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नेपाल को ‘लुभाकर’ चीन को काउंटर करेगा भारत

nepal-indiaनई दिल्ली/काठमांडो। नेपाल के पीएम प्रचंड के दौरे को भारत एक बड़े मौके के तौर पर देख रहा है। जानकारों का मानना है कि मोदी सरकार नेपाल को यह ऑफर दे सकती है कि वह उनके यहां ईस्ट-वेस्ट रेलवे लाइन डिवेलप करने में मदद करेगी। हालिया वक्त में नेपाल से रिश्तों में आई खटास और चीन के इस पड़ोसी मुल्क में बढ़ती दखल के मद्देनजर भारत का यह कदम यह अहम साबित हो सकता है।

कभी विद्रोही माओवादी कमांडर रहे प्रचंड ने भारत को अपने पहले दौरे के लिए चुना है। वे भारत के साथ रिश्तों को दोबारा से पटरी पर लाना चाहते हैं। उनके पहले के पीएम के पी चीन समर्थक माने जाते थे। उन्होंने कुछ ऐसे कारोबारी समझौते किए, जिसका मकसद नेपाल का भारत पर आर्थिक निर्भरता कम करना था। नेपाल की पिछली सरकार ने भारत पर ईंधन और कारोबार संबंधी रोक लगाने के आरोप लगाए थे।

प्रचंड ने मंगलवार शाम पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि भारत के साथ नेपाल के रिश्ते कुछ वक्त के लिए नरम पड़ गए। प्रचंड ने कहा कि वे कड़वाहट को दूर करना चाहते हैं। यह भी कहा कि भारत नेपाल की मदद करना चाहता है, जो फिलहाल मुश्किलों में है।
प्रचंड ने कहा कि गुरुवार को शुरू हो रहे उनके चार दिवसीय दौरे में दोनों पक्ष ईस्ट नेपाल के मेछी से पश्चिम में स्थित महाकाली तक रेलवे लाइन डिवेलप करने पर चर्चा करेंगे। इसे बनाने में भारत मदद करेगा।

इंडियन रेलवे के एक अफसर ने बताया कि यह प्रॉजक्ट नेपाल के 1030 किमी लंबे ईस्ट-वेस्ट हाइवे के साथ-साथ चलेगा। अब दोनों देश वित्तीय शर्तों पर बात कर रहे हैं।

नेपाली पीएम के दौरे की तैयारियों से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक, ‘योजना यह है कि इस प्रॉजेक्ट को तत्काल शुरू किया जाए। यह एक बड़ा डिवेलपमेंट प्रॉजक्ट है’ बता दें कि नेपाल में भारतीय सीमा पर सिर्फ एक रेल लाइन है, जो जयनगर से जनकपुर तक है।

नेपाल उन साउथ एशियाई देशों में शामिल है, जहां भारत और चीन अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में लगे हुए हैं। भारत और नेपाल कोस्वभविक सहयोगी माना जाता रहा है। हालांकि, चीन ने अपने कदम जमाते हुए यहां कई सड़क और अस्पताल बनवाए। वहीं, भारत की ओर से प्रस्तावित हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्लांट के अलावा ट्रेड और ट्रांजिट कॉरिडोर के मामले में ज्यादा कुछ नहीं हुआ। राजनीतिक विवादों का इन प्रॉजेक्ट्स पर असर पड़ा।