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बीजेपी के लिए गले की हड्डी न बन जाये एससी-एसटी एक्ट

लखनऊ। 2 अप्रैल को भारत बंद के मौके पर पूरे देश में बवाल मचा हुआ है. बिहार से लेकर झारखंड तक, मध्य प्रदेश से लेकर राजस्थान तक, पंजाब से लेकर यूपी तक हर जगह हिंसा और आगजनी देखने को मिल रही है. राज्य अलग-अलग लेकिन, हर जगह की तस्वीर एक जैसी. हो-हंगामा, कहीं पुलिस के साथ झड़प तो कहीं बंद समर्थक और विरोधी गुटों के बीच झड़प. आगजनी, तोड़फोड़ और हंगामे ने पूरे देश भर में बवाल मचाया हुआ है. मध्य प्रदेश में तो बंद के दौरान हुई हिंसा में कई मौत भी हो गई है.

देशभर के दलित संगठनों की तरफ से बुलाए गए बंद का व्यापक असर देखने को मिला. दलित संगठनों का बंद सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद आया है जिसमें एससी-एसटी एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी नहीं करने का आदेश दिया गया था. अबतक इस तरह के केस में अग्रिम जमानत नहीं मिलती थी. लेकिन, कोर्ट ने इस तरह के मामले में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी देने का आदेश दिया. यानी अब पुलिस को भी आरोपी को गिरफ्तार करने से पहले इन मामलों की जांच करनी पड़ेगी.

क्या बदलाव हुए हैं कानून में

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश सरकारी कर्मचारियों के मामले में था. लेकिन, कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर गैर-सरकारी किसी कर्मी से जुड़ा इस तरह का मामला सामने आए तो फिर उस मामले में सबसे पहले उस जिले के एसएसपी से मंजूरी लेनी पड़ेगी, तभी आरोपी को गिरफ्तार किया जा सकेगा.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दलितों के हितों के संरक्षण को लेकर बनाए गए कानून अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के कमजोर होने की बात कही जा रही है. खासतौर से दलित संगठनों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले से दलितों की आवाज दबाई जाएगी. दलित संगठनों का गुस्सा इसी बात को लेकर है.

लेकिन, इस मामले ने अब पूरी तरह से राजनीतिक रंग ले लिया है. विपक्षी दलों का वार सरकार पर लगातार हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले आने के बाद से ही कांग्रेस समेत कई दूसरे दलों ने सरकार पर इस मामले में ठीक तरह से अपनी बात सुप्रीम कोर्ट में नहीं रखने का आरोप लग रहा है. कोशिश मोदी सरकार को दलित विरोधी बताने की हो रही है.

A Bharatiya Janata Party (BJP) supporter wears a mask of Prime Minister Narendra Modi, after BJP won complete majority in Tripura Assembly elections, during a victory celebration rally in Agartala

इस तरह की कोशिश बंद के दौरान भी दिखी. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दलित संगठनों की तरफ से बुलाए गए इस बंद को लेकर ट्वीट करते हुए कहा

‘दलितों को भारतीय समाज के सबसे निचले पायदान पर रखना RSS/BJP के DNA में है, जो इस सोच को चुनौती देता है उसे वे हिंसा से दबाते हैं. हजारों दलित भाई-बहन आज सड़कों पर उतरकर मोदी सरकार से अपने अधिकारों की रक्षा की मांग कर रहे हैं. हम उनको सलाम करते हैं.’

कांग्रेस अध्यक्ष का यह बयान संघ परिवार और बीजेपी को दलित विरोधी के तौर पर प्रचारित करने वाला है. कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया दूसरे विपक्षी दलों की तरफ से भी आ रही है.

बंद के समर्थऩ में आरजेडी समेत कई विपक्षी दल भी आ गए थे. बिहार में लालू यादव के दोनों बेटों तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव के साथ पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी सड़क पर उतर गए तो आरजेडी से निलंबित सांसद पप्पू यादव भी बंद के समर्थन में सड़कों पर दिखे. कुछ ऐसा ही नजारा देश के कई दूसरे हिस्सों में भी दिखा. जहां बंद के समर्थन में कई राजनेता सड़कों पर उतर गए. सबकी कोशिश अपने-आप को दलितों का सच्चा हितैषी बताने की थी.दि

दिन प्रतिदिन मुखर हो रहा है दलित आंदोलन

लेकिन, ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. इस साल की शुरुआत में ही महाराष्ट्र के भीमाकोरेगांव की घटना के बाद दलित संगठनों ने पूरे महाराष्ट्र में अपना विरोध जताया था. उस वक्त भी बीजेपी की केंद्र और प्रदेश की सरकारों को दलित विरोधी प्रचारित करने की पूरी कोशिश की गई. इसके पहले गुजरात के उना की घटना भी देश भर में दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचार का प्रतीक बन गई थी. रोहित वेमुल्ला की घटना को लेकर तो संसद से लेकर सड़क तक काफी बवाल होता रहा.

