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भाजपा के खिलाफ विपक्ष की एकता को लग रहा बार-बार झटका, मायावती 27 को लालू की रैली में नहीं जाएंगी

लखनऊ। राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया लालू प्रसाद यादव  ने 27 अगस्त को पटना में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विपक्षी दलों की संयुक्त रैली आयोजित की हैं। लालू ने उसमे बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती को भी आमंत्रित किया था। मायावती को बिहार से राज्य सभा मे भेजने का भी आश्वासन दिया था। इतना ही नही अखिलेश और मायावती को एक साथ मंच पट लाने की कवायद भी जोरो से  की जा रही थी।

इसी बीच कल BSP के ट्यूटर एकाउंट्स से एक पोस्टर जारी होने की चर्चा दिनभर गर्म रही जिसमे मायावती के साथ अखिलेश यादव को भी दिखाया गया था। समझा जा रहा है कि इसी पोस्टर से खिन्न होकर एक ओर BSP ने इसे फ़र्ज़ी पोस्टर बताया है वही दूसरी ओर 27 अगस्त को लालू द्वारा आयोजित रैली में भाग न लेने का निर्णय लिया है। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के इस निर्णय से लालू और सोनिया समेत भाजपा के वियोधी सभी पार्टियो को जोर का झटका लगा है।

इसके बाद लालू प्रसाद यादव से सोचा था कि भाजपा के खिलाफ संयुक्त विपक्ष के अभियान में मायावती भी शामिल होंगी। मायावती के आने से सभी विपक्षी पार्टियों को तो दलित वोट बैंक का लाभ होता पर मायावती को सिर्फ हानि ही उठानी पड़ती क्योकि सवर्णों के वोट मायावती के पक्ष में जाते नही दिखाई दे रहे थे।अब तो मायावती ने लालू की पटना में 27 अगस्त को होने वाली रैली में जाने से इन्कार कर दिया है। इससे लालू प्रसाद यादव की सींच और मुहिम को झटका लगा है।

लालू प्रसाद यादव ने 27 अगस्त को पटना में ‘बीजेपी हटाओ, देश बचाओ’ रैली आयोजित की है। इसमें देश के गैर-एनडीए दलों के नेताओं को आमंत्रित किया गया है। आरजेडी की इस रैली को 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता को मजबूती मिलने के तौर पर देखा जा रहा है। विपशियो के साथ मिलने से मायावती को खासा नुकसान यूपी में ही उठाना पड़ जाता।

मगर, जैसे चुनाव का वक्त नजदीक आ रहा है, भाजपा के विरोधी दलों की उम्मीद को झटका लगता जा रहा है। लालू को उम्मीद थी कि उनकी रैली में पहली बार सपा और बसपा एक मंच पर नजर आएंगे। देश की मौजूदा सियासत में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की लगातार कोशिश की जा रही है। इसके लिए लालू यादव लगातार कोशिश कर रहे हैं और विपक्ष को एकजुट करने की जो पहल उन्होंने की है वो अब रंग लाने वाली है, लेकिन उनकी ये उम्मीद अब कमजोर होती जा रही है।

बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के साथ सरकार बनाने वाले जनता दल यूनाइटेड ने सिर्फ उनका साथ छोड़ा बल्कि बिहार के आरजेडी-कांग्रेस से महागठबंधन तोड़कर एनडीए का दामन थाम लिया। मुख्यमंत्री तथा जदयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार का भाजपा के साथ जाना विपक्षी दलों के लिए बड़ा झटका साबित हुआ।

लालू प्रसाद यादव के साथ रिश्तेदारी करने के बाद से उत्तर प्रदेश में सत्ता पर काबिज रही समाजवादी पार्टी की हालत भी ठीक नहीं है। इसमें तो पारिवारिक कलह चुनाव के बाद तक बदस्तूर जारी है। ऐसे में लालू प्रसाद यादव को मायावती की पार्टी के रूप में मजबूत साथ दिख रहा था। वह बिहार में राम बिलास पासवान के खिलाफ बहुजन समाज पार्टी को एक खंभे के रूप में खड़ा कर सकते थे। अब मायावती ने उनको इन्कार कर दिया है।