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फिलहाल जनता के बीच जाने से बच रही भाजपा

राजेश श्रीवास्तव

बिहार के बाद भारतीय जनता पार्टी की निगाहें गुजरात और उत्तर प्रदेश पर लगी हैं। गुजरात में तोड़फोड़ कराने के बाद जैसे ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने यूपी में कदम रखा वैसे ही विपक्षी खेमे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में टूटन शुरू हो गयी। इस्तीफों की झड़ी लग गयी। वह तो भला हो शिवपाल यादव का कि उन्होंने मधुकर जेटली का इस्तीफा होने से रोक लिया। वरना एक और इस्तीफा हो जाता।

फिलहाल सपा के दो और बसपा के एक एमएलसी ने अपना इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी की मुसीबतें हल कर दीं और उप्र में उसकी राह प्रशस्त कर दी। मालुम हो कि 19 सितंबर से पहले-पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य को किसी न किसी सदन का सदस्य बनना है। इसीलिए लंबे समय से चर्चा चल रही थी कि केशव को दिल्ली भेजा जायेगा और बाकी दोनों को चुनाव में भेजा जायेगा। लेकिन भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने ऐसी रणनीति बनायी कि विपक्षी खेमे के एमएलसी खुद थाली परोस के सामने खड़े हो गये।

दिलचस्प तो यह है कि सपा एमएलसी यशवंत सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि उन्होंने मुख्यमंत्री के लिए अपनी सीट खाली की है। फिलहाल अब भाजपा के सामने कोई मुश्किल नहीं है। योगी, केशव और शर्मा तीनों की राह प्रशस्त हो गयी है। ऐसे में अगर केशव मौर्य को दिल्ली भेजा जाता है तो स्वतंत्र देव सिंह और मोहसिन रजा की भी लाटरी लग सकती है वह दोनों भी किसी सदन के सदस्य नहीं हैं।

सूत्रों की मानें तो अगले दो दिनों में कई और लोग पार्टी से इस्तीफा दे सकते हैं। भाजपा ने जिस तरह की रणनीति बिहार में बनायी और अब उप्र में उसका प्रयास चल रहा है। उससे यह साफ हो गया है कि पार्टी फिलहाल अभी सीधे चुनाव में जाने से बच रही है। बिहार में विधानसभा चुनाव में वह अपनी स्थिति देख चुकी है। जबकि उप्र के उपचुनाव में वह सपा-बसपा के एक सुर में राग अलापने के चलते वह उपचुनाव में किसी को नहीं भेजना चाहती।

अगर भाजपा किसी को उपचुनाव में उतारेगी तो विपक्ष भी अपना संयुक्त उम्मीदवार उतार कर भाजपा को चुनौती देने से गुरेज नहीं करेगा। इसीलिए सीएम और दोनों डिप्टी सीएम को एमएलसी बनाकर पार्टी इन स्थितियों से बचना चाहती है। क्योंकि अगर पार्टी को उपचुनाव में सफलता नहीं मिलती है तो यह संदेश जायेगा कि भाजपा का असर कम होने लगा है। इसीलिए भाजपा ऐसी किसी स्थिति को आने ही नहीं देना चाहती है। हालांकि पार्टी अपने कांग्रेस मुक्त भारत के अभियान को दिन दूनी-रात चौगुनी गति से बढ़ा रही है।

बिहार में सरकार बनाने के बाद अब पूरे देश में कांग्रेस की केवल पांच राज्यों में सरकार बची है और अन्य विपक्षी दलों के पास 9 राज्यों में सरकार है। इस तरह से 14 राज्यों को छोड़कर किसी प्रत्येक राज्य में भाजपा व सहयोगी दलों की सरकार है। इन 14 राज्यों में पंजाब, दिल्ली, आंध्र प्रदेश ही बड़े राज्य हैं जबकि अन्य सभी राज्य छोटे-छोटे हैं। चाणक्य अमित शाह किसी भी राज्य की सरकार में सेंध लगाने में पारंगत समझे जाते हैं। जिस तरह से बिहार में नीतीश की सरकार बनवायी गयी उससे पूरा विपक्षी अमला सन्न है।

विपक्ष नीतीश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबिल मान रहा था। लेकिन इसे शाह की रणनीति ही कहेंगे कि उन्होंने विपक्ष के मोहरे नीतीश को ही अपने पाले में खड़ा करके महागठबंधन की उम्मीदों पर पलीता लगा दिया। सवाल यह नहीं है कि भाजपा ऐसा क्यों कर रही है। भाजपा सियासत करने आयी है वह तो साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनी पाटी के मंसूबों को आगे बढ़ाने के लिए करेगी ही लेकिन विपक्षी दलों को भी देखना होगा कि आखिर उनसे चूक कहां हो रही है जो उनकी पार्टी के नेता भाजपा के लालच के आगे नतमस्तक होते जा रहे हैं, कहीं खामी उनके भीतर ही तो नहीं है।