Patna: Hindustani Awam Morcha (Secular) activists stop a train at Rajendra Nagar Terminal during 'Bharat Bandh' against the dilution of provisions for the Scheduled Caste/Scheduled Tribe Act, in Patna on Monday. PTI Photo(PTI4_2_2018_000021B)

इस तरह की घटनाओं ने विपक्ष को बड़ा हथियार थमा दिया है. रही –सही कसर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने कर दिया है. हालाकि यह कोर्ट का फैसला है, फिर भी सरकार पर पक्ष मजबूती से न रखने का आरोप लगाकर फिर से निशाने पर लिया जा रहा है. यह रणनीति काम भी कर रही है. दलितों का उग्र आंदोलन इस बात की तस्दीक भी कर रहा है.

विपक्ष की रणनीति क्या दलितों की बीजेपी के साथ बढ़ती नजदीकी के कारण हताशा को दिखाता है. लगता तो ऐसा ही है. क्योंकि मोदी सरकार बनने के बाद से ही लगातार बीजेपी दलित समुदाय को अपने साथ जोड़ने की कोशिश में लगी है. बाबा साहब भीम राव अंबेडकर की विरासत पर अपना दावा ठोकने वाली बीजेपी ने लगातार कांग्रेस को अंबेडकर विरोधी दिखाने की कोशिश की.

बाबा साहब से जुड़े सभी स्थलों को विकसित कर उसे पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने के पीछे बीजेपी की यही रणनीति काम कर रही थी. बीजेपी को काफी हद तक उसका फायदा भी मिला. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत में गैर-जाटव दलित समुदाय का बहुत बड़ा योगदान रहा. कारण बीजेपी की तरफ दलित समुदाय के बड़े तबके का झुकाव रहा.

बदली है दलित सोशल इंजीनियरिंग

हालाकि इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में भी दलित समुदाय मोदी के साथ दिखा, जब सारे कास्ट बैरियर तोड़कर दलितों ने भी बीजेपी के पक्ष में जमकर मतदान किया था. अमित शाह की बनाई रणनीति ने यूपी जैसे प्रदेश में दलितों की सबसे बड़ी नेता मायावती को पटखनी दे दी थी. उस वक्त मायावती की पार्टी बीएसपी का तो यूपी में खाता तक नहीं खुला था. गैर जाटव दलितों ने बीजेपी को दिल खोलकर वोट किया था. कुछ हद तक सेंधमारी जाटव जाति में भी हुई थी.

mayawati akhilesh

लेकिन, अब सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले ने मोदी विरोधियों को फिर से वो मौका दे दिया है जिस पर उन्हें घेरा जा सके. क्योंकि अब सत्ता में बीजेपी है और इस वक्त दलित समुदाय का कोपभाजन उसे ही होना पड़ेगा. लोकसभा चुनाव में महज एक साल का वक्त बचा है. उसके पहले कर्नाटक विधानसभा का चुनाव होना है. साल के आखिर में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी विधानसभा का चुनाव होना है.

दलित संगठनों की तरफ से बुलाया गया बंद बीजेपी को मुश्किलों में डाल सकता है. क्योंकि मध्यप्रदेश में बंद के दौरान हुई हिंसा की घटनाओं में मौत की खबरें भी आ रही हैं. यह खबरें बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बन सकती हैं. विपक्ष इसे दलितों की आवाज बंद करने की कोशिश के तौर पर प्रचारित करेगा.

हालाकि सरकार सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में पुनर्विचार याचिका दायर कर चुकी है. लेकिन, इस मामले में मचा बवाल सरकार के लिए राजनीतिक नुकसान का कारण हो सकता है. क्योंकि इस मुद्दे पर राजनीति विपक्ष को सुट कर रही है.