तान चले गए. लेकिन मनेकशॉ के पैसे नहीं दिए. समय बीता मानेकशॉ भारतीय सेना के कमांडर इन चीफ थे. याहया पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आला. पाकिस्तान के सरेंडर के बाद मानेकशॉ ने कहा कि याहया ने अपने आधे देश के साथ मेरी बाइक की कीमत अदा की.

इंदिरा गांधी को स्वीटी

मानेकशॉ इंदिरा गांधी के साथ मजाक करने के लिए भी मशहूर थे. लोग इंदिरा गांधी से बात करने में डरते थे मगर सैम उन्हें स्वीटी कह कर बुलाते थे. 1971 की लड़ाई के लिए जब इंदिरा ने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा मैं हमेशा तैयार हूं, स्वीटी. इंदिरा अपने हिसाब से लड़ाई शुरू करना चाहती थीं. मानेकशॉ ने उन्हें कहा वो इस्तीफा भेज देंगे लेकिन बिना तैयारी के जंग नहीं शुरू करेंगे. इंदिरा उनकी बात मान गईं उसके बाद जो हुआ वो इतिहास है.

इंदिरा गांधी से उनके इस तरह के रिश्ते हमेशा बने रहे. एक बार इंदिरा गांधी विदेश से लौटीं तो सैम मानेकशॉ ने उन्हें देखकर कहा कि आपका नया हेयर स्टाइल बड़ा अच्छा लग रहा है. इंदिरा गांधी का जवाब था कि सिर्फ आप ही ने गौर किया. एक बार अफवाह उठी कि सेना तख्तापलट कर इंदिरा सरकार को हटा सकती है. मानेकशॉ इंदिरा से मिले और कहा कि मेरी और आपकी दोनों की नाक बड़ी लंबी है. मगर मैं दूसरे के काम में अपनी नाक नहीं अड़ाता. इसलिए आप भी मेरे काम में अपनी नाक न डालें.

गधे ने लात मार दी

1971_Instrument_of_Surrender

मानेकशॉ अपने फौजियों के प्रति भी खास लगाव रखते थे. एक बार एक नया अफसर कैंट में पहुंचा. उसके पास अपना काफी सामान था जो उससे संभल नहीं रहा था. मानेकशॉ आए उस फौजी की मदद की. नए भर्ती हुए अफसर ने कमांडर को नहीं पहचाना. उसने पूछा कि यहां क्या करता हूं. मानेकशॉ बोले, नए अफसरों का सामान उठाने में मदद करता हूं. अगर समय बच गया तो इन्फ्रेंटरी को कमांड भी कर लेता हूं.

विश्वयुद्ध के दौरान मानेकशॉ बर्मा फ्रंट पर थे. उन्हें 9 गोलियां लगी. हालत इतनी खराब थी कि उनके सीने पर मिलिट्री क्रॉस रख दिया गया. मिलिट्री क्रॉस का मैडल मरने के बाद नहीं दिया जा सकता. मानेकशॉ ने आदेश दिया कि घायलों को ले जाने में रफ्तार धीमी न की जाए. मगर उनके गोरखा सिपाही उन्हें लेकर मिलिट्री बेस तक आए. वहां डॉक्टर ने बताया कि इन्हें जिगर, फेफड़ों और सीने में गोलियां लगी है. ये नहीं बचेंगे, इसलिए इनका इलाज नहीं होगा. गोरखा ने डॉक्टर पर राइफल तान दी. कहा हम अपने अफसर को इसलिए पीठ पर यहां तक लाद कर लाए हैं. अगर इलाज नहीं किया तो डॉक्टर को गोली मार देंगे. डॉक्टर ने उनकी गोलियां निकाल कर उनकी आंत का एक हिस्सा काट दिया. सबकी आशंकाओं के बीच वो बच गए. मानेकशॉ से जब पूछा गया कि क्या हुआ था? तो वो बोले गधे ने लात मार दी थी.

वैसे मानेकशॉ अपने कॉन्फिडेंस को लेकर बहुत स्पष्ट थे. उनसे पूछा गया कि अगर वो पाकिस्तान की सेना के जनरल होते तो क्या होता. मानेकशॉ का बेझिझक जवाब था कि तो पाकिस्तान जीतता.